युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...
प्राप्त जानकारी के अनुसार तेहरान हमलों से कुछ देर पहले ही आतंकियों ने मरियम रजवी से भेंट की थी जिस में एक सऊदी अधिकारी ने वीडियो कांफ्रेंस के ज़रिये भाग लिया । इस भेंट में रियाज़ में रह रहा सीरिया सशस्त्र विद्रोहियों का नेता नस्र हरीरी, जैश ए फतह का आतंकी यासिर अब्दुर रहीम, इस्राईल और जॉर्डन ख़ुफ़िया एजेंसी का एजेंट अबू जौलानी आदि सम्मिलित थे । इस बैठक मे सऊदी अधिकारी ने वीडियो कांफ्रेंस द्वारा सम्बोधित किया । इस मीटिंग में सीरिया से पलट कर गए स्लीपर सेल्स के तेहरान उद्देश्यों के बारे में चर्चा की गयी। रजवी और आतंकी कमांडरों के बीच इस मीटिंग में ईरान और विशेष रूप से इमाम खुमैनी के मज़ार पर हमले के लिए सहयोग को सुनिश्चित करना था । सऊदी अधिकारी द्वारा पूछे गए सवाल कि इन हमलों का फायदा क्या हो सकता है के जवाब में मरियम रजवी ने कहा कि यह हमले इमाम खुमैनी की बरसी पर दिए गए आयतुल्लाह ख़ामेनई के अंतिम भाषण का जवाब होगा ।