युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...
आस्था और अन्धविश्वास के बीच फासले की जो लाइन है वो हमारे इस देश में बहुत ही पतली है क्योकि हम समझ ही नहीं पाते है और कब आस्था की लाइन क्रॉस करके अंधविश्वास में चले जाते है। जहां पूरी दुनिया में भारत अपनी अनोखी संस्कृति और सभ्यता के लिए जाना जाता है वही लोगो के बीच में भारत की पहचान कर्मकांड, तंत्र-मंत्र, और काला जादू जैसे कुकृत्य के लिए भी प्रसिध्द है। वैसे तो कई तरह की तंत्र साधना होती है लेकिन शायद ही आप जानते होंगे की कुछ लोग मुर्दों का मांस खाकर भी इस तरह की तथाकथित तंत्र साधना को पूरा करते है। आप भी जानिये कौन है वो जो मुर्दों का मांस खाते है – मुर्दों का मांस – कौन होते है ये अघोरी- साधारण साधु नही बल्कि इस दुनिया से अलग होते अघोरी है। अघोरी बनने के लिये इन बाबाओ को कई प्रकार कि कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ता है। बहते पानी से लेकर जलती आग मे प्रवेश करना अघोरी बनने का पहला चरण होता है। ऐसी कोई चीज नही होती है, जो अघोरी का निवाला न बनी होती हो। ये लोग मुर्दों का मांस खाकर अपनी तंत्र साधना को अंजाम देते है। जाने अघोरी समुदाय के बारे में- अघोरी समु...