युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...
सहीफ़ए सज्जादिया में रमज़ानुल मुबारक की श्रेष्ठता
सहीफ़ए सज्जादिया की दुआ 44 में रमज़ानुल मुबारक के बारे में इमाम सज्जाद अ. नें कुछ बातें की हैं आज उन्हीं को आपके सामने बयान करना चाहता हूँ हालांकि यहाँ अपने प्रिय जवानों से यह भी कहना चाहता हूं कि कि सहीफ़ए कि सहीफ़ए सज्जादिया को पढ़ें, इसका अनुवाद पढ़ें, यह हैं तो दुआएं लेकिन इनमें ज्ञान विज्ञान का एक समन्दर है। सहीफ़ए सज्जादिया की सभी दुआओं में और इस दुआ में भी ऐसा लगता है कि एक इन्सान ख़ुदा के सामने बैठा लॉजिकल तरीक़े से कुछ बातें कर रहा है, बस अन्तर यह है कि उसकी शक्ल दुआ है।
उसका महीना
दुआ के शुरू में इमाम फ़रमाते हैं
’’أَلحمَدُلِلَّهِ الَّذِى جَعَلَنَا مِن أَهلِهِ‘‘
ख़ुदा का शुक्र कि उसनें हमें अपनी हम्द (प्रशंसा) करने की तौफ़ीक़ (शुभ अवसर) दी। हम उसकी नेमतों को भूले नहीं हैं और उसकी हम्द और शुक्र करते हैं। उसनें हमारे लिये वह रास्ते खोले हैं जिनके द्वारा हम उसकी हम्द कर सकें और उन रास्तों पर चल सकें।
फिर फ़रमाते हैं-
’’ وَالحَمدُلِلَّهِ الَّذِى جَعَلَ مِن تِلكَ السُّبُلُ شَهرِهِ شَهرَ رَمَضَان‘‘
हम्द और तारीफ़ उस ख़ुदा की जिसनें अपनी रहमतों और बरकतों के लिये बहुत से रास्ते हमारे सामने खोले हैं और उनमें से एक रास्ता रमज़ान का मुबारक महीना है। यहाँ इमाम नें
’’شَھرُہُ‘‘
उसका महीना कहा है। यानी यह महीना इतना महान है कि ख़ुदा नें से अपना महीना कहा है। अगरचे सभी महीने अल्लाह के हैं लेकिन न सारे महीनों में रमज़ानुल मुबारक को ख़ास तौर से अपना महीना कहने का मतलब यह है कि इसकी बात दूसरे महीनों से अलग है। यह महीना एक ख़ास महीना है।
’’شَهرُ رَمَضَان، شَهرُ الصِّیَامِ وَ شَهرُالإِسلَامِ‘‘
रमज़ान का महीना रोज़ों का महीना है, यह इस्लाम का महीना है। यह रोज़ों का महीना है यानी रोज़े के द्वारा दिल और आत्मा को शुद्ध करने का महीना है, क्योंकि रोज़े द्वारा इन्सान भूख प्यास और दूसरी चीज़ों से लड़ता है। इस्लाम का महीना है यानी ख़ुदा के सामने सेरेण्डर हो जाने का महीना है। रोज़े में भी इन्सान को भूख और प्यास लगती है लेकिन कुछ खाता पीता नहीं है क्योंकि ख़ुदा के सामने सेरेण्डर है, बहुत से जाएज़ काम जो ख़ुदा नें छोड़ने को कहे हैं, छोड़ देता है। आम दिनों में इस तरह इन्सान ख़ुदा के सामने सेरेण्डर नहीं होता, जिस तरह रमज़ान में होता है। दूसरे दिनों में शायद इस तरह से आज्ञा पालन नहीं करता जिस तरह इस महीने में करता है, इसी लिये इसे इस्लाम का महीना कहा गया है।
सोने की तरह शुद्ध
फिर इमाम सज्जाद अ. फ़रमाते हैं-
’’وَ شَهرُ الطُّهُورِ‘‘
यह पाक व पाकीज़ा होने का महीना है। इस महीने में इन्सान बहुत से से काम करता है जो उसकी अन्दर की गन्दगी को ख़त्म कर देते हैं और वह पाक व पवित्र हो जाता है। जैसे क़ुराने करीम की तिलावत करना, दुआ करना, रो रो कर ख़ुदा से मुनाजात करना, ख़ुदा रोज़ा भी इन्सान को पाक करता है।
’’و شهر التّمحیص‘‘
यह शुद्ध होने का महीना है। तमहीस का महीना है, तमहीस यानी किसी चीज़ को शुद्ध करना। यह महीना इन्सान को शुद्ध बनाता है। हमारे अन्दर की दुनिया क़ीमती सोने जैसी है जिसमें बहुत सी चीजों की मिलावट हो जाती है। रमज़ान इस सोने को शुद्ध बनाने का महीना है। अल्लाह के हर नबी और हर इमाम की यही कोशिश रही है कि हमें वह रास्ता बताएं जिसके द्वारा हम अपने अन्दर के सोने को साफ़ और शुद्ध बना सकें। दुनिया में मोमिन को कठिनियों या सख़्तियों के द्वारा जो आज़माया जाता है वह इसी लिये है, इन्सान पर कुछ सख़्त चीज़ें जो वाजिब की गईं हैं उनका मक़सद यही है, अल्लाह के रास्ते में जेहाद और जान देने को इसी लिये वाजिब किया गया है, इन चीज़ों के द्वारा इन्सान को अन्दर से साफ़ और शुद्ध बनाया जाता है। शहीद की श्रेष्ठता का राज़ यही है कि उसनें ख़ुदा के लिये जान देकर ख़ुद को पाक कर लिया है, वह शुद्ध सोने की तरह हर गुनाह और गन्दगी से पाक हो गया है।
यह महीना ख़ुद को शुद्ध बनाने का महीना है और इसके लिये कोई बहुत बड़ा काम नहीं करना है बल्कि इसी रोज़े के द्वारा, अन्दर के शैतान के साथ लड़कर हम ख़ुद को शुद्ध बना सकते हैं। हमारी गुमराही का असली कारण हमारे गुनाह होते हैं, या वह बुरी चीज़ें होतीं हैं जिनकी हमें आदत पड़ जाती है।
’’ثُمَّ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِینَ اَسَاؤُا السُّواى أَن كَذَّبُوا بِآیَاتِ اللَّهِ‘‘
गुनाह का अन्जाम गुमराही है, हाँ अगर इन्सान के दिल में तौबा की रौशनी जाए तो वह बच सकता है। हमसे इतना ज़ोर देकर जो कहा जोता है कि अगर तुमसे कोई गुनाह हो जाए तो उसकी तौबा करो, यह इसलिये कहा जाता है क्योंकि गुनाहों का रास्ता बहुत ख़तरनाक रास्ता है, यह इन्सान को एक ऐसी खाई में गिराता है जहाँ से वापस निकलने की कोई उम्मीद नहीं होती।
दूसरी चीज़ जो गुमराही का कारण बनती है। रूहानी बीमारियां हैं जैसे केवल ख़ुद को सच्चा और सही समझना, अपनी बात और सोच को सही मानना, ख़ुद को पसंद करना, यह कहना केवल मैं सही समझता हूँ, ऐसे में इन्सान न किसी की बात सुनता है, न किसी के मशवरे को महत्व देता है, न किसी की सही बात मानता है और न हक़ उसके कानों को अच्छा लगता है, या अगर हमारे अन्दर हसद की बीमारी है तो हमें अच्छा भी बुरा लगता है, हमें किसी के अन्दर की अच्छाई नज़र नहीं आती, वास्तविकता अगर सूरज की तरह बिल्कुल सामने हो तो से भी नहीं देख पाते, ऐसा इन्सान गुमराह होता है क्योंकि उसके अन्दर ख़तरनाक बीमारियां हैं जो जड़ पकड़ चुकी हैं। उन बीमारियों का भी इलाज किया जा सकता है, अगरचे आसान नहीं है लेकिन असम्भव नहीं है, शर्त यह है कि इन्सान उनका इलाज करना चाहे, ज़िद न दिखाए, ग़लत बात पर अड़ न जाए। जो इन्सान ग़लत बात पर अड़ जाए तो उसे हक़ नज़र आता है लेकिन वह आँखें बंद कर लेता है ऐसे हो जाता है जैसे वह समझ ही न रहा हो। ऐसे इन्सान का कोई इलाज नहीं है।
ख़ुदा हमारे क़रीब है
दोस्तों! आप जहाँ भी हैं, जैसे भी हैं, आपकी उम्र जितनी भी है इस मुबारक महीने में ख़ुदा को पुकारिये और जान लीजिए कि ख़ुदा हमारे क़रीब है। हर इन्सान को इसकी ज़रूरत है कि वह ख़ुदा को आवाज़ दे, उससे बातें करे, वह सुनता है, जवाब देता है, हो ही नहीं सकता कि कोई ख़ुदा को दिल से पुकारे और वह न सुने, ख़ुदा से बातें करते समय, उससे राज़ो नयाज़ करते समय अगर आपको यह महसूस हो कि आपके दिल में तूफ़ान उठ रहा है समझ लीजिए ख़ुदा नें आपकी सुन ली है और यह उसका जवाब है, जब आपकी आँखों आँसू निकलने लगें, जब आपके बदन का एक एक अंग ख़ुदा को पुकारने लगे तो जान लें कि आप ख़ुदा से क़रीब हैं।
’’واسئلوا اللَّه مِن فَضله‘‘
ख़ुदा से उसके फ़ज़्ल से मांगिये। क़ुरआने मजीद में ख़ुदा का हुक्म है कि इन्सान उससे मांगे उससे दुआ करे
’’وَ لَیسَ مِن عَادَتِكَ أَن تَأمُرَ بِالسُّؤَالِ وَ تَمنَعَ العَطِیَّۃَ‘‘
ख़ुदा जवाब देता है, वह सुनता है। क्या यह हो सकता है कि ख़ुदा से मांगा जाए और वह न दे? ख़ुदा ऐसा नहीं करता। हालांकि ज़रूरी नहीं है कि इन्सान जिस वक़्त मांगे उसी समय उसे मिल जाए, उसी इन्सान के लिये अच्छा न हो तो ख़ुदा उस समय नहीं देता बल्कि सही अवसर पर देता है, और यह भी हो सकता है कि किसी को उसी समय दे दे।
Via - ABNA
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