युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...
सुन्नी मुसलमानो ने शिया धर्म गुरु हज़रत आयतुल्लाह सीस्तानी साहब का सुन्नी भाइयों की हमदर्दी के प्रति उनका आभार व्यक्त किया।
अहलेबैत (अ) न्यूज़ एजेंसी अबना के अनुसार इराक के अंबार के प्रांतीय परिषद ने हज़रत आयतुल्लाह सीस्तानी को एक पत्र लिखकर इराक में जारी समस्याओं खासकर सुन्नी क्षेत्रों के प्रति उनकी हमदर्दी पर उनका आभार व्यक्त किया है।
अंबार प्रांत में अतंकियों के माध्यम से घेरे को तंग किए जाने के बाद शियों के इस मरजए तक़लीद ने एक बयान जारी किया था, जिसे उनके प्रतिनिधि के माध्यम से कर्बला में जुमे की नमाज में पढ़ा गया था जिसमें इराकी सेना और सार्वजनिक स्वयंसेवकों को इस प्रांत में सहायता भेजने की अपील की गई थी।
इस बयान के बाद इराकी सेना और सार्वजनिक स्वयंसेवकों ने अंबार में प्रवेश किया और आईएस का मुकाबला करके लोगों की जानों की रक्षा करने में सफल रहे। अंबार प्रांत के सरकारी अधिकारियों ने भी अपने पत्र में आयतुल्लाह सीसतानी का आभार व्यक्त किया है।
Via - ABNA 24
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