Skip to main content

घबराओ नहीं[जरुर पढे]

युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...

इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम पर सलाम हो

       इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने कर्बला की महान घटना के बाद लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला। सज्जाद, इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को एक प्रसिद्ध उपाधि थी। महान ईश्वर की इच्छा से इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम कर्बला में जीवित बच गये था ताकि वह कर्बला की महान घटना के अमर संदेश को लोगों तक पहुंचा सकें।

       इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ज्येष्ठ सुपुत्र हैं और 36 हिजरी क़मरी में उनका जन्म पवित्र नगर मदीने में हुआ और 57 वर्षों तक आप जीवित रहे। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के जीवन का महत्वपूर्ण भाग कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद आरंभ हुआ। कर्बला की महान घटना के समय इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम बीमार थे और इसी कारण वे कर्बला में सत्य व असत्य के युद्ध में भाग न ले सके।

        कर्बला की घटना का एक लेखक हमीद बिन मुस्लिम लिखता है “आशूर के दिन इमाम हुसैन अलैहिस्लाम के शहीद हो जाने के बाद यज़ीद के सैनिक इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के पास आये। वह बीमार और बिस्तर पर सोये हुए थे। चूंकि यज़ीद की सैनिकों को यह आदेश दिया गया था कि वे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के परिवार के समस्त पुरुषों की हत्या कर दें इसलिए उन्होंने इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को भी शहीद करना चाहा परंतु उन्होंने इमाम को बीमारी के बिस्तर पर देखकर उन्हें छोड़ दिया।
       इस बात में कोई संदेह नहीं है कि आशूर के दिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के बीमार होने में ईश्वरीय रहस्य व तत्वदर्शिता नीहित है ताकि वह अपने पिता के मार्ग को जारी रख सकें। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की इमामत 34 वर्षों तक थी और उनकी ज़िम्मेदारियों का एक महत्वपूर्ण भाग इस्लामी जगत तक कर्बला की महत्वपूर्ण घटना के संदेशों को पहुंचाना था।


      कर्बला की घटना और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद इस्लामी समाज की स्थिति बहुत ही संवेदनशील चरण में प्रविष्ट हो गयी थी। एक ओर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन के संदेशों को लोगों के लिए बयान किये जाने और बनी उमय्या के झूठे दावों के प्रचार से मुकाबला किये जाने की आवश्यकता थी और दूसरी ओर इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं को बयान करके उन ग़लत बातों से मुकाबले की ज़रूरत थी जो इस्लाम की शिक्षाओं के लिए ख़तरा बनी हुई थीं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने इस प्रकार की परिस्थिति में अपने कार्यक्रम को एक नियत समय में पूरा किया। आरंभ में कुछ समय तक इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपने खुत्बों व भाषणों के माध्यम से लोगों को सच्चाई से अवगत करके अपने पिता के मार्ग को जारी रखा और अपेक्षाकृत लंबे समय तक इस्लाम धर्म की विशुद्ध शिक्षाओं को बयान करके लोगों की सोच और व्यवहार को बेहतर बनाने का प्रयास किया।


      आशूर के बाद की घटनाओं में आया है कि सन 61 हिजरी क़मरी में 12 मोहर्रम को इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम बंदियों के काफिले के साथ कूफा आये। बंदियों का जो काफिला था उसमें कर्बला की घटना में बच जाने वाले बच्चे और महिलाएं थीं। इस काफिले में दो महान हस्तियां एक इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम और दूसरे हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा थीं। इन दो महान हस्तियों की मौजूदगी बंदियों की ढ़ारस और उनकी शक्ति का कारण थी। जब यह काफिला कर्बला से कूफा पहुंचा तो बंदियों को देखने के लिए बहुत बड़ी भीड़ एकत्रित थी। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने उस समय अवसर को उचित समझा और लोगों को संबोधित करके कहा हे लोगो! मैं हुसैन का बेटा अली हूं। मैं उसका बेटा हूं जिसकी प्रतिष्ठा का तुमने अनादर किया। लोगों, ईश्वर ने हम अहलेबैत की परीक्षा ले ली है। सफलता, न्याय और सदाचारिता को हमारे अंदर रख दिया है और गुमराही एवं बर्बादी को हमारे दुश्मनों को दे दिया है। क्या तुम लोगों ने हमारे पिता को पत्र नहीं लिखा था और उनसे बैअत नहीं की थी अर्थात उनकी आज्ञापालन का वचन नहीं दिया था? किन्तु उसके बाद तुम लोगों ने धोखा दिया और उनके विरुद्ध युद्ध करने के लिए खड़े हो गये। कितना बुरा कार्य किये और कितना बुरा सोचे। अगर पैग़म्बरे इस्लाम तुमसे कहें कि मेरे बेटे की हत्या कर दी मेरा अनादर किया और तुम मेरी क़ौम व अनुयाई नहीं हो तो तुम किस मुंह से उन्हें देखोगे?


एक दूसरे अवसर पर जब इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम काफिले के साथ शाम पहुंचे तो उन्होंने अत्याचारी व भ्रष्ट शासक यज़ीक के सामने अदम्य साहस का परिचय देते हुए कहा हे लोगो जो मुझे पहचानता है वह पहचानता है और जो नहीं जानता उसके लिए मैं अपना परिचय कर रहा हूं ताकि वह पहचान जाये। मैं उसका बेटा हूं जो बेहतरीन हज करने वाला था यानी मैं पैग़म्बरे इस्लाम का बेटा हूं जो जिब्राईल के साथ मेराज अर्थात आसमान पर गये और वहां उसने आसमान के फरिश्तों के साथ नमाज़ पढ़ी। वह ईश्वरीय संदेश प्राप्त करने वाला था मैं लोक-परलोक की महिला फातेमा का बेटा हूं और कर्बला की भूमि में ख़ून से रंगीन व लतपथ होने वाले का बेटा हूं।“


       जब इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का भाषण यहां तक पहुंचा जो यज़ीद के दरबार में मौजूद लोग बहुत प्रभावित हुए और कुछ लोगों ने रोना शुरू कर दिया। अत्याचारी शासक यज़ीद की सरकार के आधार हिल गये। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के अलावा हज़रत ज़ैनब ने भी यज़ीद के दरबार में जो भाषण दिया था वह लोगों की जागरुकता का कारण बना इस प्रकार से कि कुछ लोगों ने यज़ीद के दरबार में ही आपत्ति जताई। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम और हज़रत ज़ैनब के वास्तविकता प्रेमी भाषणों ने बनी उमय्या की सरकार के प्रति लोगों की घृणा में वृद्धि कर दी। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के भाषण से यज़ीद बहुत चिंतित हो गया। उसने इमाम को चुप कराने और परिस्थिति को बदलने के लिए मोअज़्ज़िन को अज़ान देने के लिए कहा। इमाम अज़ान की आवाज़ सुनकर चुप हो गये और अज़ान देने वाला जब इस वाक्य पर पहुंचा कि मैं गवाही देता हूं कि मोहम्मद ईश्वर के दूत हैं तो इमाम ने यज़ीद से कहा क्या यह पैग़म्बर मेरे पूर्वज का नाम है या तेरे? अगर तू यह कहे कि मेरे पूर्वज का नाम है तो सब जान जायेंगे कि तू झूठ बोल रहा है और अगर तू यह कहे कि मेरे पूर्वज का नाम है तो तुमने किस दोष में मेरे पिता की हत्या की और उनके माल को लूट लिया और उनकी महिलाओं को बंदी बनाया? प्रलय के दिन तुझ पर धिक्कार हो।“


       इतिहास में आया है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के परिजनों ने यज़ीद की उसी सभा में इमाम हुसैन और दूसरे शहीदों के साथ कर्बला में जो कुछ हुआ था उसे बयान करना आरंभ कर दिया। यज़ीद इस सभा के माध्यम से अपनी प्रतिष्ठा व रोब में वृद्धि की कुचेष्टा में था परंतु स्थिति उसकी अपेक्षा के बिल्कुल विपरीत हो गयी जिससे वह बहुत चिंतित हो गया। जब शाम के लोग कर्बला में शहीद होने वाली हस्तियों और उनके अतीत से अवगत हो गये और बनी उमय्या के अपराधों से पर्दा उठ गया तो भ्रष्ट शासक यज़ीद जनमत को गुमराह करने की सोच में पड़ गया। उसने बंदियों के साथ अपने अत्याचारपूर्ण व्यवहार को परिवर्तित और उनके साथ सम्मान पूर्वक व्यवहार करने का प्रयास किया। वह इस बात से भयभीत था कि कहीं लोग उसकी सरकार के विरुद्ध आंदोलन न कर दें इसीलिए उसने कर्बला के बंदियों को ढ़ारस बधाने का प्रयास किया और इस तरीक़े से उसने अपने पापों पर पर्दा डालने की चेष्टा की।

     अतः वह कर्बला के बंदियों की उस इच्छा के समक्ष घुटने टेक देने पर बाध्य हो गया कि वे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाना चाहते हैं और उसने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाने के लिए “दारूल हिजारह” नामक स्थान को विशेष कर दिया और बंदियों ने सात दिनों तक इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाया। धीरे-2 इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम शहादत व कर्बला की घटना की ख़बर पूरे शहर में फैल गयी। यज़ीद ने जब स्थिति को ख़राब होते देखा तो उसने कारवां को मदीने भेजने का निर्णय किया। जब यह कारवां शाम से मदीना पहुंचा तो नगर के लोग उनके स्वागत के लिए उमड़ पड़े। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम शोकाकुल लोगों के मध्य मिम्बर पर गये और ईश्वर की प्रशंसा करने के बाद फरमाया हे लोगो! ईश्वर ने बहुत बड़ी विपत्ति से हमारी परीक्षा ली है। इस विपत्ति का कोई उदाहरण नहीं है। हे लोगो! कौन है जो इस महा त्रासदी को सुनकर प्रसन्न होगा? कौन दिल है जो हुसैन बिन अली की शहादत की ख़बर सुनकर दुःखी नहीं होगा? कौन आंख है जो आंसू नहीं बहायेगी? हम ईश्वर की ओर से आये हैं और ईश्वर की ही ओर पलट कर जायेंगे। इस हृदयविदारक मुसीबत में हम ईश्वर की ओर ध्यान देते हैं और उसके मार्ग में समस्त मुसीबतों को सहन करने के लिए तैयार हैं और हम जानते हैं कि ईश्वर प्रतिशोध लेने वाला है।“


      इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने पवित्र नगर मदीना में कर्बला की घटना की याद को जीवित रखा और वास्तविकताओं को बयान करके कर्बला के बाद के आंदोलनों की भूमि तैयार कर दी। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपने प्रयास से अमवी शासकों के चेहरों पर पड़ी नक़ाब को हटा दिया। साथ ही उन्होंने इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं के प्रचार-प्रचार के लिए काफी प्रयास किया। इस प्रकार इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपनी इमामत के 34 वर्षों के दौरान उस समय के समाज में विभिन्न रूपों में जागरूकता की लहर पैदा कर दी। जब अमवी शासक वलीद बिन अब्दुल मलिक ने स्वयं को इस जागरूकता की लहर के मुक़ाबले में अक्षम देखा तो उसने जागरूकता के स्रोत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को शहीद करने का षडयंत्र रचा परंतु वह इस बात से अचेत था कि सच्चाई का दीप कभी बुझता नहीं है और वह हमेशा प्रज्वलित व प्रकाशमयी रहेगा। अंततः अमवी शासक वलीद ने एक षडयंत्र रचकर इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को वर्ष 94 हिजरी क़मरी में शहीद करवा दिया।

यहाँ पर सुने

Comments

Popular posts from this blog

बंगाल 24 परगना: हिंदू पड़ोसी की मदद के लिए पैसा बांट रहे मुस्लिम

दंगाग्रस्त बशीरहाट में उम्मीद की कोंपले फूट रही हैं. बांग्लादेश सीमा से लगे उत्तरी 24 परगना के इस इलाके में मुस्लिम लोग अपने हिंदू पड़ोसियों की मदद के लिए पैसा बांट रहे हैं. हफ्ते भर पहले हुई बशीरहाट हिंसा में सौ से ज्यादा दुकानें और मकान क्षतिग्रस्त हो गए. इनमें हिंदुओं की दुकानें और मकानों को काफी क्षति पहुंची है. ये हिंसा सोशल मीडिया पर वायरल हुई आपत्तिजनक पोस्ट के चलते हुई जिसमें इस्लाम और मुस्लिम के बारे में गलत टिप्पणी की गई थी. बशीरहाट की त्रिमुहानी का नजारा कुछ ऐसा है कि पुलिस और सुरक्षा बल के पहरे में खड़े मोहम्मद नूर इस्लाम गाजी और अजय पाल को भीड़ घेरे हुई है. यही पर अजय पाल की पान बीड़ी की दुकान है. मंगलवार को भड़की हिंसा में इस इलाके में खूब बवाल हुआ था. दुकानें लूट ली गई थीं और घरों में तोड़फोड़ हुई. गाजी और कई मुसलमान पाल से अपनी दुकान दोबारा खोलने की गुजारिश कर रहे हैं. साथ ही पाल से 2 हजार रुपये लेने की गुजारिश कर रहे हैं. स्थानीय बिजनेसमैन गाजी ने कहा, 'बाबरी विध्वंस के बाद भी हमारे शहर में शांति रही. मंगलवार को जो हुआ वो ठीक नहीं है. कुछ बाहरी लोग और हमारे स्थ...

हिन्दू लश्कर-ए-तयैबा का आतंकी "संदीप शर्मा" पकड़ा गया

जम्मू-कश्मीर पुलिस ने लश्कर-ए-तयैबा के एक आतंकी को गिरफ्तार कर लिया है। कश्मीर के आईजीपी मुनीर खान ने बताया,'हाल ही में बशीर लश्करी को मारा है। संदीप शर्मा भी उसी घर में था, जहां लश्करी रुका हुआ था। लश्कर के आतंकी संदीप की मदद से एटीएम लूटते थे और वे गांव में अनैतिक कामों में लिप्त थे।' IGP मुनीर खान ने बताया कि उत्तर प्रदेश के रहने वाले राम शर्मा के बेटे संदीप शर्मा को पुलिस ने मुजफ्फरनगर में पकड़ लिया। खान ने बताया कि लश्कर अपराधियों का अड्डा बन गया है। खान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि संदीप अपना नाम आदिल बताता था। वह दो नामों की पहचान के साथ रहता था। ईजीपी खान ने बताया कि संदीप कुमार नाम का यह आतंकी उत्तर प्रदेश का रहने वाला है। खान ने बताया, 'संदीप अपराधी था और वह शोपुर के शकूर नाम के आदमी के जरिए लश्कर से संपर्क में रहता था।' कश्मीर के अनंतनाग में सुरक्षाबलों ने शनिवार सुबह एक मुठभेड़ में लश्कर के टॉप कमांडर बशीर लश्करी समेत दो आतंकियों को मार गिराया था। लश्करी पिछले महीने अचबल में पुलिस दल पर हुए हमले में शामिल था। इस हमले में थाना प्रभारी फिरोज अहम...

हमारे साथ अमरीकियों का रवैया ग़लत रहा है -ईरानी वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई

 वरिष्ठ नेता ने अपने वर्चुअल संबोधन के शुरू में 14वीं हिजरी शम्सी शताब्दी की शुरूआत और 15वीं हिजरी शम्सी शताब्दी की शुरुआत की तुलना करते हुए कहा कि पिछली शताब्दी में रज़ा ख़ान के तानाशाही शासन की शुरूआत हुई, जो वास्तव में रज़ा ख़ान द्वारा और उसके हाथों ब्रिटिश तख़्तापलट था। उन्होंने कहा कि रज़ा ख़ान का शासन ब्रिटेन पर निर्भर था। लेकिन 15वीं शत्बादी के पहले साल में देश में चुनाव हैं, जिसका मतलब है कि देश में जनता के मतों के आधार पर स्वाधीन सरकार का शासन है। इस साल जून में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों का ज़िक्र करते हुए वरिष्ठ नेता ने कहा कि चुनाव देश में एक पुनर्निमाण प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से देश के कार्यकारी हिस्सों को ताज़ा दम किया जाएगा। आयतुल्लाह ख़ामेनई का कहना था कि कुछ देशों की जासूसी एजेंसियां विशेष रूप से अमरीका और ज़ायोनी शासन की जासूसी एजेंसियां कुछ समय से जून में होने वाले चुनावों का रंग फीका करने का प्रयास कर रही हैं और इस उद्देश्य तक पहुंचने के लिए चुनाव के आयोजकों पर (चुनावी) इंजीनियरिंग का आरोप लगा रही हैं और लोगों हतोत्साहित कर रही हैं कि तुम्हारे वोट का कोई मह...

मैं ईसाई हूं पर पैग़म्बर मुहम्मद का अपमान बर्दाश्त नहीं

  यह घटना इलेग्ज़ंडरिया के एक स्कूल की है। यह तसवीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और हैशटैग ट्रेंड करने लगाः मैं ईसाई हूं मगर धर्मों का अपमान बर्दाश्त नहीं। खेल ग्राउंड पर पंक्तिबंद्ध खड़े होकर  पैग़म्बर मुहम्मद का अपमान बर्दाश्त नहीं का नारा लिखने वालों में दर्जनों की संख्या में ईसाई छात्र शामिल हुए। मैं ईसाई हूं पैग़म्बर मुहम्मद का अपमान बर्दाश्त नहीं सोशल मीडिया पर इस तसवीर को बहुत सराहा गया। मीना नाम के ट्वीटर हैंडल से इस तसवीर के बारे में लिखा गया कि ईसाई छात्रों द्वारा पेश किया गया  यह दृष्य बेहद आकर्षक है। मैं भी ईसाई हूं लेकिन पैग़म्बर मुहम्मद का अपमान बर्दाश्त नहीं। फ़्रांस में सरकार के भरपूर समर्थन से पैग़म्बरे इस्लाम के आग्रहपूर्ण अनादर पर विश्व स्तर पर फ़्रांस का विरोध हो रहा है और ईरान, पाकिस्तान और तुर्की सहित कई सरकारों ने इस मुद्दे पर कठोर रुख़ अपनाया है।

शहादत : हज़रत इमाम बाकिर और इस्लाम मे सिक्के की ईजाद

 हज़रत इमाम मौहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम पहली रजब 57 हिजरी को जुमा के दिन मदीनाऐ मुनव्वरा मे पैदा हुऐ। अल्लामा मजलिसी लिखते है कि जब आप बत्ने मादर मे तशरीफ लाऐ तो आबाओ अजदाद की तरह घर मे गैब की आवाज़े आने लगी और जब नो महीने पूरे हुऐ तो फरीश्तो की बेइंतेहा आवाज़े आने लगी और शबे विलादत एक नूर जाहिर हुआ और आपने विलादत के बाद आसमान का रूख किया और (हजरत आदम की तरह) तीन बार छींके और खुदा की हम्द बजा लाऐ, पूरे एक दिन और रात आपके हाथ से नूर निकलता रहा। आप खतना शुदा, नाफ बुरीदा और तमाम गंदगीयो से पाक पैदा हुऐ। (जिलाउल उयून पेज न. 259-260) नाम, लक़ब और कुन्नीयत सरवरे कायनात रसूले खुदा (स.अ.व.व) और लोहे महफूज़ के मुताबिक आपका नाम मौहम्मद था और आपकी कुन्नीयत अबुजाफर थी और आपके बहुत सारे लक़ब थे कि जिन मे बाक़िर, शाकिर, हादी ज़्यादा मशहूर है। (शवाहेदुन नबुवत पेज न. 181) लक़बे बाक़िर की वजह बाक़िर बकरः से निकला है और इसका मतलब फैलाने वाला या शक़ करने देने वाला है। (अलमुनजिद पेज न. 41) इमाम बाक़िर को बाक़िर इस लिऐ कहा जाता है कि आपने उलूम को लोगो के सामने पेश किया और...

अमरनाथ: सलीम ने '50 यात्रियों को आतंकियों से बचाया

अमरनाथ यात्रियों से भरी जिस बस पर सोमवार को आतंकियों ने हमला किया, उसे चला रहे  ड्राइवर सलीम ने हिम्मत दिखाई। यात्रियों का कहना है  कि बस ड्राइवर ने सूझबूझ दिखाते हुए मौके से बस को किसी तरह भगाकर सुरक्षाबल के कैंप तक पहुंचाया। गौरतलब है कि अगर आतंकी बस में सवार होने में कामयाब हो जाते तो जानमाल का बड़ा नुकसान हो सकता था।  सलीम के रिश्तेदार जावेद ने न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में कहा, 'उन्होंने रात साढ़े 9 बजे मुझे फोन करके गाड़ी पर हुई फायरिंग की जानकारी दी। वह सात लोगों की जान नहीं बचा सके, लेकिन 50 से ज्यादा लोगों को सेफ जगह पहुंचाने में कामयाब रहे। मुझे उनपर गर्व है।' बता दें कि गुजरात के रजिस्ट्रेशन नंबर GJ09Z 9976 वाली बस अमरनाथ श्राइन बोर्ड में रजिस्टर नहीं थी। एक टॉप सुरक्षा अधिकारी ने नाम न छापे जाने की शर्त पर न्यूज एजेंसी पीटीआई से बताया कि इसमें सवार लोगों ने अपनी यात्रा दो दिन पहले ही पूरी कर ली थी और इसके बाद से वे श्रीनगर में ही थे। 

इस्लाम आतंक नहीं आदर्श है - स्वामी लक्ष्मी शंकाराचार्य

स्वामी लक्ष्मी शंकाराचार्यः   कई साल पहले दैनिक जागरण में श्री बलराज बोधक का लेख ' दंगे क्यों होते हैं?' पढ़ा, इस लेख में हिन्दू-मुस्लिम दंगा होने का कारण क़ुरआन मजीद में काफिरों से लड़ने के लिए अल्लाह के फ़रमान बताये गए थे.लेख में क़ुरआन मजीद की वह आयतें भी दी गयी थीं. इसके बाद दिल्ली से प्रकाशित एक पैम्फलेट ( पर्चा ) ' क़ुरआन की चौबीस आयतें, जो अन्य धर्मावलम्बियों से झगड़ा करने का आदेश देती हैं.' किसी व्यक्ति ने मुझे दिया. इसे पढने के बाद मेरे मन में जिज्ञासा हुई कि में क़ुरआन पढूं. इस्लामी पुस्तकों कि दुकान में क़ुरआन का हिंदी अनुवाद मुझे मिला. क़ुरआन मजीद के इस हिंदी अनुवाद में वे सभी आयतें मिलीं, जो पैम्फलेट में लिखी थीं. इससे मेरे मन में यह गलत धारणा बनी कि इतिहास में हिन्दू राजाओं व मुस्लिम बादशाहों के बीच जंग में हुई मार-काट तथा आज के दंगों और आतंकवाद का कारण इस्लाम है. दिमाग भ्रमित हो चुका था.इस भ्रमित दिमाग से हर आतंकवादी घटना मुझे इस्लाम से जुड़ती दिखाई देने लगी. इस्लाम, इतिहास और आज कि घटनाओं को जोड़ते हुए मैंने एक पुस्तक लिख डाली ' इस्लामिक आतंकवा...

रोहिंग्य मुसलमानों के नरसंहार के लिए म्यांमार सरकार को दोषी - ह्यूमन राइट्स वॉच

अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने रोहिंग्य मुसलमानों के नरसंहार और उनके ऊपर किए गए मानवता को शर्मसार करने वाले अत्याचारों के लिए म्यांमार सरकार को दोषी ठहराया है। प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार ह्यूमन राइट्स वॉच ने संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद से मांग की है कि वह म्यांमार पर आर्थिक प्रतिबंधों के साथ-साथ हथियारों के ख़रीदने पर भी प्रतिबंध लगाए।  ह्यूमन राइट्स वॉच के लीगल एंड पॉलिसी डायरेक्टर, जेम्स रोज़  का कहना है कि म्यांमार की सेना राख़ीन प्रांत से रोहिंग्या मुसलमानों को ज़बरदस्ती निकाल रही है। दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र संघ के शरणार्थियों के मामलों के विभाग ने कहा है कि 4 लाख 80 हज़ार रोहिंग्या मुसलमान, जो शरणार्थी शिवरों में रह रहे हैं, उनके लिए खाद्य व अन्य आवश्यक वस्तुओं के लिए दोगुने बजट की आवश्कता है। इस बीच म्यांमार सरकार के प्रवक्ता ने ह्यूमन राइट्स वॉच के आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहा है कि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि जिससे यह साबित हो कि म्यांमार सरकार मानवता विरोधी कार्यवाहियों में शामिल है। उल्लेखनीय है कि  संयुक्त राष...

वाजिब नमाज़े आयात पढने का तरीका पढ़े !

1516। नमाज़े आयात की दो रकअतें हैं और हर रकअत में पाँच रुकूअ हैं। इस के पढ़ने का तरीक़ा यह है कि नियत करने के बाद इंसान तकबीर कहे और एक दफ़ा अलहम्द और एक पूरा सूरह पढ़े और रुकूअ में जाए और फिर रुकूअ से सर उठाए फिर दोबारा एक दफ़ा अलहम्द और एक सूरह पढ़े और फिर रुकूअ में जाए। इस अमल को पांच दफ़ा अंजाम दे और पांचवें रुकूअ से क़्याम की हालत में आने के बाद दो सज्दे बजा लाए और फिर उठ खड़ा हो और पहली रकअत की तरह दूसरी रकअत बजा लाए और तशह्हुद और सलाम पढ़ कर नमाज़ तमाम करे। 1517। नमाज़े आयात में यह भी मुम्किन है कि इंसान नियत करने और तकबीर और अलहम्द पढ़ने के बाद एक सूरह की आयतों के पांच हिस्से करे और एक आयत या उस से कुछ ज़्यादा पढ़े और बल्कि एक आयत से कम भी पढ़ सकता है लेकिन एहतियात की बिना पर ज़रुरी है कि मुकम्मल जुमला हो और उस के बाद रुकूअ में जाए और फिर खड़ा हो जाए और अलहम्द पढ़े बग़ैर उसी सूरह का दूसरा हिस्सा पढ़े और रुकूअ में जाए और इसी तरह इस अमल को दोहराता रहे यहां तक कि पांचवें रुकूअ से पहले सूरे को ख़त्म कर दे मसलन सूरए फ़लक़ में पहले बिसमिल्ला हिर्रहमानिर्रहीम। क़ुल अऊज़ू बिरब्बिलफ़लक़। पढ़े और रुकूअ में जाए ...