Skip to main content

Purpose OF Azadari- Moharram 2021

 

آداب فھمِ قرآن - السید علی عمران نقوی

علوم کی حفاظت کے لئے ضبطِ تحریر میں آ کر کتاب کی شکل میں محفوظ ہو جانا نسلِ آدم (ع)  کی تعلیم و تربیت کیلئے لازمی شرط ہے۔ کتاب کو پڑھانے اور سمجھانے کیلئے ایک مدرس یا استاد کی بھی ضرورت ہوتی ہے اس طرح علم آنے والی نسلوں تک پہونچتا ہے۔ لیکن وه کتب جن کے پڑھنے سے ﺫهنِ انسانی کو روشنی ملتی ہے فکر و شعور میں صحت مند مفید تبدیلی آتی ہے ان کتابوں کی تعلیم کے فوائد اپنے مقام پر لیکن ان سب کے ساتھ ساتھ ایک اہم بات یہ بھی ہے کہ اعلیٰ تعلیمی اداروں یعنی یونیورسٹیز میں بڑے بڑے کتب خانے یا لائبریریز بھی بنائی جاتی ہیں جہاں سے ضرورت مند طلبا کو کتابیں فراہم کی جاتی ہیں۔ کتابوں کا پڑھنا پڑھانا اور سمجھنا سمجھانا کس قدر اہم عمل ہے کتنی محنت ریاضت قربانی توجہ چاہتا ہے۔ اس کا اندازه اس بات سے لگائیے کہ صرف لائبریری جہاں کتابوں کو کچھ خاص قواعد و اصول و ضوابط اور ترتیب سے رکھا جاتا ہے اس کام کیلئے باقاعده لائبریری سائنس میں گریجویشن اور پوسٹ گریجویشن سے لیکر ریسرچ تک کرائی جاتی ہے جسکی اس زمانہ میں بڑی مانگ ہوتی جا رہی ہے غور فرمائیے کہ ان عام کتابوں کے رکھنے کیلئے جب ڈگری یافتہ بیچلر آف لائبریری سائنس (B. Lib) اور ماسٹر آف لائبریری سائنس (M. Lib) افراد کو ﺫمہ دار بنایا جاتا ہے کہ وه مقرره اصول و قوانین کے مطابق کتب خانہ کو چلائیں۔ مزکوره صورتِ حال کی روشنی میں سوچئیے کہ تدریسی عمل ایک استاد سے ایک طالبِ علم سے کیا کیا تقاضے کرتا ہوگا۔ اور کسی اہم اور مفید کتاب کی تدریس اور تفہیم کیلئے مقدمہ کے طور سے کیا کیا شرائط ہوں گے کیا یہ ممکن ہے کہ ایک اعلیٰ تعلیم حاصل کرنے والا طالبِ علم اپنے کورس کی دقیق اور اہم کتابوں کی تدریس سے قبل ان تمام شرائط سے باخبر نہ ہو جن کے بغیر اس کتاب کو سمجھا ہی نہیں جا سکتا۔ ماهِ صیام آ رہا ہے نزولِ قرآن کا اور برکتوں کا مہینہ شھر الله یعنی خالقِ کائنات کا مہینہ۔ میں ان جوانوں سے درخواست کروں گا جو قرآن شریف کے ساتھ ساتھ چلنا چاہتے ہیں یہ قرآن شریف اپنے قاری یعنی تلاوت کرنے والے کو خدا وند کریم تک لے جانا چاہتا ہے بشرط یہ کہ نوجوانوں کو یہ علم ہو کہ تلاوتِ قرآن سے قبل مقدمات کے طور سے جوانوں کی ﺫہن سازی کیسے ہو وه کون سی باتیں ہیں جن کے بعد قرآن شریف اپنی تلاوت کرنے والوں کو اتنا بلند کرتا ہے ان مقامات تک لے جاتا ہے کہ بہشت سے بہت آگے وه مراتب اور مقامات ایسے ہیں جن کو مــحـمّــد وآل مــحـمّــد علیہم السلام ہی جانتے ہیں۔ آپ کہیں گے کہ تلاوتِ قرآن شریف سے قبل ہم ان شرائط اور مقدمات کو کہاں سے سیکھیں کیسے جانیں اگر آپ ۱۴۳۷ ہجری  کے ماهِ صیام میں تلاوتِ قرآن شریف کا حق ادا کرنا چاہتے ہیں اور کتابِ خدا کے ساتھ نورانی راہوں پر سفر کرنا چاہتے ہیں تو استادِ معظم علامہ سید جواد نقوی (دام ظلہ الشریف) کی تالیف ( آداب فھمِ قرآن ) کی دونوں جلدوں کا مطالعہ ضرور کیجئیے آپ جاگ جائیں گے۔ ہند و پاک میں اس کتاب کے پڑھے بغیر کم از کم میرے جیسے مبتدی کو قرآن شریف سے فیضیاب ہونا مشکل ہے۔ غیبتِ حضرت ولی عصر عجل الله تعالی فرجہ الشریف میں قرآن و سنّت کی ترویج و اشاعتِ تفھیمِ دین و شریعت کیلئے جس قدر آسان طریقہ محترم موصوف نے اختیار کیا ہے ہند و پاک میں ان کا وجود نعمتِ الٰہی ہے۔
راقم الحروف 
السید علی عمران نقوی 
نوگانواں سادات ہندوستان

Comments

Popular posts from this blog

नियोग प्रथा पर मौन, हलाला 3 तलाक पर आपत्ति ? एक बार जरुर पढ़े

3 तलाक एवं हलाला पर आपत्ति जताने वाले आखिर नियोग प्रथा पर खामोश क्यों हैं, हलाला ठीक है या ग़लत कम से कम विवाहित महिला शारीरिक संबंध अपने पति से ही बनाती है! पर नियोग प्रथा से संतान सुख के लिए किसी भी ब्राह्मण पुरुष से नियोग प्रथा के अनुसार उससे शारीरिक संबंध बना सकती है! यह कितना बड़ा अत्याचार और पाप हुआ? नियोग प्रथा क्या है? हिन्दू धर्म में एक रस्म है जिसे नियोग कहते है , इस प्रथा के अनुसार किसी विवाहित महिला को बच्चे पैदा न हो रहे हो तो वो किसी भी ब्राह्मण पुरुष से नियोग प्रथा के अनुसार उससे शारीरिक संबंध बना सकती है! नियोग प्रथा के नियम हैं:- १. कोई भी महिला इस प्रथा का पालन केवल संतान प्राप्ति के लिए करेगी न कि आनंद के लिए। २. नियुक्त पुरुष केवल धर्म के पालन के लिए इस प्रथा को निभाएगा। उसका धर्म यही होगा कि वह उस औरत को संतान प्राप्ति करने में मदद कर रहा है। ३. इस प्रथा से जन्मा बच्चा वैध होगा और विधिक रूप से बच्चा पति-पत्नी का होगा , नियुक्त व्यक्ति का नहीं। ४. नियुक्त पुरुष उस बच्चे के पिता होने का अधिकार नहीं मांगेगा और भविष्य में बच्चे से कोई रिश्ता नहीं रखेगा।

जन्म पवित्र स्थल काबे के अंदर हुआ और शहादत मस्जिद में

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के दामाद और उत्तराधिकारी हज़रत अली (अ) जब 19 रमज़ान की सुबह सहरी के बाद सुबह की नमाज़ के लिए मस्जिद में पहुंचे और नमाज़ के दौरान जब वे सज्दे में गए तो इब्ने मुल्जिम नामक व्यक्ति ने ज़हर में बुझी तलवार से उनके सिर पर घातक वार किया।  19 रमज़ान की रात इस्लाम के अनुसार, रमज़ान की उन तीन रातों में से एक है, जिसमें रात भर जागकर इबादत करने का अत्यधित सवाब है।  हज़रत अली गंभीर रूप से घायल होने के तीसरे दिन अर्थात 21 रमज़ान की पवित्र रात को शहीद हो गए।  19 और 21 रमज़ान को  दुनिया भर के शिया मुसलमान ईश्वर की इबादत के साथ साथ हज़रत अली (अ) की शहादत का शोक भी मनाते हैं और अज़ादारी करते हैं।  हज़रत अली (अ) संसार की ऐसी विशिष्ट हस्ती हैं जिनका जन्म पवित्र स्थल काबे के अंदर हुआ था और शहादत मस्जिद में। 

चुगली,ग़ीबत यानी पीठ पीछे बुराई करना। इस्लामी शिक्षाओं में बहुत ज़्यादा आलोचना की गयी है

ग़ीबत यानी पीठ पीछे बुराई करना है, ग़ीबत एक ऐसी बुराई है जो इंसान के मन मस्तिष्क को नुक़सान पहुंचाती है और सामाजिक संबंधों के लिए भी ज़हर होती है। पीठ पीछे बुराई करने की इस्लामी शिक्षाओं में बहुत ज़्यादा आलोचना की गयी है। पीठ पीछे बुराई की परिभाषा में कहा गया है पीठ पीछे बुराई करने का मतलब यह है कि किसी की अनुपस्थिति में उसकी बुराई किसी दूसरे इंसान से की जाए कुछ इस तरह से कि अगर वह इंसान ख़ुद सुने तो उसे दुख हो। पैगम्बरे इस्लाम स.अ ने पीठ पीछे बुराई करने की परिभाषा करते हुए कहा है कि पीठ पीछे बुराई करना यह है कि अपने भाई को इस तरह से याद करो जो उसे नापसन्द हो। लोगों ने पूछाः अगर कही गयी बुराई सचमुच उस इंसान में पाई जाती हो तो भी वह ग़ीबत है? तो पैगम्बरे इस्लाम ने फरमाया कि जो तुम उसके बारे में कह रहे हो अगर वह उसमें है तो यह ग़ीबत है और अगर वह बुराई उसमें न हो तो फिर तुमने उस पर आरोप लगाया है।यहां पर यह सवाल उठता है कि इंसान किसी की पीठ पीछे बुराई क्यों करता है?  पीठ पीछे बुराई के कई कारण हो सकते हैं। कभी जलन, पीठ पीछे बुराई का कारण बनती है। जबकि इंसान को किसी दूसरे की स्थिति से ईर्ष

#ShiaAzadari इमाम हुसैन (अ.स.) के बलिदान का उद्देश्य! दुआएं कबूल क्यों नहीं होती? #Azadari2021

 

वाजिब नमाज़े आयात पढने का तरीका पढ़े !

1516। नमाज़े आयात की दो रकअतें हैं और हर रकअत में पाँच रुकूअ हैं। इस के पढ़ने का तरीक़ा यह है कि नियत करने के बाद इंसान तकबीर कहे और एक दफ़ा अलहम्द और एक पूरा सूरह पढ़े और रुकूअ में जाए और फिर रुकूअ से सर उठाए फिर दोबारा एक दफ़ा अलहम्द और एक सूरह पढ़े और फिर रुकूअ में जाए। इस अमल को पांच दफ़ा अंजाम दे और पांचवें रुकूअ से क़्याम की हालत में आने के बाद दो सज्दे बजा लाए और फिर उठ खड़ा हो और पहली रकअत की तरह दूसरी रकअत बजा लाए और तशह्हुद और सलाम पढ़ कर नमाज़ तमाम करे। 1517। नमाज़े आयात में यह भी मुम्किन है कि इंसान नियत करने और तकबीर और अलहम्द पढ़ने के बाद एक सूरह की आयतों के पांच हिस्से करे और एक आयत या उस से कुछ ज़्यादा पढ़े और बल्कि एक आयत से कम भी पढ़ सकता है लेकिन एहतियात की बिना पर ज़रुरी है कि मुकम्मल जुमला हो और उस के बाद रुकूअ में जाए और फिर खड़ा हो जाए और अलहम्द पढ़े बग़ैर उसी सूरह का दूसरा हिस्सा पढ़े और रुकूअ में जाए और इसी तरह इस अमल को दोहराता रहे यहां तक कि पांचवें रुकूअ से पहले सूरे को ख़त्म कर दे मसलन सूरए फ़लक़ में पहले बिसमिल्ला हिर्रहमानिर्रहीम। क़ुल अऊज़ू बिरब्बिलफ़लक़। पढ़े और रुकूअ में जाए

अहले सुन्नत के मुक़द्देसात (प्रतीकों) का अपमान करना जायज़ नहीं है - शिया सुन्नी एकता

वैसे तो इस्लाम हर धर्म का आदर करने का आदेश देता है  किसी दुसरे धर्मों (ग़ैर इस्लामी) के प्रतीकों का अपमान करना भी  इस्लाम में वर्विज (मना) है पर कुछ लोग एक दुसरे (अपने इस्लाम) के फिरके के लोगों का अपमान करने की सोचते हैं जो की यह इस्लामी शिक्षा के विपरीत है। दरअसल ऐसे लोग इस्लाम के दुश्मन होते हैं जो इस्लाम के दुश्मनों के हाथ मजबूत करते हैं। अहले सुन्नत के मुक़द्देसात (प्रतीकों)  का  अपमान करना हराम है और जाहिर है कि जो कोई भी शिया के नाम पर अहले सुन्नत के मुक़द्देसात का अपमान करता है चाहे वो  सुन्नी  होकर शिया मुक़द्देसात का अपमान करता है वह इस्लाम का दुश्मन है। क्या अहले सुन्नत के मुक़द्देसात (प्रतीकों) का  अपमान जैसे खुलुफा  और अहले सुन्नत के कुछ मनपसंद सहाबा  के नाम अशोभनीय तरीके से लेना   जायज़ (वेध) है? दुनिया भर के  शिया धार्मिक केन्द्रों (ईरान और इराक) के ओलामाओ (विद्वानों)  ने फतवा दिया है की अहले सुन्नत के मुक़द्देसात (प्रतीकों)  का  अपमान करना हराम है अधिक जानकारी के लिए मैं यहाँ 12 शिया आलिमों (विद्वानों) के फतवे पेश कर रहें हैं 

शहादत : हज़रत इमाम बाकिर और इस्लाम मे सिक्के की ईजाद

 हज़रत इमाम मौहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम पहली रजब 57 हिजरी को जुमा के दिन मदीनाऐ मुनव्वरा मे पैदा हुऐ। अल्लामा मजलिसी लिखते है कि जब आप बत्ने मादर मे तशरीफ लाऐ तो आबाओ अजदाद की तरह घर मे गैब की आवाज़े आने लगी और जब नो महीने पूरे हुऐ तो फरीश्तो की बेइंतेहा आवाज़े आने लगी और शबे विलादत एक नूर जाहिर हुआ और आपने विलादत के बाद आसमान का रूख किया और (हजरत आदम की तरह) तीन बार छींके और खुदा की हम्द बजा लाऐ, पूरे एक दिन और रात आपके हाथ से नूर निकलता रहा। आप खतना शुदा, नाफ बुरीदा और तमाम गंदगीयो से पाक पैदा हुऐ। (जिलाउल उयून पेज न. 259-260) नाम, लक़ब और कुन्नीयत सरवरे कायनात रसूले खुदा (स.अ.व.व) और लोहे महफूज़ के मुताबिक आपका नाम मौहम्मद था और आपकी कुन्नीयत अबुजाफर थी और आपके बहुत सारे लक़ब थे कि जिन मे बाक़िर, शाकिर, हादी ज़्यादा मशहूर है। (शवाहेदुन नबुवत पेज न. 181) लक़बे बाक़िर की वजह बाक़िर बकरः से निकला है और इसका मतलब फैलाने वाला या शक़ करने देने वाला है। (अलमुनजिद पेज न. 41) इमाम बाक़िर को बाक़िर इस लिऐ कहा जाता है कि आपने उलूम को लोगो के सामने पेश किया और अहक

इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम पर सलाम हो

       इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने कर्बला की महान घटना के बाद लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला। सज्जाद, इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को एक प्रसिद्ध उपाधि थी। महान ईश्वर की इच्छा से इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम कर्बला में जीवित बच गये था ताकि वह कर्बला की महान घटना के अमर संदेश को लोगों तक पहुंचा सकें।        इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ज्येष्ठ सुपुत्र हैं और 36 हिजरी क़मरी में उनका जन्म पवित्र नगर मदीने में हुआ और 57 वर्षों तक आप जीवित रहे। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के जीवन का महत्वपूर्ण भाग कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद आरंभ हुआ। कर्बला की महान घटना के समय इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम बीमार थे और इसी कारण वे कर्बला में सत्य व असत्य के युद्ध में भाग न ले सके।         कर्बला की घटना का एक लेखक हमीद बिन मुस्लिम लिखता है “आशूर के दिन इमाम हुसैन अलैहिस्लाम के शहीद हो जाने के बाद यज़ीद के सैनिक इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के पास आये। वह बीमार और बिस्तर पर सोये हुए थे। चूंकि यज़ीद की सैनिकों को यह आदेश द

हिन्दू और मुसलमान की मोहब्बत आप भी देखें