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घबराओ नहीं[जरुर पढे]

युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...

हमारे साथ अमरीकियों का रवैया ग़लत रहा है -ईरानी वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई

 वरिष्ठ नेता ने अपने वर्चुअल संबोधन के शुरू में 14वीं हिजरी शम्सी शताब्दी की शुरूआत और 15वीं हिजरी शम्सी शताब्दी की शुरुआत की तुलना करते हुए कहा कि पिछली शताब्दी में रज़ा ख़ान के तानाशाही शासन की शुरूआत हुई, जो वास्तव में रज़ा ख़ान द्वारा और उसके हाथों ब्रिटिश तख़्तापलट था। उन्होंने कहा कि रज़ा ख़ान का शासन ब्रिटेन पर निर्भर था। लेकिन 15वीं शत्बादी के पहले साल में देश में चुनाव हैं, जिसका मतलब है कि देश में जनता के मतों के आधार पर स्वाधीन सरकार का शासन है।

इस साल जून में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों का ज़िक्र करते हुए वरिष्ठ नेता ने कहा कि चुनाव देश में एक पुनर्निमाण प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से देश के कार्यकारी हिस्सों को ताज़ा दम किया जाएगा।

आयतुल्लाह ख़ामेनई का कहना था कि कुछ देशों की जासूसी एजेंसियां विशेष रूप से अमरीका और ज़ायोनी शासन की जासूसी एजेंसियां कुछ समय से जून में होने वाले चुनावों का रंग फीका करने का प्रयास कर रही हैं और इस उद्देश्य तक पहुंचने के लिए चुनाव के आयोजकों पर (चुनावी) इंजीनियरिंग का आरोप लगा रही हैं और लोगों हतोत्साहित कर रही हैं कि तुम्हारे वोट का कोई महत्व नहीं है, इसके लिए वे साइबर स्पेस का अधिकतम इस्तेमाल कर रही हैं।

अपने भाषण के दूसरे भाग में ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने प्रतिबंधों का उल्लेख करते हुए कहा कि कि आर्थिक घेराव और प्रतिबंध सरकारों के बड़े अपराधों में से एक है और इसे राजनैतिक व कूटनैतिक नज़र से नहीं देखा जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि किसी राष्ट्र को इस तरह प्रतिबंधित किया जाए कि वह दवाएं और चिकित्सा उपकरण तक आयात न कर सके और इस तरह का अपराध अमरीका जैसा देश ही कर सकता है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि हमारे देश के लिए प्रतिबंध एक अपराध था लेकिन इसके कुछ फ़ायदे भी थे, जिनके ज़रिए इस ख़तरे को अवसर में बदल दिया गया। उन्होंने कहा कि हमारे युवाओं ने हिम्मत दिखाई और कुछ ऐसे मैदानों में जिनकी आवश्यकता की चीज़ों के लिए देश, विदेशों पर निर्भर था, देश को विदेशों से आवश्यकतामुक्त कर दिया और यह देश के भीतर की तकनीक से संभव हुआ।

उन्होंने कहा कि अमरीका की पूर्व सरकार की अधिकतम नीति दम तोड़ गई थी, लेकिन अगर वर्तमान सरकार भी इसी नीति पर चलेगी, तो इसे भी पराजय का सामना करना पड़ेगा।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि उस मूर्ख (डोनल्ड ट्रम्प) ने ईरान की स्थिति कमज़ोर करने के लिए अधिकतम दबाव की नीति अपनाई थी, ताकि ईरान वार्ता की मेज़ पर आ जाए और अंहकारी मांगों को ईरान पर थोपा जाए, लेकिन उसे ऐसे अपमान के साथ सत्ता छोड़नी पड़ी कि ख़ुद भी बदमान हुआ और उसका देश भी, लेकिन इस्लामी गणतंत्र शक्ति और सम्मान के साथ मौजूद है।

परमाणु समझौते के बारे में वरिष्ठ नेता का कहना था कि परमाणु समझौते और उसमें शामिल पक्षों के बारे में देश की नीति स्पष्ट हो चुकी है और हम इस नीति से ज़रा भी नहीं हटेंगे, इसलिए कि इसकी घोषणा हो चुकी है और इस पर सहमति बन चुकी है। अमरीकियों को समस्त प्रतिबंध हटाने होंगे, उसके बाद हम उसकी वास्तविकता को परखेंगे, अगर वास्तव में उन्हें हटा लिया जाएगा तो बिना किसी समस्या के हम अपनी प्रतिबद्धताओं पर वापस लौट जायेंगे। हमें अमरीकियों की बात पर भरोसा नहीं है।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने इस बात की ओर संकेत करते हुए कि कुछ अमरीकियों का कहना है कि परमाणु समझौते में बदलाव होना चाहिए, कहा कि हां, स्थिति 2015—6 से बदल गई है, लेकिन यह बदलाव अमरीका के हित में नहीं हुआ है, बल्कि हमारे हित में यह बदलाव हुआ है। ईरान 2014 के बाद काफ़ी शक्तिशाली हुआ है। इसलिए अगर परमाणु समझौते में कोई बदलाव होना ही है तो वह ईरान के हित में होना चाहिए। प्रतिबंधों को हमने प्रभावहीन बना दिया है।

वरिष्ठ नेता ने अमरीकियों को संबोधित करते हुए कहाः तुम दिन प्रतिदिन समस्याओं में ग्रस्त होते गए और वर्तमान राष्ट्रपति का भाग्य कैसा होगा, कुछ पता नहीं है। इस प्रस्ताव के बारे में हमें कोई जल्दी नहीं है। हां, हमारा मानना है कि अवसरों से लाभ उठाना चाहिए, लेकिन हम जल्दबाज़ी नहीं करेंगे, इसलिए कि कुछ अवसरों पर उसका ख़तरा, उसके फ़ायदे से ज़्यादा है। हमने ओबामा के शासनकाल में अमरीकियों पर भरोसा किया और परमाणु समझौते के आधार पर कुछ काम किया, लेकिन उन्होंने अपने वादों को पूरा नहीं किया, और काग़ज़ पर प्रतिबंधों के हटाने की बात कही, लेकिन निवेशकों को डराया। उनके वादों का हमारे लिए कोई मूल्य नहीं है।

वरिष्ठ नेता का कहना था कि हमारे साथ अमरीकियों का रवैया ग़लत था और कुल मिलाकर क्षेत्रीय मामलों में वे ग़लती कर रहे हैं। ज़ायोनी शासन का समर्थन और सीरिया में ग़ैर क़ानूनी उपस्थिति निश्चित रूप से एक ग़लती है।

उन्होंने कहा कि इस्लामी उम्मत फ़िलिस्तीन के मुद्दे नज़र अंदाज़ नहीं करेगी और न ही उसे भुलाएगी। कुछ देशों द्वारा इस्राईल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के मुद्दे का कोई महत्व नहीं है। यमन युद्ध के बारे में उन्होंने कहा कि ट्रम्प से पहले की डोमोक्रेटिक सरकार में यमन पर हमला शुरू हुआ था और यमनियों पर होने वाले अपराधों में अमरीकी भागीदार हैं। Source ABNA


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