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घबराओ नहीं[जरुर पढे]

युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...

हिज़्बुल्लाह की बढ़ती मिसाइल शक्ति इस्राईली मीडिया की ज़बानी

सैन्य मामलों के इस्राईली विशेषज्ञ एलॉन बेन-डेविड ने हाल ही में एक लेख प्रकाशित किया है, जिसका शीर्षक हैः क्या इस्राईल सबसे बड़े रणनीतिक ख़तरे की अनदेखी कर रहा है?

सीरिया में इस्राईल ने हवाई हमलों में वृद्धि कर दी है, लेकिन उसके यह हमले हिज़्बुल्लाह को सटीक व गाइडेड मिसाइलों के उत्पादन तथा निर्माण की स्वतंत्र क्षमता हासिल करने से रोकने में नाकाम रहे हैं। 

लेख में उल्लेख किया गया है कि इस्राईल को असली रणनीतिक ख़तरे का सामना लेबनान से है, न कि सीरिया से, लेकिन इस्राईल, हिज़्बुल्लाह को अपनी मिसाइल शक्ति बढ़ाने से रोकने में नाकाम हो गया है।

विभिन्न स्रोतों से ऐसे संकेत मिले हैं कि हिज़्बुल्लाह के पास मध्यम से लंबी दूरी तक के सैकड़ों सटीक मिसाइल हैं। ऐसा लगता है कि संगठन के पास अभी तक ऐसे मिसाइलों के निर्माण की पूर्ण क्षमता नहीं है, लेकिन यह अपने "गूंगे" मिसाइलों को भी सटीक मारक क्षमता वाले मिसाइलों में बदलने की योग्यता रखता है।

लेबनान विशेष रूप से हिज़्बुल्लाह इस्राईल से दो युद्ध लड़ चुका है। पहला सन् 2000 में और दूसरा सन् 2006 में। दोनों ही लड़ाईयों में हिज़्बुल्लाह ने युद्ध के मैदान में अपनी क्षमता का लोहा मनवाया और इस्राईली सेना को पीछे हटने पर मजबूर करके ज़ायोनी शासन के अजेय होने के मिथक को तोड़ दिया था।





लेबनान और इस्राईल 1967 से युद्ध की स्थिति में है। ज़ायोनी शासन ने 1967 में लेबनान के शेबा फ़ार्म इलाक़े पर अवैध क़ब्ज़ा कर लिया था।

लेख के मुताबिक़, इस्राईली सेना पहले ही, लेबनान से सटीक मिसाइलों के रणनीतिक ख़तरे के बारे में चिंता व्यक्त कर चुकी है। हिज़्बुल्लाह तेल-अवीव पर मिसाइलों की बारिश करने में सक्षम है और वह ज़ायोनी शासन के मुख्यालय को भी निशाना बनाने की क्षमता रखता है। 2006 में हमारे सिरों पर हज़ारों की संख्या में ग़ैर-सटीक मिसाइल आकर गिरे और हमें आश्चर्यचकित कर गए। हिज़्बुल्लाह के पास उस समय लगभग 14,000 रॉकेट थे। लेकिन आज उसके पास 70,000 रॉकेट और मिसाइल हैं।

एक दूसरा लेख अमरीकी पत्रिका काउंटर-पंच ने प्रकाशित किया है, जिसमें हिज़्बुल्लाह की सफलताओं का उल्लेख किया गया है।

इस लेख के मुताबिक़ः लेबनान पर इस्राईली हमलों के सशस्त्र प्रतिरोध के रूप में जन्म लेने वाला हिज़्बुल्लाह संगठन, अब एक ऐसी संस्था के रूप में विकसित हो चुका है, जो रक्षा, राजनीति, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्रों में अपनी लाजवाब सेवाएं प्रदान कर रहा है। लगातार कई संघर्षों में ज़ायोनियों को हराने के बाद, इसने चुनावी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर समर्थन हासिल किया और अब लेबनान के प्रमुख राजनीतिक दलों में से एक है।

दक्षिणी लेबनान पर इस्राईल के हमले के बाद, 1982 में हिज़्बुल्लाह का गठन हुआ। हिज़्बुल्लाह के कड़े प्रतिरोध के कारण सन् 2000 में इस्राईल को दक्षिणी लेबनान से बाहर निकलना पड़ा। उसके बाद से यह इस्लामी प्रतिरोधी संगठन लगातार शक्तिशाली हो रहा है और इसने दुश्मनों की नींद हराम कर रखी है।

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