देवबंद (सहारनपुर)। देश की आजादी की लड़ाई में विश्व प्रसिद्ध इस्लामिक संस्था दारुल उलूम देवबंद ने भी अहम भूमिका निभाई। दारुल उलूम के छात्र मौलाना महमूदुल हसन ने रेशमी रुमाल तहरीक चलाकर आजादी की लड़ाई को नई धार दी। इस आंदोलन में आजादी के मतवाले फिरंगियों की नजर से बचाकर गुप्ता योजनाओं का संदेश रेशमी रुमाल पर लिखकर आदान-प्रदान करते थे। देश को स्वतंत्र कराने में दारुल उलूम के उलेमा ने जो कुर्बानियां दीं उसको शायद ही कभी भुलाया जा सके। शेखुल हिंद की इन्हीं खिदमात को देखते हुए भारत सरकार द्वारा उनकी तहरीक पर डाक टिकट भी जारी किया गया।
आजादी की लड़ाई को नई दिशा व दशा देने वाले मौलाना महमूदुल हसन का जन्म देवबंद के एक इल्मी खानदान में हुआ था। वर्ष 1905 में दारुल उलूम की बागडोर संभालने वाले हसन उन स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे, जिन्हें उनकी कलम, ज्ञान, आचार व व्यवहार आदि विशेषताओं के बूते शेखुल हिद (भारतीय विद्वान) की उपाधि से विभूषित किया गया। मौलाना शेखुल हिद ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए रेशमी रुमाल आदोलन चलाया जो कि भारत को आजाद कराने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चलाया गया पहला आदोलन था। इस आदोलन के तहत फिरगी शासन को ध्वस्त करने के लिए सभी गुप्त योजनाएं रेशमी रुमाल पर लिखकर भेजी जाती थीं। वर्ष 1916 में रेशमी रुमाल आदोलन चरमोत्कर्ष पर था। इस आदोलन से अपनी हुकूमत की नींव को ढहता देख फिरंगियों ने शेखुल हिद मौलाना महमूद हसन को उनके साथियों मौलाना उजैर गुल, हकीम नुसरत हुसैन व मौलाना वहीद अहमद सहित गिरफ्तार कर लिया तथा रोम सागर के मालटा टापू के जंगी कैदखानों में डलवा दिया, जहा शेखुल हिद व उनके साथियों ने चार साल तक जेल की पीड़ा झेली। सजा भुगतने के बाद शेखुल हिंद हिंदुस्तान पहुंचे तथा महात्मा गांधी से मिलकर आजादी की लड़ाई को नया आयाम दिया। शेखुल हिंद की आजादी में दिए गए योगदान को भारत सरकार ने नजरअंदाज नहीं किया, जिसके चलते शेखुल हिंद की आजादी की तहरीक रेशमी रुमाल आंदोलन के नाम से २०१२-२०१३ ही में दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रपति द्वारा डाक टिकट जारी किया गया है।
एक बार share जरुर करें ताकि लोगों को मालूम हो जाये भारत में आज़ादी सिर्फ एक विशेष समुदाय नहीं दिलाई थी
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