युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...
जून २४, २०१६ . इस्लामी क्रान्ति संरक्षक बल आईआरजीसी ने कहा है कि पिछले हफ़्ते देश के पश्चिमोत्तरी भाग में गिरफ़्तार हुए एक आतंकवादी गुट के तत्वों ने अमरीका और सऊदी अरब की ओर से समर्थन मिलने की बात स्वीकार की है। आईआरजीसी की थल सेना के कमान्डर ब्रिगेडयर जनरल मोहम्मद पाकपूर ने गुरुवार को इन आतंकियों की स्वीकारोक्ति की ओर इशारा करते हुए कहा, “इन लोगों ने अपने अपराधों के व्यापक आयाम और अपने गुट के लक्ष्यों की प्राप्ति में सऊदी अरब और अमरीका की ओर से मिले समर्थन को स्वीकार किया है।” उन्होंने कहा कि इस बारे में विस्तृत ब्योरा सार्वजनिक किया जाएगा। इस आतंकवादी गुट को ईरान के सिस्तानो बलोचिस्तान प्रांत के ख़ाश शहर में पिछले हफ़्ते ध्वस्त किया गया। जनरल मोहम्मद पाकपूर ने बताया कि एक आतंकी की, गिरफ़्तारी के समय लगे घाव को सहन न कर पाने से मौत हो गयी जबकि दूसरा आतंकी हिरासत में है। आईआरजीसी की थल सेना के कमान्डर ब्रिगेडयर जनरल मोहम्मद पाकपूर ने कहा कि अमरीका और सऊदी अरब ईरान की भौगोलिक सीमाओं में क्रान्ति विरोधी तत्वों और आतंकवादी गुटों को फिर से संगठित करने की को...