युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...
मोटापे से संबंधित मेडिकल रिसर्च की यूरोपीय यूनियन ने चेतावनी दी है कि जो बच्चे 8 से 13 साल की उम्र में मोटापे का शिकार होते हैं वह अपने आनी वाली जिंदगी में बड़े स्तर पर डिप्रेशन में ग्रस्त रह सकते हैं। इस बात का खुलासा हाइलैंड में किए गए एक सर्वे से हुआ है जिसमें 889 लोगों के मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक मोटापे की लंबे समय तक समीक्षा की और अनंनततः यह परिणाम सामने आया।
जिसमें 1950 से लेकर 1970 तक के दहाईयों में पैदा होने वाले लोगों से संबंधित जानकारियां जमा की गई थी रिसर्च के बाद मालूम हुआ कि जो लोग 8 से 13 साल की उम्र में मोटे थे वह बड़े होने पर न केवल डिप्रेशन में ज्यादा ग्रस्त देखे गए बल्कि उनमें डिप्रेशन की शिद्दत भी साफ तौर पर दूसरों के मुक़ाबले में अधिक दिखाई दी।
इससे भी बढ़कर संकोच की बात यह देखने में आई कि ऐसे लोग अपनी पूरी जिंदगी में बार-बार डिप्रेशन के शिकार होते रहे जो लोग बड़े होने तक मोटापे से छुटकारा पाने में कामयाब हो गए थे उनमें भी बड़े होने पर डिप्रेशन मैं ग्रस्त होने का ख़तरा उन लोगों के मुकाबले में तीन गुना ज्यादा देखा गया जो बचपन से लेकर जवानी तक मोटे नहीं हुए थे।
इसके अलावा वह लोग जो बचपन से लेकर बुढ़ापे तक मोटापे में ग्रस्त रहे वह सामान्य स्थिति में डिप्रेशन के चार गुना ज्यादा शिकार बने। आईएएसओ ने अपनी ताजा प्रेस रिलीज में खासकर मां-बाप को यह चेतावनी दी है कि अपने बच्चों में मोटापे की अनदेखी न करें कि आपकी बात की उम्र में यही चीज उनके लिए बड़ी परेशानी का कारण बन सकती है और उन्हें हमेशा टेंशन में डाले रख सकती है।
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