युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...
मौलाना क्लबे जवाद ने एक बयान जारी कर कहा है कि राज्य की समाजवादी सरकार लगातार शिया समुदाय के साथ ना इंसाफी कर रही है, उन्होंने कहा कि यूपी सरकार प्रदेश के एक कैबिनेट मंत्री के इशारे पर शिया समुदाय के अधिकारों को छीनने का प्रयास कर रही है। इमामे जुमा लखनऊ ने कहा कि हम ज़ुल्म के आगे कभी नहीं झुकने वाले चाहे वह जितना भी ज़ुल्म कर ले, उन्होंने कहा कि अज़ादारी हमारा हक़ है और हम अपने हक़ की प्राप्ति के लिए अपनी जान देने को भी तैयार हैं। मौलाना कल्बे जावद ने कहा कि पूरे भारत में शिया मुसमलानों द्वारा मोहर्रम महीने में लखनऊ अज़ादारी का अपना एक महत्व है, जो कई सौ वर्षों से मनाई जा रही है और हम शिया मुसलमानों की पहचान है अज़ादारी, उन्होंने कहा कि हम अज़ादारी के संबंध में किसी भी तरह का कोई समझौता नहीं करेंगे। भारत के वरिष्ठ शिया धर्मगुरू मौलाना कल्बे जवाद ने कहा कि सरकार चाहे जितने भी प्रतिबंध लगा दे हम काले झंड़े भी लगाएंगे और लब्बैक या हुसैन भी कहेंगे। (RZ) Via - http://hindi.irib.ir
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