लेखक : मानसी मिश्र ऐसा कम ही होता है जब बेघर लोगों में हम कोई रिश्ता तलाश पाते हों। पुरानी दिल्ली निवासी इर्तजा कुरैशी भी हमारे-आपके जैसे दिल्ली के एक युवा हैं। मगर, एक घटना ने इन्हें इस कदर बदला कि वह बेघरों के अभिभावक बन गए। इर्तजा ने 14 बेघरों के लिए ‘मरहम’ नाम से एक ऐसा घर बनाया है जहां न सिर्फ उन्हें छत मिल रही है, बल्कि काम, रिश्ता और इज्जत की जिन्दगी भी मिल रही है। इर्तजा बताते हैं कि वर्ष 2005 में एक दिन अचानक मेरे पिता लापता हो गए। मैं, मेरी मां, बहन सभी उन्हें हर जगह, हर रिश्तेदार के घर खोजते रहे पर उनका कोई पता नहीं चला। वक्त बीता, हमारी जिन्दगी पटरी पर आने लगी। मैं एक बड़ी कंपनी में नौकरी करने लगा। मगर, जब भी मैं सड़क किनारे बैठे अजनबियों को देखता तो यूं लगता कि कहीं किसी फुटपाथ पर ऐसे ही मेरे पिता भी न बैठे हों। मैं भीतर तक सिहर जाता। मन में आया कि ये भी तो किसी न किसी के रिश्तेदार होंगे। इन ख्यालों ने ही ‘मरहम’ का रूप कब धर लिया पता ही नहीं चला। मैंने वर्ष 2013 में रिश्तेदारों, दोस्तों और करीबियों से बात की। कुछ पैसे जुटाए और जामा मस्जिद इलाके में जगत सिनेमा के पास थ