Skip to main content

Purpose OF Azadari- Moharram 2021

 

सहीफ़ए सज्जादिया में रमज़ानुल मुबारक की श्रेष्ठता = आयतुल्लाह ख़ामेनई के बयानात की रौशनी में,

सहीफ़ए सज्जादिया में रमज़ानुल मुबारक की श्रेष्ठता
सहीफ़ए सज्जादिया की दुआ 44 में रमज़ानुल मुबारक के बारे में इमाम सज्जाद अ. नें कुछ बातें की हैं आज उन्हीं को आपके सामने बयान करना चाहता हूँ हालांकि यहाँ अपने प्रिय जवानों से यह भी कहना चाहता हूं कि कि सहीफ़ए कि सहीफ़ए सज्जादिया को पढ़ें, इसका अनुवाद पढ़ें, यह हैं तो दुआएं लेकिन इनमें ज्ञान विज्ञान का एक समन्दर है। सहीफ़ए सज्जादिया की सभी दुआओं में और इस दुआ में भी ऐसा लगता है कि एक इन्सान ख़ुदा के सामने बैठा लॉजिकल तरीक़े से कुछ बातें कर रहा है, बस अन्तर यह है कि उसकी शक्ल दुआ है।
उसका महीना
दुआ के शुरू में इमाम फ़रमाते हैं
’’أَلحمَدُلِلَّهِ الَّذِى جَعَلَنَا مِن أَهلِهِ‘‘
ख़ुदा का शुक्र कि उसनें हमें अपनी हम्द (प्रशंसा) करने की तौफ़ीक़ (शुभ अवसर) दी। हम उसकी नेमतों को भूले नहीं हैं और उसकी हम्द और शुक्र करते हैं। उसनें हमारे लिये वह रास्ते खोले हैं जिनके द्वारा हम उसकी हम्द कर सकें और उन रास्तों पर चल सकें।
फिर फ़रमाते हैं-
’’ وَالحَمدُلِلَّهِ الَّذِى جَعَلَ مِن تِلكَ السُّبُلُ شَهرِهِ شَهرَ رَمَضَان‘‘
हम्द और तारीफ़ उस ख़ुदा की जिसनें अपनी रहमतों और बरकतों के लिये बहुत से रास्ते हमारे सामने खोले हैं और उनमें से एक रास्ता रमज़ान का मुबारक महीना है। यहाँ इमाम नें
’’شَھرُہُ‘‘
उसका महीना कहा है। यानी यह महीना इतना महान है कि ख़ुदा नें से अपना महीना कहा है। अगरचे सभी महीने अल्लाह के हैं लेकिन न सारे महीनों में रमज़ानुल मुबारक को ख़ास तौर से अपना महीना कहने का मतलब यह है कि इसकी बात दूसरे महीनों से अलग है। यह महीना एक ख़ास महीना है।
’’شَهرُ رَمَضَان، شَهرُ الصِّیَامِ وَ شَهرُالإِسلَامِ‘‘
रमज़ान का महीना रोज़ों का महीना है, यह इस्लाम का महीना है। यह रोज़ों का महीना है यानी रोज़े के द्वारा दिल और आत्मा को शुद्ध करने का महीना है, क्योंकि रोज़े द्वारा इन्सान भूख प्यास और दूसरी चीज़ों से लड़ता है। इस्लाम का महीना है यानी ख़ुदा के सामने सेरेण्डर हो जाने का महीना है। रोज़े में भी इन्सान को भूख और प्यास लगती है लेकिन कुछ खाता पीता नहीं है क्योंकि ख़ुदा के सामने सेरेण्डर है, बहुत से जाएज़ काम जो ख़ुदा नें छोड़ने को कहे हैं, छोड़ देता है। आम दिनों में इस तरह इन्सान ख़ुदा के सामने सेरेण्डर नहीं होता, जिस तरह रमज़ान में होता है। दूसरे दिनों में शायद इस तरह से आज्ञा पालन नहीं करता जिस तरह इस महीने में करता है, इसी लिये इसे इस्लाम का महीना कहा गया है।
सोने की तरह शुद्ध
फिर इमाम सज्जाद अ. फ़रमाते हैं-
’’وَ شَهرُ الطُّهُورِ‘‘
यह पाक व पाकीज़ा होने का महीना है। इस महीने में इन्सान बहुत से से काम करता है जो उसकी अन्दर की गन्दगी को ख़त्म कर देते हैं और वह पाक व पवित्र हो जाता है। जैसे क़ुराने करीम की तिलावत करना, दुआ करना, रो रो कर ख़ुदा से मुनाजात करना, ख़ुदा रोज़ा भी इन्सान को पाक करता है।
’’و شهر التّمحیص‘‘
यह शुद्ध होने का महीना है। तमहीस का महीना है, तमहीस यानी किसी चीज़ को शुद्ध करना। यह महीना इन्सान को शुद्ध बनाता है। हमारे अन्दर की दुनिया क़ीमती सोने जैसी है जिसमें बहुत सी चीजों की मिलावट हो जाती है। रमज़ान इस सोने को शुद्ध बनाने का महीना है। अल्लाह के हर नबी और हर इमाम की यही कोशिश रही है कि हमें वह रास्ता बताएं जिसके द्वारा हम अपने अन्दर के सोने को साफ़ और शुद्ध बना सकें। दुनिया में मोमिन को कठिनियों या सख़्तियों के द्वारा जो आज़माया जाता है वह इसी लिये है, इन्सान पर कुछ सख़्त चीज़ें जो वाजिब की गईं हैं उनका मक़सद यही है, अल्लाह के रास्ते में जेहाद और जान देने को इसी लिये वाजिब किया गया है, इन चीज़ों के द्वारा इन्सान को अन्दर से साफ़ और शुद्ध बनाया जाता है। शहीद की श्रेष्ठता का राज़ यही है कि उसनें ख़ुदा के लिये जान देकर ख़ुद को पाक कर लिया है, वह शुद्ध सोने की तरह हर गुनाह और गन्दगी से पाक हो गया है।
यह महीना ख़ुद को शुद्ध बनाने का महीना है और इसके लिये कोई बहुत बड़ा काम नहीं करना है बल्कि इसी रोज़े के द्वारा, अन्दर के शैतान के साथ लड़कर हम ख़ुद को शुद्ध बना सकते हैं। हमारी गुमराही का असली कारण हमारे गुनाह होते हैं, या वह बुरी चीज़ें होतीं हैं जिनकी हमें आदत पड़ जाती है।
’’ثُمَّ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِینَ اَسَاؤُا السُّواى‌ أَن كَذَّبُوا بِآیَاتِ اللَّهِ‘‘
गुनाह का अन्जाम गुमराही है, हाँ अगर इन्सान के दिल में तौबा की रौशनी जाए तो वह बच सकता है। हमसे इतना ज़ोर देकर जो कहा जोता है कि अगर तुमसे कोई गुनाह हो जाए तो उसकी तौबा करो, यह इसलिये कहा जाता है क्योंकि गुनाहों का रास्ता बहुत ख़तरनाक रास्ता है, यह इन्सान को एक ऐसी खाई में गिराता है जहाँ से वापस निकलने की कोई उम्मीद नहीं होती।
दूसरी चीज़ जो गुमराही का कारण बनती है। रूहानी बीमारियां हैं जैसे केवल ख़ुद को सच्चा और सही समझना, अपनी बात और सोच को सही मानना, ख़ुद को पसंद करना, यह कहना केवल मैं सही समझता हूँ, ऐसे में इन्सान न किसी की बात सुनता है, न किसी के मशवरे को महत्व देता है, न किसी की सही बात मानता है और न हक़ उसके कानों को अच्छा लगता है, या अगर हमारे अन्दर हसद की बीमारी है तो हमें अच्छा भी बुरा लगता है, हमें किसी के अन्दर की अच्छाई नज़र नहीं आती, वास्तविकता अगर सूरज की तरह बिल्कुल सामने हो  तो से भी नहीं देख पाते, ऐसा इन्सान गुमराह होता है क्योंकि उसके अन्दर ख़तरनाक बीमारियां हैं जो जड़ पकड़ चुकी हैं। उन बीमारियों का भी इलाज किया जा सकता है, अगरचे आसान नहीं है लेकिन असम्भव नहीं है, शर्त यह है कि इन्सान उनका इलाज करना चाहे, ज़िद न दिखाए, ग़लत बात पर अड़ न जाए। जो इन्सान ग़लत बात पर अड़ जाए तो उसे हक़ नज़र आता है लेकिन वह आँखें बंद कर लेता है ऐसे हो जाता है  जैसे वह समझ ही न रहा हो। ऐसे इन्सान का कोई इलाज नहीं है।
ख़ुदा हमारे क़रीब है
दोस्तों! आप जहाँ भी हैं, जैसे भी हैं, आपकी उम्र जितनी भी है इस मुबारक महीने में ख़ुदा को पुकारिये और जान लीजिए कि ख़ुदा हमारे क़रीब है। हर इन्सान को इसकी ज़रूरत है कि वह ख़ुदा को आवाज़ दे, उससे बातें करे, वह सुनता है, जवाब देता है, हो ही नहीं सकता कि कोई ख़ुदा को दिल से पुकारे और वह न सुने, ख़ुदा से बातें करते समय, उससे राज़ो नयाज़ करते समय अगर आपको यह महसूस हो कि आपके दिल में तूफ़ान उठ रहा है समझ लीजिए ख़ुदा नें आपकी सुन ली है और यह उसका जवाब है, जब आपकी आँखों आँसू निकलने लगें, जब आपके बदन का एक एक अंग ख़ुदा को पुकारने लगे तो जान लें कि आप ख़ुदा से क़रीब हैं।
’’واسئلوا اللَّه مِن فَضله‘‘
ख़ुदा से उसके फ़ज़्ल से मांगिये। क़ुरआने मजीद में ख़ुदा का हुक्म है कि इन्सान उससे मांगे उससे दुआ करे
’’وَ لَیسَ مِن عَادَتِكَ أَن تَأمُرَ بِالسُّؤَالِ وَ تَمنَعَ العَطِیَّۃَ‘‘
ख़ुदा जवाब देता है, वह सुनता है। क्या यह हो सकता है कि ख़ुदा से मांगा जाए और वह न दे? ख़ुदा ऐसा नहीं करता। हालांकि ज़रूरी नहीं है कि इन्सान जिस वक़्त मांगे उसी समय उसे मिल जाए, उसी इन्सान के लिये अच्छा न हो तो ख़ुदा उस समय नहीं देता बल्कि सही अवसर पर देता है, और यह भी हो सकता है कि किसी को उसी समय दे दे।

Via - ABNA 

Comments

Popular posts from this blog

नियोग प्रथा पर मौन, हलाला 3 तलाक पर आपत्ति ? एक बार जरुर पढ़े

3 तलाक एवं हलाला पर आपत्ति जताने वाले आखिर नियोग प्रथा पर खामोश क्यों हैं, हलाला ठीक है या ग़लत कम से कम विवाहित महिला शारीरिक संबंध अपने पति से ही बनाती है! पर नियोग प्रथा से संतान सुख के लिए किसी भी ब्राह्मण पुरुष से नियोग प्रथा के अनुसार उससे शारीरिक संबंध बना सकती है! यह कितना बड़ा अत्याचार और पाप हुआ? नियोग प्रथा क्या है? हिन्दू धर्म में एक रस्म है जिसे नियोग कहते है , इस प्रथा के अनुसार किसी विवाहित महिला को बच्चे पैदा न हो रहे हो तो वो किसी भी ब्राह्मण पुरुष से नियोग प्रथा के अनुसार उससे शारीरिक संबंध बना सकती है! नियोग प्रथा के नियम हैं:- १. कोई भी महिला इस प्रथा का पालन केवल संतान प्राप्ति के लिए करेगी न कि आनंद के लिए। २. नियुक्त पुरुष केवल धर्म के पालन के लिए इस प्रथा को निभाएगा। उसका धर्म यही होगा कि वह उस औरत को संतान प्राप्ति करने में मदद कर रहा है। ३. इस प्रथा से जन्मा बच्चा वैध होगा और विधिक रूप से बच्चा पति-पत्नी का होगा , नियुक्त व्यक्ति का नहीं। ४. नियुक्त पुरुष उस बच्चे के पिता होने का अधिकार नहीं मांगेगा और भविष्य में बच्चे से कोई रिश्ता नहीं रखेगा।

चुगली,ग़ीबत यानी पीठ पीछे बुराई करना। इस्लामी शिक्षाओं में बहुत ज़्यादा आलोचना की गयी है

ग़ीबत यानी पीठ पीछे बुराई करना है, ग़ीबत एक ऐसी बुराई है जो इंसान के मन मस्तिष्क को नुक़सान पहुंचाती है और सामाजिक संबंधों के लिए भी ज़हर होती है। पीठ पीछे बुराई करने की इस्लामी शिक्षाओं में बहुत ज़्यादा आलोचना की गयी है। पीठ पीछे बुराई की परिभाषा में कहा गया है पीठ पीछे बुराई करने का मतलब यह है कि किसी की अनुपस्थिति में उसकी बुराई किसी दूसरे इंसान से की जाए कुछ इस तरह से कि अगर वह इंसान ख़ुद सुने तो उसे दुख हो। पैगम्बरे इस्लाम स.अ ने पीठ पीछे बुराई करने की परिभाषा करते हुए कहा है कि पीठ पीछे बुराई करना यह है कि अपने भाई को इस तरह से याद करो जो उसे नापसन्द हो। लोगों ने पूछाः अगर कही गयी बुराई सचमुच उस इंसान में पाई जाती हो तो भी वह ग़ीबत है? तो पैगम्बरे इस्लाम ने फरमाया कि जो तुम उसके बारे में कह रहे हो अगर वह उसमें है तो यह ग़ीबत है और अगर वह बुराई उसमें न हो तो फिर तुमने उस पर आरोप लगाया है।यहां पर यह सवाल उठता है कि इंसान किसी की पीठ पीछे बुराई क्यों करता है?  पीठ पीछे बुराई के कई कारण हो सकते हैं। कभी जलन, पीठ पीछे बुराई का कारण बनती है। जबकि इंसान को किसी दूसरे की स्थिति से ईर्ष

जन्म पवित्र स्थल काबे के अंदर हुआ और शहादत मस्जिद में

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के दामाद और उत्तराधिकारी हज़रत अली (अ) जब 19 रमज़ान की सुबह सहरी के बाद सुबह की नमाज़ के लिए मस्जिद में पहुंचे और नमाज़ के दौरान जब वे सज्दे में गए तो इब्ने मुल्जिम नामक व्यक्ति ने ज़हर में बुझी तलवार से उनके सिर पर घातक वार किया।  19 रमज़ान की रात इस्लाम के अनुसार, रमज़ान की उन तीन रातों में से एक है, जिसमें रात भर जागकर इबादत करने का अत्यधित सवाब है।  हज़रत अली गंभीर रूप से घायल होने के तीसरे दिन अर्थात 21 रमज़ान की पवित्र रात को शहीद हो गए।  19 और 21 रमज़ान को  दुनिया भर के शिया मुसलमान ईश्वर की इबादत के साथ साथ हज़रत अली (अ) की शहादत का शोक भी मनाते हैं और अज़ादारी करते हैं।  हज़रत अली (अ) संसार की ऐसी विशिष्ट हस्ती हैं जिनका जन्म पवित्र स्थल काबे के अंदर हुआ था और शहादत मस्जिद में। 

#ShiaAzadari इमाम हुसैन (अ.स.) के बलिदान का उद्देश्य! दुआएं कबूल क्यों नहीं होती? #Azadari2021

 

शहादत : हज़रत इमाम बाकिर और इस्लाम मे सिक्के की ईजाद

 हज़रत इमाम मौहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम पहली रजब 57 हिजरी को जुमा के दिन मदीनाऐ मुनव्वरा मे पैदा हुऐ। अल्लामा मजलिसी लिखते है कि जब आप बत्ने मादर मे तशरीफ लाऐ तो आबाओ अजदाद की तरह घर मे गैब की आवाज़े आने लगी और जब नो महीने पूरे हुऐ तो फरीश्तो की बेइंतेहा आवाज़े आने लगी और शबे विलादत एक नूर जाहिर हुआ और आपने विलादत के बाद आसमान का रूख किया और (हजरत आदम की तरह) तीन बार छींके और खुदा की हम्द बजा लाऐ, पूरे एक दिन और रात आपके हाथ से नूर निकलता रहा। आप खतना शुदा, नाफ बुरीदा और तमाम गंदगीयो से पाक पैदा हुऐ। (जिलाउल उयून पेज न. 259-260) नाम, लक़ब और कुन्नीयत सरवरे कायनात रसूले खुदा (स.अ.व.व) और लोहे महफूज़ के मुताबिक आपका नाम मौहम्मद था और आपकी कुन्नीयत अबुजाफर थी और आपके बहुत सारे लक़ब थे कि जिन मे बाक़िर, शाकिर, हादी ज़्यादा मशहूर है। (शवाहेदुन नबुवत पेज न. 181) लक़बे बाक़िर की वजह बाक़िर बकरः से निकला है और इसका मतलब फैलाने वाला या शक़ करने देने वाला है। (अलमुनजिद पेज न. 41) इमाम बाक़िर को बाक़िर इस लिऐ कहा जाता है कि आपने उलूम को लोगो के सामने पेश किया और अहक

इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम पर सलाम हो

       इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने कर्बला की महान घटना के बाद लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला। सज्जाद, इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को एक प्रसिद्ध उपाधि थी। महान ईश्वर की इच्छा से इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम कर्बला में जीवित बच गये था ताकि वह कर्बला की महान घटना के अमर संदेश को लोगों तक पहुंचा सकें।        इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ज्येष्ठ सुपुत्र हैं और 36 हिजरी क़मरी में उनका जन्म पवित्र नगर मदीने में हुआ और 57 वर्षों तक आप जीवित रहे। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के जीवन का महत्वपूर्ण भाग कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद आरंभ हुआ। कर्बला की महान घटना के समय इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम बीमार थे और इसी कारण वे कर्बला में सत्य व असत्य के युद्ध में भाग न ले सके।         कर्बला की घटना का एक लेखक हमीद बिन मुस्लिम लिखता है “आशूर के दिन इमाम हुसैन अलैहिस्लाम के शहीद हो जाने के बाद यज़ीद के सैनिक इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के पास आये। वह बीमार और बिस्तर पर सोये हुए थे। चूंकि यज़ीद की सैनिकों को यह आदेश द

अहले सुन्नत के मुक़द्देसात (प्रतीकों) का अपमान करना जायज़ नहीं है - शिया सुन्नी एकता

वैसे तो इस्लाम हर धर्म का आदर करने का आदेश देता है  किसी दुसरे धर्मों (ग़ैर इस्लामी) के प्रतीकों का अपमान करना भी  इस्लाम में वर्विज (मना) है पर कुछ लोग एक दुसरे (अपने इस्लाम) के फिरके के लोगों का अपमान करने की सोचते हैं जो की यह इस्लामी शिक्षा के विपरीत है। दरअसल ऐसे लोग इस्लाम के दुश्मन होते हैं जो इस्लाम के दुश्मनों के हाथ मजबूत करते हैं। अहले सुन्नत के मुक़द्देसात (प्रतीकों)  का  अपमान करना हराम है और जाहिर है कि जो कोई भी शिया के नाम पर अहले सुन्नत के मुक़द्देसात का अपमान करता है चाहे वो  सुन्नी  होकर शिया मुक़द्देसात का अपमान करता है वह इस्लाम का दुश्मन है। क्या अहले सुन्नत के मुक़द्देसात (प्रतीकों) का  अपमान जैसे खुलुफा  और अहले सुन्नत के कुछ मनपसंद सहाबा  के नाम अशोभनीय तरीके से लेना   जायज़ (वेध) है? दुनिया भर के  शिया धार्मिक केन्द्रों (ईरान और इराक) के ओलामाओ (विद्वानों)  ने फतवा दिया है की अहले सुन्नत के मुक़द्देसात (प्रतीकों)  का  अपमान करना हराम है अधिक जानकारी के लिए मैं यहाँ 12 शिया आलिमों (विद्वानों) के फतवे पेश कर रहें हैं 

हिन्दू और मुसलमान की मोहब्बत आप भी देखें

वाजिब नमाज़े आयात पढने का तरीका पढ़े !

1516। नमाज़े आयात की दो रकअतें हैं और हर रकअत में पाँच रुकूअ हैं। इस के पढ़ने का तरीक़ा यह है कि नियत करने के बाद इंसान तकबीर कहे और एक दफ़ा अलहम्द और एक पूरा सूरह पढ़े और रुकूअ में जाए और फिर रुकूअ से सर उठाए फिर दोबारा एक दफ़ा अलहम्द और एक सूरह पढ़े और फिर रुकूअ में जाए। इस अमल को पांच दफ़ा अंजाम दे और पांचवें रुकूअ से क़्याम की हालत में आने के बाद दो सज्दे बजा लाए और फिर उठ खड़ा हो और पहली रकअत की तरह दूसरी रकअत बजा लाए और तशह्हुद और सलाम पढ़ कर नमाज़ तमाम करे। 1517। नमाज़े आयात में यह भी मुम्किन है कि इंसान नियत करने और तकबीर और अलहम्द पढ़ने के बाद एक सूरह की आयतों के पांच हिस्से करे और एक आयत या उस से कुछ ज़्यादा पढ़े और बल्कि एक आयत से कम भी पढ़ सकता है लेकिन एहतियात की बिना पर ज़रुरी है कि मुकम्मल जुमला हो और उस के बाद रुकूअ में जाए और फिर खड़ा हो जाए और अलहम्द पढ़े बग़ैर उसी सूरह का दूसरा हिस्सा पढ़े और रुकूअ में जाए और इसी तरह इस अमल को दोहराता रहे यहां तक कि पांचवें रुकूअ से पहले सूरे को ख़त्म कर दे मसलन सूरए फ़लक़ में पहले बिसमिल्ला हिर्रहमानिर्रहीम। क़ुल अऊज़ू बिरब्बिलफ़लक़। पढ़े और रुकूअ में जाए