युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...
यह घटना इलेग्ज़ंडरिया के एक स्कूल की है। यह तसवीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और हैशटैग ट्रेंड करने लगाः मैं ईसाई हूं मगर धर्मों का अपमान बर्दाश्त नहीं। खेल ग्राउंड पर पंक्तिबंद्ध खड़े होकर पैग़म्बर मुहम्मद का अपमान बर्दाश्त नहीं का नारा लिखने वालों में दर्जनों की संख्या में ईसाई छात्र शामिल हुए। मैं ईसाई हूं पैग़म्बर मुहम्मद का अपमान बर्दाश्त नहीं सोशल मीडिया पर इस तसवीर को बहुत सराहा गया। मीना नाम के ट्वीटर हैंडल से इस तसवीर के बारे में लिखा गया कि ईसाई छात्रों द्वारा पेश किया गया यह दृष्य बेहद आकर्षक है। मैं भी ईसाई हूं लेकिन पैग़म्बर मुहम्मद का अपमान बर्दाश्त नहीं। फ़्रांस में सरकार के भरपूर समर्थन से पैग़म्बरे इस्लाम के आग्रहपूर्ण अनादर पर विश्व स्तर पर फ़्रांस का विरोध हो रहा है और ईरान, पाकिस्तान और तुर्की सहित कई सरकारों ने इस मुद्दे पर कठोर रुख़ अपनाया है।