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घबराओ नहीं[जरुर पढे]

युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...

ظلم سے کوئی حکومت نہیں چلتی – مولانا سید نوراللہ عابدی

ضرورت، مشروعیت و مقبولیت قدرت و حکومت (اجمالی نظر)
ضرورت حکومت: چونکہ انسان سماجی زندگی بسر کرتا ہے اور مختار ہونے سبب سماج کو درہم و برہم کرنے والا عنصر قرار پا سکتا ہے لہذا انسانی سماج کو محفوظ رکھنے کیلئے حکومت کا ہونا ضرور ی ہے چنانچہ امیر امومنین ع فرماتے ہیں (لابد من حکومه بره او فاجره) اگر چہ ظالم حکومتوں کے زوال کی بھی بشارت دی گئی ہے اور یہ سنت الہی ہے کہ قدرت عارضی چیز و بدلتی رہتی ہے چونکہ قدرت مطلق فقط اس کی ذات سے مخصوص ہے، مومنین کو صبر اور ساتھ ہی استقامت کی ضرورت ہوتی ہے۔

✳حکومت فقط خدا کا حق ہے کسی کو کسی پر حکومت کا حق نہیں چونکہ سب انسان ایک ہی جنس سے تعلق رکھتے ہیں لہذا کسی کو کسی پر فوقیت نہیں و لا حکم الا لله، پس یا خدا خود حکومت کرے یا اسکی طرف سے نمایندہ ہو یا نمایندہ نے کسی کی معرفی کی ہو کہ یہ منصب بھی خدا کی ہی طرف سے ہے، (اور ولایت فقیہ کا مسئلہ بھی یہیں سے حل ہوتا ہے) یونان قدیم اور عقلائے عالم کے نزدیک صالحان کا حق ہے یعنی جو انسانوں میں سب سے اعلی، اشرف و صاحب فضیلت ہو، ایسی حکومت کو عدم مقبولیت کی صورت میں بھی خدا کی طرف سے مشروعیت حاصل ہوتی ہے جو کبھی ختم نہیں ہوتی ہے اس کے علاوہ جو بھی ہو وہ غصبی حکومت ہوتی ہے، چونکہ حکومت خدا کے مقابلے پر ہے۔
امیر المومنین ع 25 سال عدم مقبولیت کی وجہ سے خانہ نشین رہے لیکن مشرaوعیت  باقی ہے چونکہ حق آپکا ہے جو غصب ہو گیا (فی العین قذی و فی الحلق شجا) لعنه الله علی الغاصبین۔
خوب یہ مقبولیت کیا ہے؟
یہ قوت مجریہ کی احکام حکومتی کے اجرا میں مدد کرتی ہے وہ خواہ غاصب ہو یا حقدار جیسا کہ اوپر ذکر ہو چکا اگر غاصب ہے تو اجرای ظلم غالب ہوتا ہے اور حقدار ہو تو عدالت کا اجرا ہوتا ہے جیسا کہ امیر المومنین ع کا اجرائی دور آنے پر ہوا، لیکن مقبولیت اتنی خطرناک چیز ہے و لو دھوکے کے ہی ذریعہ ہو کہ کسی کو بھی قدرت بخش دیتی ہے اور نتیجتا ساتھ ہی قانونی و دنیاوی مشروعیت بھی۔
سوال: یہ آتی کہاں سے ہے؟
مقبولیت انتخابات یا کسی بھی قدرتی گھڑ دوڑ میں لوگوں کی رای یعنی ووٹ یا کسی بھی قدرت کے حق میں سماج کے سکوت کے ذریعہ جس سے کسی بھی انسان کو قدرت حاصل ہو جاتی ہے، اور یہ کسی بھی انسان کے ساتھ متولد نہیں ہوتی۔
دوسرے لفظوں میں یوں کہوں: یعنی یہ رائے اور سکوت فرعون کو فرعون، شداد کو شداد، معاویہ و یزید کو معاویہ و یزید بنا دیتی ہے وگر نہ بچے دینے والی کتیا کی کیا مجال مسلمانوں کی حاکم بن جائے، یہی حال تمام حکام دنیا کا ہے کہ پبلک کی رای اور سکوت انکو بادشاہ، وزیر یا کسی بھی طرح کی قدرت کا منصبدار بنا دیتا ہے، و الا حق قدرت و حاکمیت، خدا اور نمایندگان خدا یا ان کے جانشینان بر حق سے مختص ہے
نکتے کی بات: زیارت وارثہ میں شوم ثلاثہ پر (جس نے قتل کیا، جس نے ظلم کیا اور جو ساکت رہے) لعنت ہے، دو پہلے گروہ تو مانا سہی ہے کہ جن کی تعداد انگشت شمار سے  بھی کم ہوتی ہے لیکن تیسرا گروہ کیوں؟
ہاں! چونکہ یہ تیسرا ہی گروہ ہے جس سے پورا سماج تشکیل پاتا ہے اور اس کا سکوت و رائے زمانے کے حاکم یا ظالم کو اتنا جری بنا دیتا ہے کہ وہ چاہے جیسے ظلم ڈھائے، اور اپنے ہی جیسے انسان کو، انا ربکم الاعلی کہنے پر آمادہ کر دیتا ہے، پس اگر سماج کا یہ تیسرا طبقہ اپنے اندر فقط تھوڑی سی حیات کا اظہار کر دے تو ظالم کی جرئت نہیں کہ سماج کی کسی فرد پر ظلم کرے (حتی جنگل کا شیر حاکمیت حاصل ہونے کے با وجود بھینسوں کے اتحاد پر اپنی جان بچاتا نظر آتا ہے) پس زیارت کے اعتبار سے سماج کا یہ تیسرا گروہ سکوت اور رائے کی صورت میں بد ترین و ملعون ترین گروہ ہے جو کسی کو بھی قدرت بخش دیتا ہے، چونکہ سماج کا سب سے بڑا جزء یہی ہے کہ اس کے بغیر، سماج تشکیل ہی نہیں پا سکتا 
樂لھذا اب یہ ہر سماج کا اور ہر زمانے میں اپنا اپنا اختیار ہے کہ کس کے ہاتھ میں اپنی زمام سونپے شریف کے یا رذیل کے اور پھر اسکا ویسا ہی پھل پائے     توجہ: قدرت بخشنا اور سلب کرنا دونوں ہی کسی بھی سماج کے افراد کے ہاتھوں میں ہوتا ہے لیکن اسی شرط کے ساتھ کہ تیسرا گروہ تھوڑا سا اظھار حیات تو کرے، و الامر یرجع الی المبتلیین بہ، و السلام علیکم، التماس دعاء
سید نوراللہ عابدی 
(الهی و ربی من لی غیرک اسئله کشف ضری)

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