Skip to main content

Purpose OF Azadari- Moharram 2021

 

Amaal-e-Shab-e-Qadr in Hindi

उन्नीसवी रात यह शबे क़द्र की पहली रात है और शबे क़द्र के बारे में कहा गया है कि यह वह रात है जो पूरे साल की रातों से अधिक महत्व और फ़ज़ीलत रखती है, और इसमें किया गया अमल हज़ार महीनों के अमल से बेहतर है शबे क़द्र में साल भर की क़िस्मत लिखी जाती है और इसी रात में फ़रिश्ते और मलाएका नाज़िल होते हैं और इमाम ज़माना (अ) की ख़िदमत में पहुंचते हैं और जिसकी क़िस्मत में जो कुछ लिखा गया होता है उसको इमाम ज़माना (अ) के सामने पेश करते हैं। इसलिए हर मुसलमान को चाहिए कि इस रात में पूरी रात जागकर अल्लाह की इबादत करे और दुआएं पढ़ता रहे और अपने आने वाले साल को बेहतर बनाने के लिए अल्लाह से दुआ करे।
शबे क़द्र के आमाल दो प्रकार के हैं: एक वह आमाल हैं जो हर रात में किये जाते हैं जिनको मुशतरक आमाल कहा जाता है और दूसरे वह आमाल हैं जो हर रात के विशेष आमाल है जिन्हें मख़सूस आमाल कहा जाता है।
वह आमाल जो हर रात में किये जाते हैं
1. ग़ुस्ल (सूरज के डूबते समय किया जाए और बेहतर है कि मग़रिब व इशा की नमाज़ को इसी ग़ुस्ल के साथ पढ़ा जाय)
2. दो रकअत नमाज़, जिसकी हर रकअत में एक बार अलहम्द और सात बार तौहीद (क़ुल हुवल्लाहो अहद) बढ़ा जाए। और नमाज़ समाप्त करने के बाद सत्तर बार अस्तग़फ़ेरुल्लाहा व अतूबो इलैह पढ़े रिवायत में है कि जो भी यह करे अल्लाह उसके जगह से उठने से पहले ही उसको और उसके मां बाप को बख़्श देता है।
3. क़ुरआन को खोले और सामने रखने के बाद कहे अल्ला हुम्मा इन्नी अस्अलोका बेकिताबेकल मुनज़ले वमा फ़ीहे इस्मोकल अकबरो व असमाओकल हुस्ना वमा योख़ाफ़ो व युरजा अन तजअलनी मिन ओताक़ाएक़ा मेनन्नार उसके दुआ करे।
4. क़ुरआन को सर पर रखे और यह दुआ पढ़े
अल्लाहुम्मा बेहक़्क़े हाज़ाल क़ुर्आने व बेहक़्क़े मन अरसलतहु व बेहक़्क़े कुल्ले मोमिनिन मदहतहु फ़ीहे व बेहक़्क़ेका अलैहिम फ़ला अहदा आअरफ़ो बे हक़्क़ेका मिनका
10 बार कहे बेका या अल्लाहो
10 बार कहे बे मोहम्मदिन
10 बार कहे बे अलिय्यिन
10 बार कहे बे फ़ातेमता
10 बार कहे बिल हसने
10 बार कहे बिल हुसैने
10 बार कहे बे अलीयिब्निल हुसैने
10 बार कहे बे मोहम्मदिबने अली
10 बार कहे बे जाफ़रिबने मोहम्मद
10 बार कहे बे मुसा इब्ने जाफ़ारिन
10 बार कहे बे अलीयिबने मूसा
10 बार कहे बे मोहम्मद इब्ने अली
10 बार कहे बे अली इब्ने मोहम्मदिन
10 बार कहे बिल हसनिबने अलीयिन
10 बार कहे बिल हुज्जते
इसके बाद जो भी चाहे दुआ करे।
5. ज़ियारते इमाम हुसैन (अ) रिवायत में है कि जब शबे क़द्र आती है जो आवाज़ देने वाला सातवें आसमान से आवाज़ देता है कि ख़ुदा ने बख़्श दिया उसको जो इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र की ज़ियारत करे।
6. इसा रात मे जागना। रिवायत में आया है कि जो भी इस रात को (ख़ुदा की इबादत में ) जागे ख़ुदा उसके पापों को क्षमा कर देता है चाहे वह आसमान के सितारों से ज़्यादा और पहाड़ों एवं नदियों से भी अधिक भारी ही क्यों न हों।
7. सौ रकअत नमाज़ पढ़े, जिसकी बहुत फ़ज़ीलत है और बेहतर यह है कि हर रअकत में अलहम्द के बाद दस बार क़ुल हुवल्लाहो अहद पढ़े।
8.इस दुआ को पढ़े  اَللّهُمَّ اِنّی اَمسَیتُ لَکَ عَبدًا داخِرًا لا اَملِکُ لِنَفسی وَ اَعتَرِفُ (पूरी दुआ मफ़ातीहुल जनान में देख लें)
हर रात के विशेष आमाल
उन्नीसवी रात के आमाल
1. और बार कहे अस्तग़फ़ेरुल्लाहा रब्बी व अतूबो इलैहे।
2. सौ बार कहे अल्ला++हुम्मल अन क़तलता अमीरल मोमिनीना
3. यह दुआ  "یا ذَالَّذی کانَ..."  पूरी दुआ मफ़ातीहुल जनान में देख़े।
4. यह दुआ " اَللّهَمَّ اجعَل فیما تَقضی وَ..." मफ़ातीह में देख़े
एक्कीसवी रात
इस रात की फ़ज़ीलत उन्नीसवी रात से भी अधिक है इर रात में भी मुश्तरक आमाल के साथ साथ ही दुआ ए जौशन कबीर जौशन सग़ीर आदि को पढ़ा जाए और इस रात के लिए रिवायतों में ग़ुस्ल नमाज़, इबादत आदि की बहुत ताकीद की गई है।
इमाम सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं कि कार्य और क़िस्मतें उन्नीसवी रात को लिखी जाती हैं और एक्कीसवी रात को मुस्तहकम होती है और तेइसवीं रात को उन पर हस्ताक्षर किया जाता है। (वसाएलुश्शिया जिल्द 7 पेज 259)
तेइसवी रात के आमाल
यह रात बहुत ही अधिक फज़ीलत वाली है इमाम सादिक़ (अ) की रिवायत के अनुसार इस रात को हमारी क़िस्मतों पर हस्ताक्षर होते हैं और साल भर के लिए हमारी क़िस्मतों पर मोहर लगती है इसलिए हमको चाहिए कि इर रात में जितना हो सके इबादत में मसरूफ़ रहें और ख़ुदा से अपने और शियों के लिए बेहतरीन चीज़ को मांगें और दुआ करें कि अल्लाह हम पर अपनी रहम वाली निगाह डाले।
1. ग़ुस्ल
2. पूरी रात इबादत में जागना।
3. सौ रकअत नमाज़
4. ज़ियारते इमाम हुसैन (अ)
5. सूरा अनकबूत, रूम और दुख़ान पढ़ना
6. एक हज़ार बार सुना इन्ना अनज़लना पढ़ना।
7. इमाम ज़मान (अ) के लिए दुआ
तेइसवीं रात की दुआ
या रब्बा लैलतिल क़द्रे व जाएलाहा ख़ैरन मिन अलफ़े शहरिन व रब्बल लैइले वन्नहारे वल जिबाले वल बेहारे वज़्ज़ोलमे वलअनवारे वलअरज़े वस्समाए या बारिओ या मुसव्वेरो या हन्नानो या मन्नानो या अल्लाहो या रहमानो या अल्लाहो या क़य्यूमो या अल्लाहो या बदीओ या अल्लाहो या अल्लाहो या अल्लाहो लकल अस्माउल हुसना वल अमसालुल उलया वल किबरियाओ वल आलाओ अस्अलोका अल तोसल्ले अला मोहम्मदिन व आले मोहम्मदिन व अल तजअला इस्मी फ़ी हाज़िहिल लैइलते फ़िस सअदाए व रूही मअश्शोहदाए व एहसानी फ़ी इल्लीयीना व एसाअती मग़फ़ूरतन व अन तहबली यक़ीनन तोबाशेरो बिहि क़ल्बी व ईमानन युज़हबुश्शक्का अन्नी व तर्ज़ीनी बेमा क़समता ली वातेना फ़िद्दुनिया हसनतन व फ़िल आख़ेरते हसनतन व क़िना अज़ाबन्नारिल हरीक़े वर ज़ुक़नी फ़ीहा ज़िकरका व शुकरका वर्रग़बतन इलैका वल इनाबतन वत्तौबतन वत्तौफ़ीक़ा लेमा वफ़्फ़क़ता लहु मोहम्मदन व आले मोहम्मदिन अलैहेमुस्सलाम।
यह दुआ पढ़े
अल्लाहुम्मा कुल लेवलीयेकल हुज्जतिबनिल हसने सलवातोका अलैहे व अला आबाएही फ़ी हाज़ेहिस्साअते व फ़ी कुल्ले साअतिन वलीयन व हाफ़ेज़न व क़ाएदन व नासेरन व दलीलन व अयनन हत्ता तुस्केनहु अरज़का तौअन व तोमत्तेअहु फ़ीहा तवीलन या मुदब्बिरल उमूरे या बाइसा मन फ़िल क़ुबूरे या मुजरियल बुहूरे या मुलय्यिनल हदीदे ले दाऊदा सल्ले अला मोहम्मदिन व आले मोहम्मदिन वफ़अल बी कज़ा व कज़ा अल लैइलता अल लैइलता ( कज़ा व कज़ा के स्थान पर दुआ करे)

Sources : abna24 

Comments

Popular posts from this blog

नियोग प्रथा पर मौन, हलाला 3 तलाक पर आपत्ति ? एक बार जरुर पढ़े

3 तलाक एवं हलाला पर आपत्ति जताने वाले आखिर नियोग प्रथा पर खामोश क्यों हैं, हलाला ठीक है या ग़लत कम से कम विवाहित महिला शारीरिक संबंध अपने पति से ही बनाती है! पर नियोग प्रथा से संतान सुख के लिए किसी भी ब्राह्मण पुरुष से नियोग प्रथा के अनुसार उससे शारीरिक संबंध बना सकती है! यह कितना बड़ा अत्याचार और पाप हुआ? नियोग प्रथा क्या है? हिन्दू धर्म में एक रस्म है जिसे नियोग कहते है , इस प्रथा के अनुसार किसी विवाहित महिला को बच्चे पैदा न हो रहे हो तो वो किसी भी ब्राह्मण पुरुष से नियोग प्रथा के अनुसार उससे शारीरिक संबंध बना सकती है! नियोग प्रथा के नियम हैं:- १. कोई भी महिला इस प्रथा का पालन केवल संतान प्राप्ति के लिए करेगी न कि आनंद के लिए। २. नियुक्त पुरुष केवल धर्म के पालन के लिए इस प्रथा को निभाएगा। उसका धर्म यही होगा कि वह उस औरत को संतान प्राप्ति करने में मदद कर रहा है। ३. इस प्रथा से जन्मा बच्चा वैध होगा और विधिक रूप से बच्चा पति-पत्नी का होगा , नियुक्त व्यक्ति का नहीं। ४. नियुक्त पुरुष उस बच्चे के पिता होने का अधिकार नहीं मांगेगा और भविष्य में बच्चे से कोई रिश्ता नहीं रखेगा।

जन्म पवित्र स्थल काबे के अंदर हुआ और शहादत मस्जिद में

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के दामाद और उत्तराधिकारी हज़रत अली (अ) जब 19 रमज़ान की सुबह सहरी के बाद सुबह की नमाज़ के लिए मस्जिद में पहुंचे और नमाज़ के दौरान जब वे सज्दे में गए तो इब्ने मुल्जिम नामक व्यक्ति ने ज़हर में बुझी तलवार से उनके सिर पर घातक वार किया।  19 रमज़ान की रात इस्लाम के अनुसार, रमज़ान की उन तीन रातों में से एक है, जिसमें रात भर जागकर इबादत करने का अत्यधित सवाब है।  हज़रत अली गंभीर रूप से घायल होने के तीसरे दिन अर्थात 21 रमज़ान की पवित्र रात को शहीद हो गए।  19 और 21 रमज़ान को  दुनिया भर के शिया मुसलमान ईश्वर की इबादत के साथ साथ हज़रत अली (अ) की शहादत का शोक भी मनाते हैं और अज़ादारी करते हैं।  हज़रत अली (अ) संसार की ऐसी विशिष्ट हस्ती हैं जिनका जन्म पवित्र स्थल काबे के अंदर हुआ था और शहादत मस्जिद में। 

अहले सुन्नत के मुक़द्देसात (प्रतीकों) का अपमान करना जायज़ नहीं है - शिया सुन्नी एकता

वैसे तो इस्लाम हर धर्म का आदर करने का आदेश देता है  किसी दुसरे धर्मों (ग़ैर इस्लामी) के प्रतीकों का अपमान करना भी  इस्लाम में वर्विज (मना) है पर कुछ लोग एक दुसरे (अपने इस्लाम) के फिरके के लोगों का अपमान करने की सोचते हैं जो की यह इस्लामी शिक्षा के विपरीत है। दरअसल ऐसे लोग इस्लाम के दुश्मन होते हैं जो इस्लाम के दुश्मनों के हाथ मजबूत करते हैं। अहले सुन्नत के मुक़द्देसात (प्रतीकों)  का  अपमान करना हराम है और जाहिर है कि जो कोई भी शिया के नाम पर अहले सुन्नत के मुक़द्देसात का अपमान करता है चाहे वो  सुन्नी  होकर शिया मुक़द्देसात का अपमान करता है वह इस्लाम का दुश्मन है। क्या अहले सुन्नत के मुक़द्देसात (प्रतीकों) का  अपमान जैसे खुलुफा  और अहले सुन्नत के कुछ मनपसंद सहाबा  के नाम अशोभनीय तरीके से लेना   जायज़ (वेध) है? दुनिया भर के  शिया धार्मिक केन्द्रों (ईरान और इराक) के ओलामाओ (विद्वानों)  ने फतवा दिया है की अहले सुन्नत के मुक़द्देसात (प्रतीकों)  का  अपमान करना हराम है अधिक जानकारी के लिए मैं यहाँ 12 शिया आलिमों (विद्वानों) के फतवे पेश कर रहें हैं 

शहादत : हज़रत इमाम बाकिर और इस्लाम मे सिक्के की ईजाद

 हज़रत इमाम मौहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम पहली रजब 57 हिजरी को जुमा के दिन मदीनाऐ मुनव्वरा मे पैदा हुऐ। अल्लामा मजलिसी लिखते है कि जब आप बत्ने मादर मे तशरीफ लाऐ तो आबाओ अजदाद की तरह घर मे गैब की आवाज़े आने लगी और जब नो महीने पूरे हुऐ तो फरीश्तो की बेइंतेहा आवाज़े आने लगी और शबे विलादत एक नूर जाहिर हुआ और आपने विलादत के बाद आसमान का रूख किया और (हजरत आदम की तरह) तीन बार छींके और खुदा की हम्द बजा लाऐ, पूरे एक दिन और रात आपके हाथ से नूर निकलता रहा। आप खतना शुदा, नाफ बुरीदा और तमाम गंदगीयो से पाक पैदा हुऐ। (जिलाउल उयून पेज न. 259-260) नाम, लक़ब और कुन्नीयत सरवरे कायनात रसूले खुदा (स.अ.व.व) और लोहे महफूज़ के मुताबिक आपका नाम मौहम्मद था और आपकी कुन्नीयत अबुजाफर थी और आपके बहुत सारे लक़ब थे कि जिन मे बाक़िर, शाकिर, हादी ज़्यादा मशहूर है। (शवाहेदुन नबुवत पेज न. 181) लक़बे बाक़िर की वजह बाक़िर बकरः से निकला है और इसका मतलब फैलाने वाला या शक़ करने देने वाला है। (अलमुनजिद पेज न. 41) इमाम बाक़िर को बाक़िर इस लिऐ कहा जाता है कि आपने उलूम को लोगो के सामने पेश किया और अहक

चुगली,ग़ीबत यानी पीठ पीछे बुराई करना। इस्लामी शिक्षाओं में बहुत ज़्यादा आलोचना की गयी है

ग़ीबत यानी पीठ पीछे बुराई करना है, ग़ीबत एक ऐसी बुराई है जो इंसान के मन मस्तिष्क को नुक़सान पहुंचाती है और सामाजिक संबंधों के लिए भी ज़हर होती है। पीठ पीछे बुराई करने की इस्लामी शिक्षाओं में बहुत ज़्यादा आलोचना की गयी है। पीठ पीछे बुराई की परिभाषा में कहा गया है पीठ पीछे बुराई करने का मतलब यह है कि किसी की अनुपस्थिति में उसकी बुराई किसी दूसरे इंसान से की जाए कुछ इस तरह से कि अगर वह इंसान ख़ुद सुने तो उसे दुख हो। पैगम्बरे इस्लाम स.अ ने पीठ पीछे बुराई करने की परिभाषा करते हुए कहा है कि पीठ पीछे बुराई करना यह है कि अपने भाई को इस तरह से याद करो जो उसे नापसन्द हो। लोगों ने पूछाः अगर कही गयी बुराई सचमुच उस इंसान में पाई जाती हो तो भी वह ग़ीबत है? तो पैगम्बरे इस्लाम ने फरमाया कि जो तुम उसके बारे में कह रहे हो अगर वह उसमें है तो यह ग़ीबत है और अगर वह बुराई उसमें न हो तो फिर तुमने उस पर आरोप लगाया है।यहां पर यह सवाल उठता है कि इंसान किसी की पीठ पीछे बुराई क्यों करता है?  पीठ पीछे बुराई के कई कारण हो सकते हैं। कभी जलन, पीठ पीछे बुराई का कारण बनती है। जबकि इंसान को किसी दूसरे की स्थिति से ईर्ष

इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम पर सलाम हो

       इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने कर्बला की महान घटना के बाद लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला। सज्जाद, इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को एक प्रसिद्ध उपाधि थी। महान ईश्वर की इच्छा से इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम कर्बला में जीवित बच गये था ताकि वह कर्बला की महान घटना के अमर संदेश को लोगों तक पहुंचा सकें।        इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ज्येष्ठ सुपुत्र हैं और 36 हिजरी क़मरी में उनका जन्म पवित्र नगर मदीने में हुआ और 57 वर्षों तक आप जीवित रहे। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के जीवन का महत्वपूर्ण भाग कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद आरंभ हुआ। कर्बला की महान घटना के समय इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम बीमार थे और इसी कारण वे कर्बला में सत्य व असत्य के युद्ध में भाग न ले सके।         कर्बला की घटना का एक लेखक हमीद बिन मुस्लिम लिखता है “आशूर के दिन इमाम हुसैन अलैहिस्लाम के शहीद हो जाने के बाद यज़ीद के सैनिक इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के पास आये। वह बीमार और बिस्तर पर सोये हुए थे। चूंकि यज़ीद की सैनिकों को यह आदेश द

"लब्बैक या हुसैन“ कहने पर समाजवादी सरकार ने लगाई पाबन्दी

भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में शिया मुसलमानों पर लगातार राज्य सरकार की ओर से कड़ाई जारी है, शनिवार को प्रशासन ने शिया मुसलमानों द्वारा लगाए जाने वाला नारा लब्बैक या हुसैन पर आपत्ति जताई है। इस्लामिक कलंडर के मोहर्रम महीने में शिया मुसलमानों के सबसे बड़े शोक कार्यक्रमों के लिए लखनऊ प्रशासन दिन प्रतिदिन नए नए नियम बना रहा है। मोहर्रम के आरंभ में काले झंड़े और धार्मिक बैनरों पर प्रशासन द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया था, जिसका भारत में शिया मुसलमानों के वरिष्ठ धर्मगुरू और इमामे जुमा लखनऊ मौलाना कल्बे जवाद द्वारा कड़ा विरोध किया था।    मौलाना क्लबे जवाद ने एक बयान जारी कर कहा है कि राज्य की समाजवादी सरकार लगातार शिया समुदाय के साथ ना इंसाफी कर रही है, उन्होंने कहा कि यूपी सरकार प्रदेश के एक कैबिनेट मंत्री के इशारे पर शिया समुदाय के अधिकारों को छीनने का प्रयास कर रही है।   इमामे जुमा लखनऊ ने कहा कि हम ज़ुल्म के आगे कभी नहीं झुकने वाले चाहे वह जितना भी ज़ुल्म कर ले, उन्होंने कहा कि अज़ादारी हमारा हक़ है और हम अपने हक़ की प्राप्ति के लिए अपनी जान देने को भी त

हिन्दू और मुसलमान की मोहब्बत आप भी देखें