पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब जिस रास्ते से गुजरते थे उस पर रोजाना एक बुढ़िया कूड़े फेंक देती थी
,आप खुद पर पड़े कूड़े को साफ़ करके आगे निकल जाते थे,ये सिलसिला कई रोज़ चला ,एक रोज़ कूड़ा ऊपर से नही फेंका गया ,दूसरे रोज़ भी ,तो पैगम्बर साहब ने अपने अनुयायियों से पूछा की वो बूढी औरत कहाँ है,लोगों ने बताया की वो बीमार है !
आप तुरंत उसका हाल चाल लेने उसके घर जा पहुचे ,बुढ़िया आपको देख कर घबराई और कहने लगी आज जब मैं बीमार हूँ,कमज़ोर हूँ तो तुम मुझसे बदला लेने आये हो ,पैगम्बर साहब ने इतना सुनते ही कहा 'नही ,मैं तो आपकी मिजाजपुर्सी के लिए आया हूँ,ये देखने आया हूँ की अब तुम ठीक हो ! यह सुनना था और उस बूढी महिला ने पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब से माफ़ी मांगी और अल्लाह पर ईमान ले आई और मुस्लमान हो गई! इस कथा से साफ साफ मालूम हो जाता है इस्लाम लोगों से मोहब्बत करना सिखाता है नफरत करना मुसलमानों का धर्म नही , पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब की सहनशीलता पुरे विश्व के लिए सीख का मार्ग है।
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