युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...
ईरान और तुर्की के विदेश मंत्रियों ने म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर इस देश की सेना के बर्बर हमलों के बारे में विचार विमर्श किया है।
ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद ज़रीफ़ और उनके तुर्क समकक्ष मौलूद चाउश ओग़लू ने सोमवार को टेलीफ़ोन पर होने वाली बातचीत में इस मुद्दे पर चर्चा की।
दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने रोहिंग्या मुसलमानों के नस्लीय सफ़ाए को रोकने के लिए उठाए जाने वाले क़दमों पर विचार किया।
ग़ौरतलब है कि रोहिंग्या मुसलमानों पर म्यांमार की सेना के ताज़ा हमलों में सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं और क़रीब एक लाख लोगों ने अपना घरबार छोड़कर बांग्लादेश में शरण ली है।
इससे पहले भी बुधवार को ईरानी विदेश मंत्री ज़रीफ़ ने ट्वीट करके रोहिंग्या मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों के प्रति विश्व समुदाय की चुप्पी की निंदा की थी और दुनिया के सबसे पीड़ित अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हो रहे ज़ुल्म को रोकने के लिए कड़ी कार्यवाही की मांग की थी। msm
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