युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...
म्यांमार में अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों की जाच करने वाली टीम को म्यांमार सरकार ने रोका
म्यांमार में अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों के जारी घातक दमन के बीच इस देश में मानवाधिकार की स्थिति की जांच के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से नियुक्त की गयीं आज़ाद प्रतिवेदक को म्यांमार सरकार ने आने से मना कर दिया है।
यूएन की विशेष प्रतिवेदक यांगही ली का जनवरी से ही दक्षिण-पूर्वी देश म्यांमार का दौरा विलंबित होता आया है। वह म्यांमार के पश्चिमी राज्य राख़ीन में रोहिंग्या मुसलमानों के व्यापक स्तर पर हो रहे दमन सहित म्यांमार में मानवाधिकार की स्थिति की समीक्षा करना चाहती हैं।
म्यांमार की सरकार ने यांगही ली को दौरा करने से मना कर दिया और उनसे कहा है कि जब तक वे इस पद पर रहेंगी उन्हें म्यांमार आने नहीं दिया जाएगा। यह बात यांगही ली ने बुधवार को अपने एक बयान में कही।
उन्होंने कहा कि यह इस बात का चिन्ह है कि राख़ीन राज्य में ज़रुर कुछ भयंकर हुआ है जिसे छिपाने की कोशिश हो रही है।
उन्होंने अपने बयान में कहा, "मुझे सौंपी गयी ज़िम्मेदारी के साथ सहयोग न करने के इस एलान को इस गंभीर चिन्ह के रूप में देखा जाएगा कि राख़ीन सहित इस देश के बाक़ी क्षेत्रों में कुछ भयंकर हो रहा है।"
उन्होंने इस साल जनवरी में म्यांमार का दौरा किया था और उन्हें राख़ीन के कुछ इलाक़ों में जाने नहीं दिया गया था। म्यांमार सरकार ने सुरक्षा चिंताओं का हवाला देकर उन्हें सिर्फ़ उन लोगों से बात करने की इजाज़त दी थी जिन गांव के लोगों को म्यांमार की सरकार ने बात करने की इजाज़त दी थी।
यांगही ली ने अपने 12 दिवसीय दौरे के दौरान 3 दिन राख़ीन राज्य में गुज़ारे थे। (MAQ/N)
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