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घबराओ नहीं[जरुर पढे]

युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...

पैग़म्बरे इस्लाम की पत्नी जो अरब की सबसे बड़ी व्यापारी एवं पहली मुसलमान महिला थी

10th Ramzan - Death anniversary of Hazrat Khadija(a.s.)
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की पैग़म्बरी के ऐलान के दस साल बाद पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. की बीवी हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा ने देहांत किया।
हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा के निधन से पैग़म्बरे इस्लाम शोक व दुख के अथाह सागर में डूब गए। पैग़म्बरे इस्लाम स पर दुख का यह पहाड़ उनके चचा हज़रत अबू तालिब अलैहिस्सलाम के निधन के स्वर्गवास के कुछ थोड़े से अंतराल के बाद टूट पड़ा। इन दो महबूब हस्तियों के जुदाई से पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. की रूह इतनी दुखी हुई कि उन्होंने इस साल को आमुल हुज़्न (शोकवर्ष) का नाम दे दिया। हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा के निधन पर पैग़म्बरे इस्लाम स बहुत रोए और उन्होंने कहाः ख़दीजा के जैसा कहां कोई मिल सकता है कि उन्होंने उस समय मेरी पुष्टि की जब लोग मुझे झुठला रहे थे। इलाही दीन के मामलों में उन्होंने मेरी मदद की और मदद के लिए अपनी जायदाद पेश कर दी।

हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा का संबंध क़ुरैश क़बीले के एक प्रतिष्ठित परिवार से था। पैग़म्बरे इस्लाम स की पैग़म्बरी की ऐलान से पहले वह हज़रत इब्राहीम के तौहीद परस्त थीं। जनकल्याण की भावना के नाते समाज में हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा को बड़ी ख्याति प्राप्त थी। उनकी पास बहुत दौलत थी और उन्हें हेजाज़ के बड़े व्यापारियों में गिना जाता था।
हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा के दूरदर्शी व सूझबूझ वाली महिला थीं। उन्हें आध्यात्मिक विषयों से विशेष रूचि थी और वह आसमानी ग्रंथों की शिक्षाओं से परिचित थीं। इसी लिए उन्हें पहले से ही अंतिम इलाही पैग़म्बर के आगमन की प्रतीक्षा थी और वह इस बारे में अपने चचेरे भाई वरक़ा बिन नूफ़िल और अन्य जानकार लोगों से पूछती रहती थीं। संयोग यह हुआ कि वह हज़रत मोहम्मद स से उनकी पैग़म्बरी की ऐलान के कई वर्ष पूर्व ही उनसे परिचित हो गईं। उन्होंने एक व्यापारिक यात्रा में अपने काफ़िले का नेतृत्व हज़रत मोहम्मद स को सौंप दिया जो लोगों के बीच अपनी सच्चाई और ईमानदारी के लिए विशेष ख्याति रखते थे। इस यात्रा ने हज़रत मोहम्मद स के शिष्टाचारिक व गुणों से हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा को भलीभांति अवगत करा दिया। हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा को आभास हुआ कि हज़रत मोहम्मद स बड़े पवित्र व महान व्यक्तित्व के स्वामी तथा दूसरों से श्रेष्ठ हैं। 
मानवीय मूल्यों का पालन करते हैं और उनकी रूह बड़ी महान विशेषताओं से सुसज्जित है। हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा को पता था कि हज़रत मोहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम वंचितों के सहायक और लोगों के अधिकारों के रक्षक हैं। वह हज़रत मोहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की ईमानदारी, सुंदर व्यवहार, सच्चाई, सरल स्वभाव और महानता का प्रशंसक बन गईं।

हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा का यह भी पता था कि हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के साथ उनका जीवन पवित्रता और आध्यमिकता के मार्ग पर आगे बढ़ेगा। 
हज़रत मोहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के प्रति हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा का झुकाव और उनसे विवाह पर अज्ञानता के काल के लोगों ने कड़ी प्रतिक्रिया दिखाई। कारण यह था कि उस समय सामाजिक संबंधों का आधार विदित भौतिक संसाधन थे जबकि हज़रत मोहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम पास धन दौलत नहीं थी। यही कारण था कि हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से विवाह के कारण कुछ महिलाओं ने हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा की बुराई करना आरंभ कर दिया और उन पर व्यंग किया कि तुमने धन दौलत की स्वामी होने के बावजूद एक ग़रीब से विवाह किया।

व्यंग के इन बाणों के उत्तर में हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा ने कहा कि क्या तुम्हारे बीच कोई हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के समान है। क्या हेजाज़ की धरती पर इन शिष्टाचारिक गुणों से सुसज्जित किसी व्यक्ति से तुम लोग परिचित हो। मैंने इन गुणों के आधार पर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से विवाह किया है। उस समय का हठी समाज हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा के इन तर्कों को समझने की क्षमता नहीं रखता था। इसी लिए क़ुरैश क़बीले के महिलाएं उनसे अप्रसन्न ही रहीं। जब पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की ऐलान हुई तो क़ुरैश की महिलाओं के व्यवहार की कठोरता और रूखापन और बढ़ गया। इसी लिए जब हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा ने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा को जन्म दिया तो यह महिलाएं मदद के लिए नहीं आईं। इन बातों से हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा को बड़ा दुख पहुंचा किंतु इलाही दीन की भरपूर मदद करने पर हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा की ईश्वर ने अनेक अवसरों पर मदद की और उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ा।
बहुत अधिक धन और उच्च सामाजिक स्थान की स्वामी होने के बावजूद हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से बड़े आदर के साथ पेश आतीं और उनका बड़ा सम्मान करती थीं। उनके व्यवहार में घमंड की हल्की सी भी कोई झलक नहीं थी। हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा को पता था कि हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम को ईश्वर की उपासना से बड़ा गहरा लगाव है इसी लिए वह इस बात का बड़ा ध्यान रखती थीं कि पैग़म्बरे इस्लाम को उपासना का भरपूर समय मिले और वह निश्चिंत होकर ईश्वर का स्मरण करें।

पैग़म्बरी की ऐलान से पूर्व हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम नूर पर्वत की ऊंचाई पर स्थित हेरा नामक गुफा में हर महीने के कई बार जाते थे और वहां चिंतन एवं उपासना करते थे। हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा को अपने पति की इस पवित्र भावना की जानकारी थी इसी लिए वह बड़ी ख़ुशी से उन्हें विदा करती थीं और उनके साथ हज़रत अली अलैहिस्सलाम को भेजती थीं और कभी स्वयं भी साथ जाती थीं। पैग़म्बरी की ऐलान के बाद जब पैग़म्बरे इस्लाम के बहुत से नातेदारों ने उनका साथ छोड़ दिया था हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा पूरी निष्ठा के साथ ईमान लाईं और पैग़म्बरे इस्लाम के समर्थन का स्थायी संकल्प किया। हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा केवल ज़बान से ईमान नहीं लाईं बल्कि उन्हों अपनी पूरी जायदाद पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले कर दी ताकि वह उसे इस्लाम दीन के लिए प्रयोग करें। जब शोबे अबू तालिब नामक पहाड़ी स्थान पर शत्रुओं ने मुसलमानों की आर्थिक नाकाबंदी कर दी थी उस समय हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा की आर्थिक और वैचारिक मदद व सहयोग पूर्णतः स्पष्ट था। नाकाबंदी समाप्त हो जाने के बाद भी हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा के धन से मुसलमानों की मदद जारी रही। हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने भी कहा कि शोबे अबू तालिब की नाकाबंदी के समय हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा की दौलत से मेरी बड़ी मदद हुई।

पैग़म्बरे इस्लाम के साथ अपने वैवाहिक जीवन में हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा ने बड़े ही धैर्य व संयम से काम लिया क्योंकि उन्हें उस मार्ग की सच्चाई पर पूरा विश्वास था जिसे अंतिम इलाही दूत के रूप में पैग़म्बरे इस्लाम ने मानवता के कल्याण के लिए चुना था। पैग़म्बरी की ऐलान से पूर्व और उसके बाद जीवन के हर चरण में हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा हज़रत मोहम्मद स पर न्योछावर होती रहती थीं। वह अपने व्यवहार से पैग़म्बरे इस्लाम का दुख बांटती थीं। वह मानवता के इस महान शिक्षक की सलाहकार की भूमिका निभाती रहीं।
विख्यात मुस्लिम इतिहासकार इब्न हश्शाम लिखते हैं

हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा पैग़म्बरे इस्लाम पर ईमान लाईं उनकी बात की पुष्टि की और उनका समर्थन किया। ईश्वर उनके माध्यम से पैग़म्बरे इस्लाम को शांति प्रदान करता था। पैग़म्बरे इस्लाम को जब भी कोई चिंताजनक समाचार मिलता ईश्वर हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा के माध्यम से उनका दुख कम करता था। ईश्वार की कृपा हो हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा पर।

तिहास में आया है कि एक दिन मक्के के अनेकश्वरवादियों ने पत्थर मार मार कर पैग़म्बरे इस्लाम को घायल कर दिया और हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा के घर तक उनका पीछा किया और फिर घर पर भी पत्थर फेंके। इसी बीच हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा घर से बाहर निकलीं और उन्होंने कहा कि क्या तुम लोगों को अपने क़बीले की सम्मानीय महिला के घर पर पत्थराव करते हुए लज्जा नहीं आती। यह सुनकर अनेकेश्वरवादी लज्जित हुए और वह वहां से हट गए। इसके बाद हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा ने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लाल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के घावों को साफ़ किया और उस पर मरहम रखा।
इसी अवसर पर पैग़म्बरे इस्लाम ने ईश्वर का सलाम हज़रत ख़दीजा को पहुंचाया और उनके लिए स्वर्ग में एक महल बनाए जाने की शुभसूचना दी। जब मुसलमानों की आर्थिक नाकाबंदी की गई थी तब हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा ने बड़ा दुखा उठाया। वह हमेंशा धन दौलत में रहीं किंतु इस अवसर पर उन्हें भूख और प्यास में दिन रात बिताने पड़। इसका उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ा वह इसी नाकाबंदी के कारण बीमार हुईं और उसी बीमारी में उनका स्वर्गवास हो गया।
जीवन के अंतिम क्षणों में हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाहे अलैहा ने यह वाक्य कहे थेः हे ईश्वर के दूत मैं ने उस तरह आपकी सेवा नहीं की जैसी मुझे करनी चाहिए थी मुझे क्षमा कीजिए मैं आपकी प्रसन्नता कि सिवा कुछ नहीं चाहती।

इस प्रकार पहली मुसलमान महिला ने अंतिम इलाही दूत के साथ गौरवपूर्ण समय बिताने के पश्चात ६५ वर्ष की आयु में संसार से विदा ली
Via - ABNA

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