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घबराओ नहीं[जरुर पढे]

युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...

अमरनाथ: सलीम ने '50 यात्रियों को आतंकियों से बचाया

अमरनाथ यात्रियों से भरी जिस बस पर सोमवार को आतंकियों ने हमला किया, उसे चला रहे  ड्राइवर सलीम ने हिम्मत दिखाई। यात्रियों का कहना है  कि बस ड्राइवर ने सूझबूझ दिखाते हुए मौके से बस को किसी तरह भगाकर सुरक्षाबल के कैंप तक पहुंचाया। गौरतलब है कि अगर आतंकी बस में सवार होने में कामयाब हो जाते तो जानमाल का बड़ा नुकसान हो सकता था। 
सलीम के रिश्तेदार जावेद ने न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में कहा, 'उन्होंने रात साढ़े 9 बजे मुझे फोन करके गाड़ी पर हुई फायरिंग की जानकारी दी। वह सात लोगों की जान नहीं बचा सके, लेकिन 50 से ज्यादा लोगों को सेफ जगह पहुंचाने में कामयाब रहे। मुझे उनपर गर्व है।' बता दें कि गुजरात के रजिस्ट्रेशन नंबर GJ09Z 9976 वाली बस अमरनाथ श्राइन बोर्ड में रजिस्टर नहीं थी। एक टॉप सुरक्षा अधिकारी ने नाम न छापे जाने की शर्त पर न्यूज एजेंसी पीटीआई से बताया कि इसमें सवार लोगों ने अपनी यात्रा दो दिन पहले ही पूरी कर ली थी और इसके बाद से वे श्रीनगर में ही थे। 
bus driver saleem in question while family members praises his effort amarnath yatra terror attack

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दंगाग्रस्त बशीरहाट में उम्मीद की कोंपले फूट रही हैं. बांग्लादेश सीमा से लगे उत्तरी 24 परगना के इस इलाके में मुस्लिम लोग अपने हिंदू पड़ोसियों की मदद के लिए पैसा बांट रहे हैं. हफ्ते भर पहले हुई बशीरहाट हिंसा में सौ से ज्यादा दुकानें और मकान क्षतिग्रस्त हो गए. इनमें हिंदुओं की दुकानें और मकानों को काफी क्षति पहुंची है. ये हिंसा सोशल मीडिया पर वायरल हुई आपत्तिजनक पोस्ट के चलते हुई जिसमें इस्लाम और मुस्लिम के बारे में गलत टिप्पणी की गई थी. बशीरहाट की त्रिमुहानी का नजारा कुछ ऐसा है कि पुलिस और सुरक्षा बल के पहरे में खड़े मोहम्मद नूर इस्लाम गाजी और अजय पाल को भीड़ घेरे हुई है. यही पर अजय पाल की पान बीड़ी की दुकान है. मंगलवार को भड़की हिंसा में इस इलाके में खूब बवाल हुआ था. दुकानें लूट ली गई थीं और घरों में तोड़फोड़ हुई. गाजी और कई मुसलमान पाल से अपनी दुकान दोबारा खोलने की गुजारिश कर रहे हैं. साथ ही पाल से 2 हजार रुपये लेने की गुजारिश कर रहे हैं. स्थानीय बिजनेसमैन गाजी ने कहा, 'बाबरी विध्वंस के बाद भी हमारे शहर में शांति रही. मंगलवार को जो हुआ वो ठीक नहीं है. कुछ बाहरी लोग और हमारे स्थ...

हिन्दू लश्कर-ए-तयैबा का आतंकी "संदीप शर्मा" पकड़ा गया

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रोहिंग्य मुसलमानों के नरसंहार के लिए म्यांमार सरकार को दोषी - ह्यूमन राइट्स वॉच

अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने रोहिंग्य मुसलमानों के नरसंहार और उनके ऊपर किए गए मानवता को शर्मसार करने वाले अत्याचारों के लिए म्यांमार सरकार को दोषी ठहराया है। प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार ह्यूमन राइट्स वॉच ने संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद से मांग की है कि वह म्यांमार पर आर्थिक प्रतिबंधों के साथ-साथ हथियारों के ख़रीदने पर भी प्रतिबंध लगाए।  ह्यूमन राइट्स वॉच के लीगल एंड पॉलिसी डायरेक्टर, जेम्स रोज़  का कहना है कि म्यांमार की सेना राख़ीन प्रांत से रोहिंग्या मुसलमानों को ज़बरदस्ती निकाल रही है। दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र संघ के शरणार्थियों के मामलों के विभाग ने कहा है कि 4 लाख 80 हज़ार रोहिंग्या मुसलमान, जो शरणार्थी शिवरों में रह रहे हैं, उनके लिए खाद्य व अन्य आवश्यक वस्तुओं के लिए दोगुने बजट की आवश्कता है। इस बीच म्यांमार सरकार के प्रवक्ता ने ह्यूमन राइट्स वॉच के आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहा है कि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि जिससे यह साबित हो कि म्यांमार सरकार मानवता विरोधी कार्यवाहियों में शामिल है। उल्लेखनीय है कि  संयुक्त राष...

वाजिब नमाज़े आयात पढने का तरीका पढ़े !

1516। नमाज़े आयात की दो रकअतें हैं और हर रकअत में पाँच रुकूअ हैं। इस के पढ़ने का तरीक़ा यह है कि नियत करने के बाद इंसान तकबीर कहे और एक दफ़ा अलहम्द और एक पूरा सूरह पढ़े और रुकूअ में जाए और फिर रुकूअ से सर उठाए फिर दोबारा एक दफ़ा अलहम्द और एक सूरह पढ़े और फिर रुकूअ में जाए। इस अमल को पांच दफ़ा अंजाम दे और पांचवें रुकूअ से क़्याम की हालत में आने के बाद दो सज्दे बजा लाए और फिर उठ खड़ा हो और पहली रकअत की तरह दूसरी रकअत बजा लाए और तशह्हुद और सलाम पढ़ कर नमाज़ तमाम करे। 1517। नमाज़े आयात में यह भी मुम्किन है कि इंसान नियत करने और तकबीर और अलहम्द पढ़ने के बाद एक सूरह की आयतों के पांच हिस्से करे और एक आयत या उस से कुछ ज़्यादा पढ़े और बल्कि एक आयत से कम भी पढ़ सकता है लेकिन एहतियात की बिना पर ज़रुरी है कि मुकम्मल जुमला हो और उस के बाद रुकूअ में जाए और फिर खड़ा हो जाए और अलहम्द पढ़े बग़ैर उसी सूरह का दूसरा हिस्सा पढ़े और रुकूअ में जाए और इसी तरह इस अमल को दोहराता रहे यहां तक कि पांचवें रुकूअ से पहले सूरे को ख़त्म कर दे मसलन सूरए फ़लक़ में पहले बिसमिल्ला हिर्रहमानिर्रहीम। क़ुल अऊज़ू बिरब्बिलफ़लक़। पढ़े और रुकूअ में जाए ...

पैग़म्बरे इस्लाम की पत्नी जो अरब की सबसे बड़ी व्यापारी एवं पहली मुसलमान महिला थी

10th Ramzan - Death anniversary of Hazrat Khadija(a.s.) पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की पैग़म्बरी के ऐलान के दस साल बाद पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. की बीवी हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा ने देहांत किया। हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा के निधन से पैग़म्बरे इस्लाम शोक व दुख के अथाह सागर में डूब गए। पैग़म्बरे इस्लाम स पर दुख का यह पहाड़ उनके चचा हज़रत अबू तालिब अलैहिस्सलाम के निधन के स्वर्गवास के कुछ थोड़े से अंतराल के बाद टूट पड़ा। इन दो महबूब हस्तियों के जुदाई से पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. की रूह इतनी दुखी हुई कि उन्होंने इस साल को आमुल हुज़्न (शोकवर्ष) का नाम दे दिया। हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा के निधन पर पैग़म्बरे इस्लाम स बहुत रोए और उन्होंने कहाः ख़दीजा के जैसा कहां कोई मिल सकता है कि उन्होंने उस समय मेरी पुष्टि की जब लोग मुझे झुठला रहे थे। इलाही दीन के मामलों में उन्होंने मेरी मदद की और मदद के लिए अपनी जायदाद पेश कर दी। हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा का संबंध क़ुरैश क़बीले के एक प्रतिष्ठित परिवार से था। पैग़म्बरे इस्लाम स की पैग़म्बरी की ऐलान से पहले वह हज़...