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Showing posts from June, 2016

Purpose OF Azadari- Moharram 2021

 

पीलिया रोग का बेहतरीन इलाज रोज़ा रखना है

रोज़े (व्रत) के बहुत ज्यादा लाभ हैं। इस्लाम के महा विद्वानों  ने रोज़े को मनुष्य के शरीर को स्वास्थ्य प्रदान करने वाला, आत्मा को सुदृढ़ करने वाला, पाश्विक प्रवृत्ति को नियंत्रित करने वाला, आत्म शुद्धि करने वाला और बेरंग जीवन में परिवर्तन लाने वाला मानते हैं जो सामाजिक स्वास्थ्य की भूमिका प्रशस्तकर्ता है। रोज़े के उपचारिक लाभ, जिनकी गणना उसके शारीरिक तथा भौतिक लाभों में होती है बहुत अधिक और ध्यानयोग्य हैं। इस्लामी शिक्षाओं में रोज़े के शारीरिक लाभों का भी उल्लेख किया गया है। इस संदर्भ में पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं- रोज़ा रखो ताकि स्वस्थ्य रहो।चिकित्सा विज्ञान के अनुसार स्वस्थ रहने के लिए रोज़ा बहुत लाभदायक है। यहां तक कि उन देशों में भी जहां रोज़े आदि में विश्वास नहीं किया जाता वहां पर भी चिकित्सक कुछ बीमारों के उपचार के लिए बीमारों को कुछ घण्टों या एक निर्धारित समय के लिए खाना न देने की शैली अपनाते हैं।रोज़े के लिए इस्लामी शिक्षाओं में आया है कि अल्लाह ने कहा है कि मेरे दास हर उपासना अपने लिए भी करते हैं किंतु रोज़ा केवल मेरे लिए होता है और मैं ही उस का इनाम दूंगा।  वास्तव

जन्म पवित्र स्थल काबे के अंदर हुआ और शहादत मस्जिद में

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के दामाद और उत्तराधिकारी हज़रत अली (अ) जब 19 रमज़ान की सुबह सहरी के बाद सुबह की नमाज़ के लिए मस्जिद में पहुंचे और नमाज़ के दौरान जब वे सज्दे में गए तो इब्ने मुल्जिम नामक व्यक्ति ने ज़हर में बुझी तलवार से उनके सिर पर घातक वार किया।  19 रमज़ान की रात इस्लाम के अनुसार, रमज़ान की उन तीन रातों में से एक है, जिसमें रात भर जागकर इबादत करने का अत्यधित सवाब है।  हज़रत अली गंभीर रूप से घायल होने के तीसरे दिन अर्थात 21 रमज़ान की पवित्र रात को शहीद हो गए।  19 और 21 रमज़ान को  दुनिया भर के शिया मुसलमान ईश्वर की इबादत के साथ साथ हज़रत अली (अ) की शहादत का शोक भी मनाते हैं और अज़ादारी करते हैं।  हज़रत अली (अ) संसार की ऐसी विशिष्ट हस्ती हैं जिनका जन्म पवित्र स्थल काबे के अंदर हुआ था और शहादत मस्जिद में। 

एक महान वैज्ञानिक हज़रत अली (अ स )

अली इब्ने अबी तालिब पैगम्बर मुहम्मद (स.) के चचाजाद भाई और दामाद थे. आपका चर्चित नाम हज़रत अली (अ स) है. दुनिया उन्हें महान योद्धा और सुन्नी  मुसलमानों के खलीफा  के रूप में जानती है शिया  फिरके के लोग उन्हें अपना पहला इमाम मानते हैं लेकिन यह भी एक सत्य है  कि हज़रत अली (अ स )  एक महान वैज्ञानिक भी थे और एक तरीके से उन्हें पहला मुस्लिम वैज्ञानिक कहा जा सकता है ।  13 रजब 24 BH को अली का जन्म मुसलमानों के तीर्थ स्थल काबे के अन्दर हुआ था  ऐतिहासिक दृष्टि से हज़रत अली एकमात्र व्यक्ति हैं जिनका जन्म काबे के अन्दर हुआ था, और 21 रमजान 40 AH को शहादत हुई  ।   बात करते हैं हज़रत अली के वैज्ञानिक पहलुओं पर. हज़रत अली ने वैज्ञानिक जानकारियों को बहुत ही रोचक ढंग से आम आदमी तक पहुँचाया एक प्रश्नकर्ता ने उनसे सूर्य की पृथ्वी से दूरी पूछी तो जवाब में बताया की एक अरबी घोड़ा पांच सौ सालों में जितनी दूरी तय करेगा वही सूर्य की पृथ्वी से दूरी है उनके इस कथन के चौदह सौ सालों बाद वैज्ञानिकों ने जब यह दूरी नापी तो 149600000 किलोमीटर पाई गई अगर अरबी घोडे की औसत चाल 35 किमी/घंटा ली जाए तो यही दूरी निकलती ह

Amaal-e-Shab-e-Qadr in Hindi

उन्नीसवी रात यह शबे क़द्र की पहली रात है और शबे क़द्र के बारे में कहा गया है कि यह वह रात है जो पूरे साल की रातों से अधिक महत्व और फ़ज़ीलत रखती है, और इसमें किया गया अमल हज़ार महीनों के अमल से बेहतर है शबे क़द्र में साल भर की क़िस्मत लिखी जाती है और इसी रात में फ़रिश्ते और मलाएका नाज़िल होते हैं और इमाम ज़माना (अ) की ख़िदमत में पहुंचते हैं और जिसकी क़िस्मत में जो कुछ लिखा गया होता है उसको इमाम ज़माना (अ) के सामने पेश करते हैं। इसलिए हर मुसलमान को चाहिए कि इस रात में पूरी रात जागकर अल्लाह की इबादत करे और दुआएं पढ़ता रहे और अपने आने वाले साल को बेहतर बनाने के लिए अल्लाह से दुआ करे। शबे क़द्र के आमाल दो प्रकार के हैं: एक वह आमाल हैं जो हर रात में किये जाते हैं जिनको मुशतरक आमाल कहा जाता है और दूसरे वह आमाल हैं जो हर रात के विशेष आमाल है जिन्हें मख़सूस आमाल कहा जाता है। वह आमाल जो हर रात में किये जाते हैं 1. ग़ुस्ल (सूरज के डूबते समय किया जाए और बेहतर है कि मग़रिब व इशा की नमाज़ को इसी ग़ुस्ल के साथ पढ़ा जाय) 2. दो रकअत नमाज़, जिसकी हर रकअत में एक बार अलहम्द और सात बार तौहीद (क़ु

पैग़म्बरे इस्लाम की पत्नी जो अरब की सबसे बड़ी व्यापारी एवं पहली मुसलमान महिला थी

10th Ramzan - Death anniversary of Hazrat Khadija(a.s.) पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की पैग़म्बरी के ऐलान के दस साल बाद पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. की बीवी हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा ने देहांत किया। हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा के निधन से पैग़म्बरे इस्लाम शोक व दुख के अथाह सागर में डूब गए। पैग़म्बरे इस्लाम स पर दुख का यह पहाड़ उनके चचा हज़रत अबू तालिब अलैहिस्सलाम के निधन के स्वर्गवास के कुछ थोड़े से अंतराल के बाद टूट पड़ा। इन दो महबूब हस्तियों के जुदाई से पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. की रूह इतनी दुखी हुई कि उन्होंने इस साल को आमुल हुज़्न (शोकवर्ष) का नाम दे दिया। हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा के निधन पर पैग़म्बरे इस्लाम स बहुत रोए और उन्होंने कहाः ख़दीजा के जैसा कहां कोई मिल सकता है कि उन्होंने उस समय मेरी पुष्टि की जब लोग मुझे झुठला रहे थे। इलाही दीन के मामलों में उन्होंने मेरी मदद की और मदद के लिए अपनी जायदाद पेश कर दी। हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा का संबंध क़ुरैश क़बीले के एक प्रतिष्ठित परिवार से था। पैग़म्बरे इस्लाम स की पैग़म्बरी की ऐलान से पहले वह हज़

آداب فھمِ قرآن - السید علی عمران نقوی

علوم کی حفاظت کے لئے ضبطِ تحریر میں آ کر کتاب کی شکل میں محفوظ ہو جانا نسلِ آدم (ع)  کی تعلیم و تربیت کیلئے لازمی شرط ہے۔ کتاب کو پڑھانے اور سمجھانے کیلئے ایک مدرس یا استاد کی بھی ضرورت ہوتی ہے اس طرح علم آنے والی نسلوں تک پہونچتا ہے۔ لیکن وه کتب جن کے پڑھنے سے ﺫهنِ انسانی کو روشنی ملتی ہے فکر و شعور میں صحت مند مفید تبدیلی آتی ہے ان کتابوں کی تعلیم کے فوائد اپنے مقام پر لیکن ان سب کے ساتھ ساتھ ایک اہم بات یہ بھی ہے کہ اعلیٰ تعلیمی اداروں یعنی یونیورسٹیز میں بڑے بڑے کتب خانے یا لائبریریز بھی بنائی جاتی ہیں جہاں سے ضرورت مند طلبا کو کتابیں فراہم کی جاتی ہیں۔ کتابوں کا پڑھنا پڑھانا اور سمجھنا سمجھانا کس قدر اہم عمل ہے کتنی محنت ریاضت قربانی توجہ چاہتا ہے۔ اس کا اندازه اس بات سے لگائیے کہ صرف لائبریری جہاں کتابوں کو کچھ خاص قواعد و اصول و ضوابط اور ترتیب سے رکھا جاتا ہے اس کام کیلئے باقاعده لائبریری سائنس میں گریجویشن اور پوسٹ گریجویشن سے لیکر ریسرچ تک کرائی جاتی ہے جسکی اس زمانہ میں بڑی مانگ ہوتی جا رہی ہے غور فرمائیے کہ ان عام کتابوں کے رکھنے کیلئے جب ڈگری یافتہ بیچلر آف لائبریری

अहले सुन्नत के मुक़द्देसात (प्रतीकों) का अपमान करना जायज़ नहीं है - शिया सुन्नी एकता

वैसे तो इस्लाम हर धर्म का आदर करने का आदेश देता है  किसी दुसरे धर्मों (ग़ैर इस्लामी) के प्रतीकों का अपमान करना भी  इस्लाम में वर्विज (मना) है पर कुछ लोग एक दुसरे (अपने इस्लाम) के फिरके के लोगों का अपमान करने की सोचते हैं जो की यह इस्लामी शिक्षा के विपरीत है। दरअसल ऐसे लोग इस्लाम के दुश्मन होते हैं जो इस्लाम के दुश्मनों के हाथ मजबूत करते हैं। अहले सुन्नत के मुक़द्देसात (प्रतीकों)  का  अपमान करना हराम है और जाहिर है कि जो कोई भी शिया के नाम पर अहले सुन्नत के मुक़द्देसात का अपमान करता है चाहे वो  सुन्नी  होकर शिया मुक़द्देसात का अपमान करता है वह इस्लाम का दुश्मन है। क्या अहले सुन्नत के मुक़द्देसात (प्रतीकों) का  अपमान जैसे खुलुफा  और अहले सुन्नत के कुछ मनपसंद सहाबा  के नाम अशोभनीय तरीके से लेना   जायज़ (वेध) है? दुनिया भर के  शिया धार्मिक केन्द्रों (ईरान और इराक) के ओलामाओ (विद्वानों)  ने फतवा दिया है की अहले सुन्नत के मुक़द्देसात (प्रतीकों)  का  अपमान करना हराम है अधिक जानकारी के लिए मैं यहाँ 12 शिया आलिमों (विद्वानों) के फतवे पेश कर रहें हैं 

चुगली,ग़ीबत यानी पीठ पीछे बुराई करना। इस्लामी शिक्षाओं में बहुत ज़्यादा आलोचना की गयी है

ग़ीबत यानी पीठ पीछे बुराई करना है, ग़ीबत एक ऐसी बुराई है जो इंसान के मन मस्तिष्क को नुक़सान पहुंचाती है और सामाजिक संबंधों के लिए भी ज़हर होती है। पीठ पीछे बुराई करने की इस्लामी शिक्षाओं में बहुत ज़्यादा आलोचना की गयी है। पीठ पीछे बुराई की परिभाषा में कहा गया है पीठ पीछे बुराई करने का मतलब यह है कि किसी की अनुपस्थिति में उसकी बुराई किसी दूसरे इंसान से की जाए कुछ इस तरह से कि अगर वह इंसान ख़ुद सुने तो उसे दुख हो। पैगम्बरे इस्लाम स.अ ने पीठ पीछे बुराई करने की परिभाषा करते हुए कहा है कि पीठ पीछे बुराई करना यह है कि अपने भाई को इस तरह से याद करो जो उसे नापसन्द हो। लोगों ने पूछाः अगर कही गयी बुराई सचमुच उस इंसान में पाई जाती हो तो भी वह ग़ीबत है? तो पैगम्बरे इस्लाम ने फरमाया कि जो तुम उसके बारे में कह रहे हो अगर वह उसमें है तो यह ग़ीबत है और अगर वह बुराई उसमें न हो तो फिर तुमने उस पर आरोप लगाया है।यहां पर यह सवाल उठता है कि इंसान किसी की पीठ पीछे बुराई क्यों करता है?  पीठ पीछे बुराई के कई कारण हो सकते हैं। कभी जलन, पीठ पीछे बुराई का कारण बनती है। जबकि इंसान को किसी दूसरे की स्थिति से ईर्ष

ईर्ष्या/हसद एक बीमारी - एक बार ज़रूर पढ़े

हसद का मतलब होता है किसी दूसरे इंसान में पाई जाने वाली अच्छाई और उसे हासिल नेमतों की समाप्ति की इच्छा रखना। हासिद इंसान यह नहीं चाहता कि किसी दूसरे इंसान को भी नेमत या ख़ुशहाली मिले। यह भावना धीरे धीरे हासिद इंसान में अक्षमता व अभाव की सोच का कारण बनती है और फिर वह हीन भावना में ग्रस्त हो जाता है। हसद में आमतौर पर एक तरह का डर भी होता है क्योंकि इस तरह का इंसान यह सोचता है कि दूसरे ने वह स्थान, पोस्ट या चीज़ हासिल कर ली है जिसे वह ख़ुद हासिल करना चाहता था। हासिद इंसान हमेशा इस बात की कोशिश करता है कि अपने प्रतिद्वंद्वी की उपेक्षा करके या उसकी आलोचना करके उसे मैदान से बाहर कर दे ताकि अपनी पोज़ीशन को मज़बूत बना सके। वास्तव में हसद करने वालों की मूल समस्या यह है कि वह दूसरों की अच्छाइयों और ख़ुशहाली को बहुत बड़ा समझते हैं और उनकी ज़िंदगी की कठिनाइयों व समस्याओं की अनदेखी कर देते हैं। हासिद लोग, दूसरे इंसानों की पूरी ज़िंदगी को दृष्टिगत नहीं रखते और केवल उनकी ज़िंदगी के मौजूदा हिस्से को ही देखते हैं जिसमें ख़ुशहाली होती है। कुल मिला कर यह कि हासिद लोगों के मन में अपने और दूसरों की ज़िं

अल्लाह के एक होने पर यक़ीन और उसके कई होने को नकारना को तौहीद कहते हैं

तौहीद का मतलब अल्लाह को एक मानना है। दर्शन और तर्क शास्त्र में इस के कई मतलब हैं लेकिन सब का अंत में मतलब यही होता है कि अल्लाह को एक माना जाए। इस संदर्भ में बहुस ती विस्तृत चर्चाओं का बयान हुआ है लेकिन यहाँ पर सब का बयान उचित नहीं होगा।इस लिए यहाँ पर हम तौहीद के केवल उन्हीं अर्थों और परिभाषाओं का बयान करेगें जो ज़्यादा विख्यात हैं। 1.  संख्या को नकारनातौहीद की सर्वाधिक विख्यात परिभाषा, अल्लाह के एक होने पर यक़ीन और उसके कई होने को नकारना है। अल्लाह के लिए ऐसी विधिता को नकारना है जो उसके वुजूद से बाहर हो । यह यक़ीन दो या कई अल्लाह में ईमान रखने के विपरीत है। 2.  मिश्रण को नकारनातौहीद की दूसरी परिभाषा अल्लाह के अनन्य होने की है यानी वह ऐसा एक है कि जो कई वस्तओं से मिल कर एक नहीं बना है।इस मतलब को प्रायः उसके अवगुणों को नकार कर साबित किया जाता है जैसा कि हम ने दसवें पाठ में इस ओर इशारा किया है। 3.  उसके वुजूद से अतिरिक्त गुणों को नकारनातौहीद की एक दूसरे परिभाषा उसके गुणों और उसके वुजूद में अंखडता होना है इस अल्लाह के गुणों को एकल मानना कहा जाता है। इस विपरीत कुछ लोग अल्लाह गुणों क

रोज़ा हमे हेल्दी लाइफ़स्टाइल अपनाने मे मदद करता है

आज हम लोग रमज़ान के मुबारक महीने मे एक दीनी कर्तव्य समझ कर रोज़े रखते हैं जो सही भी है लेकिन दीनी कर्तव्य और सवाब के अलावा भी रोज़े के बहुत से फ़ायदे हैं जिनमे से कुछ फ़ायदे हमारी सेहत व स्वास्थ से सम्बन्धित हैं, लेकिन हम में से बहुत से लोग यह नही जानते कि रोज़ा हमारी सेहत के लिए कितना ज़रूरी है। अगर रोज़ा सही तरीक़े से रखा जाए और सेहत के नियमों का पालन किया जाए तो यह हमारे लिए आख़ेरत के साथ ही दुनिया मे भी बहुत फ़ायदा पहुंचा सकता है। रोज़ा हमारे जिस्म से ज़हरीली और हानिकारक चीज़ों और टाक्सिन्स को बाहर निकालने में मदद करता है, ब्लड सुगर को कम करता है, यह हमारी खाने पीने की आदतों मे सुधार करता है और हमारी इम्यूनिटी को बढ़ाता है तथा हमारे जिस्म की बीमारियों से लड़ने की ताक़त मे बढ़ोत्तरी करता है। हम अपने खाने पीने के दौरान बहुत से ज़हरीले पदार्थ या टाक्सिन्स लेते हैं, जैसे डिब्बा बन्द खाने पीने की चीज़ें, जिनको सड़ने या ख़राब होने से बचाने के लिए ऐसी चीज़ें मिलाई जाती हैं जो ज़हरीली होती हैं इसके अलावा आजकल अनाज,फल व सब्ज़ियां उगाने मे ज़हरीली दवाओं का इस्तेमाल होता है, साथ ही हमारे

सहीफ़ए सज्जादिया में रमज़ानुल मुबारक की श्रेष्ठता = आयतुल्लाह ख़ामेनई के बयानात की रौशनी में,

सहीफ़ए सज्जादिया में रमज़ानुल मुबारक की श्रेष्ठता सहीफ़ए सज्जादिया की दुआ 44 में रमज़ानुल मुबारक के बारे में इमाम सज्जाद अ. नें कुछ बातें की हैं आज उन्हीं को आपके सामने बयान करना चाहता हूँ हालांकि यहाँ अपने प्रिय जवानों से यह भी कहना चाहता हूं कि कि सहीफ़ए कि सहीफ़ए सज्जादिया को पढ़ें, इसका अनुवाद पढ़ें, यह हैं तो दुआएं लेकिन इनमें ज्ञान विज्ञान का एक समन्दर है। सहीफ़ए सज्जादिया की सभी दुआओं में और इस दुआ में भी ऐसा लगता है कि एक इन्सान ख़ुदा के सामने बैठा लॉजिकल तरीक़े से कुछ बातें कर रहा है, बस अन्तर यह है कि उसकी शक्ल दुआ है। उसका महीना दुआ के शुरू में इमाम फ़रमाते हैं ’’أَلحمَدُلِلَّهِ الَّذِى جَعَلَنَا مِن أَهلِهِ‘‘ ख़ुदा का शुक्र कि उसनें हमें अपनी हम्द (प्रशंसा) करने की तौफ़ीक़ (शुभ अवसर) दी। हम उसकी नेमतों को भूले नहीं हैं और उसकी हम्द और शुक्र करते हैं। उसनें हमारे लिये वह रास्ते खोले हैं जिनके द्वारा हम उसकी हम्द कर सकें और उन रास्तों पर चल सकें। फिर फ़रमाते हैं- ’’ وَالحَمدُلِلَّهِ الَّذِى جَعَلَ مِن تِلكَ السُّبُلُ شَهرِهِ شَهرَ رَمَضَان‘‘ हम्द और तारीफ़ उ

रमज़ान में कोशिश करनी चाहिए कि ख़ाना सादा हो

रमज़ान का महीना मुबारक हो  रमज़ान के मुबारक महीने में हमारा भोजन पहले के मुक़ाबले ज़्यादा चेंज नहीं होना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि ख़ाना सादा हो. इसी तरह इफ़तार का सिस्टम इस तरह सेट किया जाना चाहिए कि नैचुरल वज़्न पर कोई ज्यादा असर न पड़े। दिन में लंबी मुद्दत की भूख के बाद ऐसे खाने प्रयोग करें जो देर हज़म हों। देर हजम खाने कम से कम 8 घंटे हाज़मा सिस्टम में बाकी रहते हैं. हालांकि जल्दी हज़्म होने वाले खाने केवल 3 या 4 घंटे पेट में टिक सकते हैं और इंसान बहुत जल्दी भूख महसूस करने लगता है। देर हजम खाने जैसे अनाजः जौ, गेहूँ, बीन्स, दालें, चावल कि जिन्हें "कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट" कहते हैं। भोजन को बललते रहना चाहिए. यानी हर तरह के भोजन का उपयोग किया जाए जैसे फल, सब्जियां, गोश्त, मुर्गी, मछली, रोटी, दूध और अन्य दूध से बनी चीजें। तली हुई चीजें बहुत कम इस्तेमाल की जाएं. इसलिए कि हजम न होने, पेट में जलन पैदा होने और वज़न में बढ़ोतरी का कारण बनती हैं। किन चीजों से बचें? 1: तली हुई और चर्बी दार खानों से 2: ज़्यादा मीठी चीजों से 3: सहर के समय ज़्यादा खाना खाने से 4: सहर क