युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...
ब्रिटिश ख़ुफ़िया एजेंसी MI-6 के पूर्व प्रमुख ने एक बड़ा रहस्योद्घाटन करते हुए कहा है कि सऊदी अरब की ख़ुफ़िया एजेंसी के पूर्व अध्यक्ष ने हिटलर की शैली में शिया मुसमानों के नरसंहार की योजना बनाई थी।

द इंडीपेंडेट अख़बार ने रिचर्ड डीयरलव के हवाले से लिखा है कि रियाज़ ने उत्तरी इराक़ पर क़ब्ज़े के लिए दाइश की सहायता की, क्योंकि उसका यह क़दम शिया मुसलमानों के जनसंहार की योजना का ही भाग था।
डीयरलव ने पिछले हफ़्ते एक ब्रितानी संस्था से कहा था कि 11 सितम्बर 2001 की न्यूयॉर्क की घटना से पहले बंदर बिन सुल्तान ने मुझसे कहा था कि मध्यपूर्व में वह दिन दूर नहीं है कि जब एक अरब से अधिक सुन्नी शियों को सफ़ाया कर देंगे।
डीयरलव ने उल्लेख किया कि बंदर बिन सुल्तान की योजना व्यवहारिक हो रही है और 2003 के बाद से आत्मघाती बम धमाकों और अन्य आतंकवादी कार्यवाहियों में 10 लाख से अधिक शिया मुसलमान मारे जा चुके हैं।
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