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Purpose OF Azadari- Moharram 2021

 

ईर्ष्या/हसद एक बीमारी - एक बार ज़रूर पढ़े


हसद का मतलब होता है किसी दूसरे इंसान में पाई जाने वाली अच्छाई और उसे हासिल नेमतों की समाप्ति की इच्छा रखना। हासिद इंसान यह नहीं चाहता कि किसी दूसरे इंसान को भी नेमत या ख़ुशहाली मिले। यह भावना धीरे धीरे हासिद इंसान में अक्षमता व अभाव की सोच का कारण बनती है और फिर वह हीन भावना में ग्रस्त हो जाता है। हसद में आमतौर पर एक तरह का डर भी होता है क्योंकि इस तरह का इंसान यह सोचता है कि दूसरे ने वह स्थान, पोस्ट या चीज़ हासिल कर ली है जिसे वह ख़ुद हासिल करना चाहता था। हासिद इंसान हमेशा इस बात की कोशिश करता है कि अपने प्रतिद्वंद्वी की उपेक्षा करके या उसकी आलोचना करके उसे मैदान से बाहर कर दे ताकि अपनी पोज़ीशन को मज़बूत बना सके। वास्तव में हसद करने वालों की मूल समस्या यह है कि वह दूसरों की अच्छाइयों और ख़ुशहाली को बहुत बड़ा समझते हैं और उनकी ज़िंदगी की कठिनाइयों व समस्याओं की अनदेखी कर देते हैं। हासिद लोग, दूसरे इंसानों की पूरी ज़िंदगी को दृष्टिगत नहीं रखते और केवल उनकी ज़िंदगी के मौजूदा हिस्से को ही देखते हैं जिसमें ख़ुशहाली होती है। कुल मिला कर यह कि हासिद लोगों के मन में अपने और दूसरों की ज़िंदगी की सही तस्वीर नहीं होती और वह मौजूदा हालात के तथ्यों को बदलने की कोशिश करते हैं।इस्लामी शिक्षाओं में हसद जैसी बुराईयों की बहुत ज़्यादा आलोचना की गई है और क़ुरआने मजीद की आयतों तथा पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम और उनके अहलेबैत की हदीसों में लोगों को इससे दूर रहने की सिफ़ारिश की गई है। इन हदीसों में हसद को दुनिया व आख़ेरत के लिए बहुत ज़्यादा हानिकारक बताया गया है। मिसाल के तौर पर कहा गया है कि हसद, दीन को तबाह करने वाला, ईमान को ख़त्म करने वाला, अल्लाह से दोस्ती के घेरे से बाहर निकालने वाला, इबादतों के क़बूल न होने का कारण और भलाइयों का अंत करने वाला है। हसद, तरह तरह के गुनाहों का रास्ता भी तय्यार करता है। हासिद इंसान हमेशा डिप्रेशन व तनाव में ग्रस्त रहता है। उसके आंतरिक दुखों व पीड़ाओं का कोई अंत नहीं होता। इस्लामी शिक्षाओं में इस बात पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिया गया है कि हासिद इंसान कभी भी मेंटली हिसाब से शांत व संतुष्ट नहीं रहता। वह ऐसी बातों पर दुःखी रहता है जिन्हें बदलने की उसमें क्षमता नहीं होती। वह अपनी वंचितता से दुःखी रहता है जबकि उसके पास न तो दूसरे से वह नेमत व अनुकंपा छीनने की क्षमता होती है और न ही वह उस नेमत को ख़ुद हासिल कर सकता है।कभी कभी हसद उन चीज़ों से लाभान्वित होने की ताक़त भी हासिद से छीन लेती है जो उसके पास होती हैं और वह उनसे आनंद उठा सकता है। इस तरह का इंसान मेंटल संतोष से वंचित होता है और यह बात तरह तरह के जटिल मेंटल व जिस्मानी बीमारियों में उसके ग्रस्त होने का कारण बनती है। इस तरह से कि आंतरिक डिप्रेशन, दुःख व चिंता धीरे धीरे हासिद इंसान को जिस्मानी हिसाब से कमज़ोर बना देती है और उसका जिस्म तरह तरह की बीमारियों में ग्रस्त होने के लिए तैयार हो जाता है। यही कारण है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम, हसद से दूरी को हेल्थ का कारण बताते हैं क्योंकि हसद, जिस्म को स्वस्थ नहीं रहने देती। मेंटल संतोष, सुखी मन और चिंता से दूरी ऐसी बातें हैं जो हासिद इंसान में नहीं हो सकतीं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहा है कि हासिद, सबसे कम सुख उठाने वाला इंसान होता है।अब सवाल यह है कि इस्लामिक शिक्षाओं में हसद के एलाज के क्या रास्ते दर्शाए गए हैं? इसके जवाब में कहा जा सकता है कि इस्लाम ने हसद के एलाज के लिए विभिन्न रास्ते सुझाए हैं। इसके एलाज का पहला स्टेज यह है कि इंसान, अपनी ज़िंदगी तथा रूह पर हसद के हानिकारक नतीजों व प्रभावों के बारे में चिंतन करे और यह देखे कि हसद से उसकी दुनिया व आख़ेरत को क्या नुक़सान होता है? हसद के एलाज के लिए पहले उसके कारणों को समझना चाहिए ताकि उन्हें ख़त्म करके इस बीमारी का सफ़ाया किया जा सके। हसद का मुख्य कारण बुरे विचार रखना है। नेचुरल सिस्टम और अल्लाह के बारे में नकारात्मक सोच, हसद उत्पन्न होने के कारणों में से एक है क्योंकि हासिद इंसान दूसरों पर अल्लाह की नेमतों को सहन नहीं कर पाता या यह सोचने लगता है कि अल्लाह उससे प्यार नहीं करता और इसी लिए उसने अमुक नेमत उसे प्रदान नहीं की है।यही कारण है कि इस्लामिक शिक्षाओं में दूसरों के बारे में सकारात्मक व भले विचार रखने पर बहुत ज़्यादा बल दिया गया है। अल्लाह, उसके गुणों तथा उसके कामों पर ईमान को मज़बूत बनाना, हसद को रोकने का एक दूसरे रास्ता है। अर्थात इंसान को यह यक़ीन रखना चाहिए कि अल्लाह ने जिस इंसान को जो भी नेमत प्रदान की है वह उसकी दया, न्याय व तत्वदर्शिता के आधार पर है। अल्लाह की कृपाओं, नेमतों और इस बात पर ध्यान कि उसकी नेमतों से लाभान्वित होने में सीमितता उन तत्वदर्शिताओं के कारण है जो अल्लाह ने इस दुनिया के संचालन के लिए दृष्टिगत रखी हैं, हासिद के भीतर पाए जाने वाले नकारात्मक विचारों को कंट्रोल कर सकता है। अगर इंसान इस यक़ीन तक पहुंच जाए कि अल्लाह के इल्म व तत्वदर्शिता के बिना किसी पेड़ तक से कोई पत्ता नहीं गिरता तो फिर वह इस नतीजे तक पहुंच जाएगा कि हर इंसान द्वारा किसी न किसी नेमत से लाभान्वित होने का मतलब यह है कि उसे किसी काम का इनाम दिया गया है, अल्लाह की ओर से उसका इम्तेहान लिया जा रहा है या फिर कोई दूसरे बात है जिससे वह अवगत नहीं है और केवल जानकार अल्लाह ही है जो यह जानता है कि वह क्या कर रहा है। इस बात पर ध्यान देने से इंसान के भीतर संतोष की भावना उत्पन्न होती है और जो चीज़ें उसे प्रदान की गई हैं उन पर वह संतुष्ट रहता है जिसके नतीजे में, दूसरों को हासिल नेमतों से उसे हसद नहीं होता।इंसान को इसी तरह यह कोशिश करनी चाहिए कि वह बुरी अंतरात्मा के बजाए अच्छी अंतरात्मा का मालिक हो। उसे दूसरे लोगों के पास मौजूद चीजों के बारे में ख़ुद को हीन भावना में ग्रस्त करने की जगह पर अपने स्वाभिमान और प्रतिष्ठा पर ध्यान केंद्रित रखना चाहिए। स्वार्थ और आत्ममुग्धता के बजाए अल्लाह की पहचान, अल्लाह से मुहब्बत तथा विनम्रता और दुश्मनी के बजाए दोस्ती से काम लेना चाहिए। हसद से मुक़ाबला करने का एक दूसरे रास्ता यह कि इंसान सभी लोगों से मुहब्बत करे और उन्हें बुरा भला कहने के स्थान पर उनकी सराहना करे, इस तरह से कि उसके और दूसरे लोगों के संबंधों में स्नेह, दोस्ती व दयालुता की ही छाया रहे। जो कुछ लोगों के पास है उस पर ध्यान न देना और अल्लाह ने हमें जो कुछ दिया है केवल उन्हीं चीज़ों पर ध्यान देना, हसद से मुक़ाबले के आंतरिक रास्तों में से एक है। अगर इंसान यह देखे कि उसके पास वह कौन कौन सी भौतिक व आध्यात्मिक नेमतें हैं जो दूसरों के पास नहीं हैं और वह कोशिश व परिश्रम करके इससे भी ज़्यादा नेमतें हासिल कर सकता है तो यह बात हासिद इंसान की इस बात में मदद करती है कि वह अपने भीतर हसद की जड़ों को ख़त्म कर दे।जिस इंसान से हसद किया जा रहा है वह भी हसद को ख़त्म करने में मदद कर सकता है। जब इस तरह का इंसान, हासिद इंसान से मुहब्बत करेगा तो वह भी अपने रवैये में तब्दीली लाएगा और दोस्ती के लिए उचित रास्ता तय्यार हो जाएगा। इस तरह हसद और बुरे विचारों का रास्ता बंद हो जाएगा। क़ुरआने मजीद के सूरए फ़ुस्सेलत की 34वीं आयत में लोगों के बीच पाए जाने वाले नफ़रत को ख़त्म करने के लिए यही मेथेड सुझाया गया है। इस आयत में अल्लाह कहता है। (हे पैग़म्बर!) अच्छाई और बुराई कदापि एक समान नहीं हैं। बुराई को भलाई से दूर कीजिए, सहसा ही (आप देखेंगे कि) वही इंसान, जिसके और आपके बीच दुश्मनी है, मानो एक क़री 

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