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घबराओ नहीं[जरुर पढे]

युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...

Amaal-e-Shab-e-Qadr in Hindi

उन्नीसवी रात यह शबे क़द्र की पहली रात है और शबे क़द्र के बारे में कहा गया है कि यह वह रात है जो पूरे साल की रातों से अधिक महत्व और फ़ज़ीलत रखती है, और इसमें किया गया अमल हज़ार महीनों के अमल से बेहतर है शबे क़द्र में साल भर की क़िस्मत लिखी जाती है और इसी रात में फ़रिश्ते और मलाएका नाज़िल होते हैं और इमाम ज़माना (अ) की ख़िदमत में पहुंचते हैं और जिसकी क़िस्मत में जो कुछ लिखा गया होता है उसको इमाम ज़माना (अ) के सामने पेश करते हैं। इसलिए हर मुसलमान को चाहिए कि इस रात में पूरी रात जागकर अल्लाह की इबादत करे और दुआएं पढ़ता रहे और अपने आने वाले साल को बेहतर बनाने के लिए अल्लाह से दुआ करे।
शबे क़द्र के आमाल दो प्रकार के हैं: एक वह आमाल हैं जो हर रात में किये जाते हैं जिनको मुशतरक आमाल कहा जाता है और दूसरे वह आमाल हैं जो हर रात के विशेष आमाल है जिन्हें मख़सूस आमाल कहा जाता है।
वह आमाल जो हर रात में किये जाते हैं
1. ग़ुस्ल (सूरज के डूबते समय किया जाए और बेहतर है कि मग़रिब व इशा की नमाज़ को इसी ग़ुस्ल के साथ पढ़ा जाय)
2. दो रकअत नमाज़, जिसकी हर रकअत में एक बार अलहम्द और सात बार तौहीद (क़ुल हुवल्लाहो अहद) बढ़ा जाए। और नमाज़ समाप्त करने के बाद सत्तर बार अस्तग़फ़ेरुल्लाहा व अतूबो इलैह पढ़े रिवायत में है कि जो भी यह करे अल्लाह उसके जगह से उठने से पहले ही उसको और उसके मां बाप को बख़्श देता है।
3. क़ुरआन को खोले और सामने रखने के बाद कहे अल्ला हुम्मा इन्नी अस्अलोका बेकिताबेकल मुनज़ले वमा फ़ीहे इस्मोकल अकबरो व असमाओकल हुस्ना वमा योख़ाफ़ो व युरजा अन तजअलनी मिन ओताक़ाएक़ा मेनन्नार उसके दुआ करे।
4. क़ुरआन को सर पर रखे और यह दुआ पढ़े
अल्लाहुम्मा बेहक़्क़े हाज़ाल क़ुर्आने व बेहक़्क़े मन अरसलतहु व बेहक़्क़े कुल्ले मोमिनिन मदहतहु फ़ीहे व बेहक़्क़ेका अलैहिम फ़ला अहदा आअरफ़ो बे हक़्क़ेका मिनका
10 बार कहे बेका या अल्लाहो
10 बार कहे बे मोहम्मदिन
10 बार कहे बे अलिय्यिन
10 बार कहे बे फ़ातेमता
10 बार कहे बिल हसने
10 बार कहे बिल हुसैने
10 बार कहे बे अलीयिब्निल हुसैने
10 बार कहे बे मोहम्मदिबने अली
10 बार कहे बे जाफ़रिबने मोहम्मद
10 बार कहे बे मुसा इब्ने जाफ़ारिन
10 बार कहे बे अलीयिबने मूसा
10 बार कहे बे मोहम्मद इब्ने अली
10 बार कहे बे अली इब्ने मोहम्मदिन
10 बार कहे बिल हसनिबने अलीयिन
10 बार कहे बिल हुज्जते
इसके बाद जो भी चाहे दुआ करे।
5. ज़ियारते इमाम हुसैन (अ) रिवायत में है कि जब शबे क़द्र आती है जो आवाज़ देने वाला सातवें आसमान से आवाज़ देता है कि ख़ुदा ने बख़्श दिया उसको जो इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र की ज़ियारत करे।
6. इसा रात मे जागना। रिवायत में आया है कि जो भी इस रात को (ख़ुदा की इबादत में ) जागे ख़ुदा उसके पापों को क्षमा कर देता है चाहे वह आसमान के सितारों से ज़्यादा और पहाड़ों एवं नदियों से भी अधिक भारी ही क्यों न हों।
7. सौ रकअत नमाज़ पढ़े, जिसकी बहुत फ़ज़ीलत है और बेहतर यह है कि हर रअकत में अलहम्द के बाद दस बार क़ुल हुवल्लाहो अहद पढ़े।
8.इस दुआ को पढ़े  اَللّهُمَّ اِنّی اَمسَیتُ لَکَ عَبدًا داخِرًا لا اَملِکُ لِنَفسی وَ اَعتَرِفُ (पूरी दुआ मफ़ातीहुल जनान में देख लें)
हर रात के विशेष आमाल
उन्नीसवी रात के आमाल
1. और बार कहे अस्तग़फ़ेरुल्लाहा रब्बी व अतूबो इलैहे।
2. सौ बार कहे अल्ला++हुम्मल अन क़तलता अमीरल मोमिनीना
3. यह दुआ  "یا ذَالَّذی کانَ..."  पूरी दुआ मफ़ातीहुल जनान में देख़े।
4. यह दुआ " اَللّهَمَّ اجعَل فیما تَقضی وَ..." मफ़ातीह में देख़े
एक्कीसवी रात
इस रात की फ़ज़ीलत उन्नीसवी रात से भी अधिक है इर रात में भी मुश्तरक आमाल के साथ साथ ही दुआ ए जौशन कबीर जौशन सग़ीर आदि को पढ़ा जाए और इस रात के लिए रिवायतों में ग़ुस्ल नमाज़, इबादत आदि की बहुत ताकीद की गई है।
इमाम सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं कि कार्य और क़िस्मतें उन्नीसवी रात को लिखी जाती हैं और एक्कीसवी रात को मुस्तहकम होती है और तेइसवीं रात को उन पर हस्ताक्षर किया जाता है। (वसाएलुश्शिया जिल्द 7 पेज 259)
तेइसवी रात के आमाल
यह रात बहुत ही अधिक फज़ीलत वाली है इमाम सादिक़ (अ) की रिवायत के अनुसार इस रात को हमारी क़िस्मतों पर हस्ताक्षर होते हैं और साल भर के लिए हमारी क़िस्मतों पर मोहर लगती है इसलिए हमको चाहिए कि इर रात में जितना हो सके इबादत में मसरूफ़ रहें और ख़ुदा से अपने और शियों के लिए बेहतरीन चीज़ को मांगें और दुआ करें कि अल्लाह हम पर अपनी रहम वाली निगाह डाले।
1. ग़ुस्ल
2. पूरी रात इबादत में जागना।
3. सौ रकअत नमाज़
4. ज़ियारते इमाम हुसैन (अ)
5. सूरा अनकबूत, रूम और दुख़ान पढ़ना
6. एक हज़ार बार सुना इन्ना अनज़लना पढ़ना।
7. इमाम ज़मान (अ) के लिए दुआ
तेइसवीं रात की दुआ
या रब्बा लैलतिल क़द्रे व जाएलाहा ख़ैरन मिन अलफ़े शहरिन व रब्बल लैइले वन्नहारे वल जिबाले वल बेहारे वज़्ज़ोलमे वलअनवारे वलअरज़े वस्समाए या बारिओ या मुसव्वेरो या हन्नानो या मन्नानो या अल्लाहो या रहमानो या अल्लाहो या क़य्यूमो या अल्लाहो या बदीओ या अल्लाहो या अल्लाहो या अल्लाहो लकल अस्माउल हुसना वल अमसालुल उलया वल किबरियाओ वल आलाओ अस्अलोका अल तोसल्ले अला मोहम्मदिन व आले मोहम्मदिन व अल तजअला इस्मी फ़ी हाज़िहिल लैइलते फ़िस सअदाए व रूही मअश्शोहदाए व एहसानी फ़ी इल्लीयीना व एसाअती मग़फ़ूरतन व अन तहबली यक़ीनन तोबाशेरो बिहि क़ल्बी व ईमानन युज़हबुश्शक्का अन्नी व तर्ज़ीनी बेमा क़समता ली वातेना फ़िद्दुनिया हसनतन व फ़िल आख़ेरते हसनतन व क़िना अज़ाबन्नारिल हरीक़े वर ज़ुक़नी फ़ीहा ज़िकरका व शुकरका वर्रग़बतन इलैका वल इनाबतन वत्तौबतन वत्तौफ़ीक़ा लेमा वफ़्फ़क़ता लहु मोहम्मदन व आले मोहम्मदिन अलैहेमुस्सलाम।
यह दुआ पढ़े
अल्लाहुम्मा कुल लेवलीयेकल हुज्जतिबनिल हसने सलवातोका अलैहे व अला आबाएही फ़ी हाज़ेहिस्साअते व फ़ी कुल्ले साअतिन वलीयन व हाफ़ेज़न व क़ाएदन व नासेरन व दलीलन व अयनन हत्ता तुस्केनहु अरज़का तौअन व तोमत्तेअहु फ़ीहा तवीलन या मुदब्बिरल उमूरे या बाइसा मन फ़िल क़ुबूरे या मुजरियल बुहूरे या मुलय्यिनल हदीदे ले दाऊदा सल्ले अला मोहम्मदिन व आले मोहम्मदिन वफ़अल बी कज़ा व कज़ा अल लैइलता अल लैइलता ( कज़ा व कज़ा के स्थान पर दुआ करे)

Sources : abna24 

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