युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...
देवबंद (सहारनपुर)। देश की आजादी की लड़ाई में विश्व प्रसिद्ध इस्लामिक संस्था दारुल उलूम देवबंद ने भी अहम भूमिका निभाई। दारुल उलूम के छात्र मौलाना महमूदुल हसन ने रेशमी रुमाल तहरीक चलाकर आजादी की लड़ाई को नई धार दी। इस आंदोलन में आजादी के मतवाले फिरंगियों की नजर से बचाकर गुप्ता योजनाओं का संदेश रेशमी रुमाल पर लिखकर आदान-प्रदान करते थे। देश को स्वतंत्र कराने में दारुल उलूम के उलेमा ने जो कुर्बानियां दीं उसको शायद ही कभी भुलाया जा सके। शेखुल हिंद की इन्हीं खिदमात को देखते हुए भारत सरकार द्वारा उनकी तहरीक पर डाक टिकट भी जारी किया गया। आजादी की लड़ाई को नई दिशा व दशा देने वाले मौलाना महमूदुल हसन का जन्म देवबंद के एक इल्मी खानदान में हुआ था। वर्ष 1905 में दारुल उलूम की बागडोर संभालने वाले हसन उन स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे, जिन्हें उनकी कलम, ज्ञान, आचार व व्यवहार आदि विशेषताओं के बूते शेखुल हिद (भारतीय विद्वान) की उपाधि से विभूषित किया गया। मौलाना शेखुल हिद ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए रेशमी रुमाल आदोलन चलाया जो कि भारत को आजाद कराने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चलाया गया पहला आद...