युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...
म्यांमार की नोबल पुरस्कार विजेता आंग सान सू ची की रोहिंग्या मुसलमानों की स्थिति पर दिए गए उनके बयान के लिए दुनिया भर में आलोचना हो रही है।
ग़ौरतलब है कि रोहिंग्या मुसलमानों पर म्यांमार सेना के ताज़ा हमलों में हज़ारों लोग मारे जा चुके हैं और 3 लाख से अधिक लोगों ने अपना घरबार छोड़कर बांग्लादेश में शरण ली है।
रोहिंग्या संकट पर चुप्पी साधने वाली म्यांमार की नेता सू ची ने पिछले हफ़्ते दावा किया था कि मीडिया में रोहिंग्या मुसलमानों के संकट के बारे में ग़लत रिपोर्टिंग हो रही है।
उन्होंने कहा था कि हमारे देश में समस्त लोगों के अधिकारों की सुरक्षा की जाती है।
दुनिया भर में शांति का नोबल पुरस्कार हासिल करने वाली सू ची की इन बयानों को लेकर कड़ी निंदा की जा रही है और मांग की जा रही है कि उनसे शांति का नोबल पुरस्कार वापस लिया जाए।
हालांकि दुनिया के सभी नेता आंग सान सू ची का आलोचना में एकमत नहीं हैं।
उदाहरण स्वरूप भारतीय प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने न केवल उनकी आलोचना करने से इनकार कर दिया, बल्कि उन्हें समर्थन का आश्वसन दिया है। msm
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