लंदन एजेंसियां :वायु प्रदूषण का खतरा सिर्फ सड़कों तक सीमित नहीं हैं। घरों में घटता खुलापन और आराम देने वाले आधुनिक उपकरणों से पनप रहा अंदरूनी प्रदूषण भी लोगों को बीमार कर रहा है। यह अंदरूनी प्रदूषण श्वसन रोग समेत फेफड़े की कई बीमारियों कारण बन रहा है। ब्रिटिश विशेषज्ञों ने एक अध्ययन में यह चेतावनी दी है।
अंदरूनी प्रदूषण की अनदेखी : शोधकर्ताओं ने कहा, बाहर के वायु प्रदूषण के खतरों से हम सभी परिचित हैं। यह हर साल ब्रिटेन में 40 हजार और अमेरिका में दो लाख लोगों की असमय मौत का कारण बनता है। लेकिन ज्यादातर लोगों को इसका अंदाजा नहीं है कि छोटे घर के भीतर की प्रदूषित वायु भी स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। घरेलू उपकरणों का असर : उन्होंने कहा, आजकल ज्यादातर घरों में गैस-चूल्हों का इस्तेमाल किया जाता है। घरों की साफ-सफाई के लिए रासायनिक स्वच्छता उत्पादों का प्रयोग होता है। कमरों को गर्म या ठंडा रखने के लिए एयरकंडीशनर का इस्तेमाल भी आम है। शोधकर्ताओं के अनुसार, ये सारी चीजें घर की अंदरूनी हवा की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं, जिनका असर हमारे फेफड़ों पर पड़ता है।
घरों में ही कैद रहते: शोधकर्ताओं ने उन्होंने कहा, 90} लोग ज्यादा समय घरों के भीतर ही बिताते हैं। वास्तव में मौजूदा दौर में ज्यादातर लोग या तो घरों में रहते हैं या कार्यालय में। नतीजतन वे तमाम लोग ज्यादा समय तक अंदरूनी प्रदूषित वायु के संपर्क में रहते हैं, जो उनकी सेहत को बर्बाद कर सकता है।
लगातार घटता खुलापन : मैकिंटोश एन्वायरमेंटल आर्किटेक्चर रिसर्च यूनिट के शोधकर्ता ने कहा,आधुनिक घर प्राय: चारों ओर से बंद होते जा रहे हैं। उनके भीतर तरह-तरह के प्रदूषक और रसायन मौजूद हो सकते हैं, जो स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं। गैस-चूल्हे, रासायनिक स्वच्छता उत्पाद, दीवारों के रंग, वातानुकूलन प्रणाली, पालतू पशु-पक्षी आदि घरों के भीतर की वायु को प्रदूषित करने के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।
शोधकर्ताओं ने पाया कि तकरीबन 46 घरों में नमी और फफूंदी किसी न किसी रूप में मौजूद है। उनके मुताबिक, नमी एक बड़ी समस्या है इससे फफूंदी और कवक को बढ़ावा मिलता है। इससे धूल कणों को भी घर में जमने का मौका मिलता है। इन चीजों से अस्थमा की चपेट में आने की आशंका बढ़ जाती है। इनसे फेफड़ों के रोग और सांस में अवरोध जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। घरों में हवाओं के आसानी से आने-जाने का रास्ता नहीं होने से बैक्टीरिया और वायरस वहां आसानी से फैल सकते हैं, जिससे अन्य रोगों का खतरा भी बढ़ जाता है।
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