शहीद मोहसिन हुजजी की अपने 2 वर्षीय बेटे अली के नाम वसीयत। "सलाम अली आग़ा ! बाबा की जान सलाम, सलाम मेरे बेटे, मै तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ: अली जान ! मेरा बहुत दिल चाहता है कि इस राह में सुर्ख़रू (कामयाब) हो जाऊँ, इस राह मे शहीद हो जाऊँ। मेरा बहुत दिल चाहता है कि एक बार इमामे ज़माना (अ) के ज़ुहूर से पहले शहीद हो जाऊँ और एक बार ज़ुहूर के बाद शहीद हो जाऊँ, मेरे ख़्याल से यह अक़्ल मन्दी है कि दो बार इस्लाम की राह में शहादत नसीब हो जाये। इंशा अल्लाह कि मेरी यह आरज़ू पूरी हो जाये, लेकिन फिर भी मै ख़ुदा की रज़ा पर राज़ी हूँ, अगर मेरी आरज़ू पूरी हो गयी तो अलहम्दु लिल्लाह और अगर मेरी आरज़ू पूरी न हुई तो शायद मैं इसके लाएक़ ही नही था। अली जान ! समाज में हर दिन मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं, गुनाह दिन प्रतिदिन ज़्यादा होते जा रहे है, इस ज़माने में अच्छा बाक़ी रहना हर दौर से ज़्यादा मुश्किल है, जैसे जैसे इमामे ज़माना (अ) के ज़ुहूर से हम नज़दीक हो रहे हैं वैसे वैसे फ़ित्ने बढ़ रहे हैं, गुनाह ज़्यादा होंगे, ख़ताएँ ज़्यादा होंगी, शैतान और ताक़तवर होगा, तुम भी अपना बहुत ख़्याल रखना, न सिर्फ़ यह कि अपना ख़्याल रखना बल्कि अपन