युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...
खालिस्तान समर्थक समूहों ने संयुक्त राष्ट्र से अपील की है कि वह आत्म-निर्धारण के लिए जनमत संग्रह को समर्थन दें। इसके लिए समूहों ने संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन भी किया।
सिख कार्यकर्ताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों को ‘ए केस फॉर पंजाब रेफरेंडम 2020- सिख्स राइट टू सेल्फ डिटरमिनेशन-वाय एंड हाउ’ शीर्षक नामक रिपोर्ट सौंपी।
सिखों के अधिकारों के लिए काम करने वाले समूह ‘सिख्स फॉर जस्टिस’ की यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुटेरेस को संबोधित है। इसमें संयुक्त राष्ट्र से अपील की गई है कि वह सिखों के आत्मनिर्धारण के अधिकार को यथार्थ रूप देने के लिए पंजाब में जनमत संग्रह कराने की सिखों की मांग का समर्थन करे।
सिख अधिकार समूहों और उत्तर अमेरिकी गुरुद्वारा समितियों ने संयुक्त राष्ट्र से अपील की कि वह सिखों के अलग देश खालिस्तान के लिए ‘पंजाब मुक्ति जनमत संग्रह’ को समर्थन दे।
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