Skip to main content

घबराओ नहीं[जरुर पढे]

युद्ध में हार या जीत का असली मानक हसन नसरुल्ला, हिज़्बुल्लाह के नेता, की शहादत ने एक नई बहस छेड़ दी है कि युद्ध में असली जीत और हार का क्या मानक है। उनकी शहादत एक बड़ा नुकसान है, लेकिन जिस सिद्धांत और उद्देश्य के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह आज भी जीवित है। उनका जीवन और बलिदान इस बात का प्रतीक है कि जब किसी कौम के पास एक मजबूत सिद्धांत होता है, तो वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है। युद्धों का इतिहास हमें सिखाता है कि हार और जीत का निर्णय हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने वालों की संख्या या शहीदों की संख्या पर नहीं होता, बल्कि उस उद्देश्य की सफलता पर होता है जिसके लिए युद्ध लड़ा गया। यही उद्देश्य है जो जातियों को प्रेरित करता है और उन्हें लड़ने के कारण प्रदान करता है। जब भी कोई कौम युद्ध की शुरुआत करती है, वह एक स्पष्ट उद्देश्य से प्रेरित होती है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है: स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा, या किसी सिद्धांत का संरक्षण। युद्ध में भाग लेने वाले लोग विश्वास करते हैं कि वे किसी बड़े कारण के लिए लड़ रहे हैं। यदि यह उद्देश्य पूरा होता है, तो इसे सफलता माना जाता ...

ISIS आतंकी संगठन सत्ता का भूका है उसका इस्लाम से लेना देना कुछ नही है

 लेखक: गुस्तावो डी अरिस्तेगुई।।भारत में स्पेन के राजदूत 
इस्लामिक स्टेट (आईएस) का बढ़ता प्रभाव नई समस्या नहीं है। यह दरअसल, पुरानी समस्या का नया पहलू है। जिहाद के नाम की जाने वाली इन हरकतों से मुकाबले के लिए सबसे जरूरी सही तरीके से इसकी परिभाषा तय करना है।

मैं इस पर पिछले 35 साल से स्टडी कर रहा हूं और चार किताबें लिख चुका हूं। मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि आईएस जो कर रहा है, वह इस्लाम नहीं बल्कि कट्टरपंथी विचारधारा है। यह संगठन इस्लाम की गलत व्याख्या कर इसे हिंसा और राक्षसी प्रवृत्ति वाली इकाई बनाना चाहता है।

आईएस के मुताबिक, दुनिया में जो भी मुसलमान उसके नियमों को नहीं मानता है, उसे वह धर्म भ्रष्ट मानता है। धर्म भ्रष्ट आईएस के लिए धर्म को नहीं मानने वाले से ज्यादा खतरनाक हैं। हिंदू, ईसाई या यहूदी धर्मों के लोग इस्लाम के अनुयायी नहीं हैं, लेकिन अगर मुसलमान आईएस के नियमों को नहीं मानते हैं, तो वे उसकी नजर में धर्म भ्रष्ट हैं। जब कोई यह संगठन जॉइन करता है, तो मर्डर के जरिए उसे मजहबी तौर पर पाक बनाया जाता है।

आईएस का मजहब या इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं है। वह सत्ता चाहता है, पूर्ण सत्ता। आईएस को पता है कि वह जीत नहीं सकता, लेकिन उसे उम्मीद है कि दुनिया में विनाश और अस्थिरता फैलकर उसे कुछ फायदा होगा। उसका मानना है कि कुछ इस्लामिक देश उसके दायरे में आ सकते हैं। आईएस के निशाने पर न सिर्फ मुस्लिम बहुल देश हैं, उसकी बड़ी योजना उन देशों को लेकर है, जहां कभी इस्लाम ताकतवर हुआ करता था। आईएस के लिए ऐसे देश अहम हैं।

आईएस के लिए ऐसा ही एक देश स्पेन है, जहां इस्लाम का दबदबा था। इस कैटिगरी में एक और देश भारत है, जहां इस्लाम का काफी प्रभाव था। इसी वजह से अल कायदा ने भारतीय उपमहाद्वीप में अपना ब्रांच तैयार किया। अल कायदा के कमजोर होने के साथ आईएस का खतरा मंडराने लगा है। अल कायदा को साबित करना है कि वह खत्म नहीं हुआ है। यह दुनिया में कट्टरपंथी विचारधारा के बीच कॉम्पिटिशन जैसा है।

आईएस का एक और मकसद वैसे देशों पर निशाना साधना है, जो अमेरिका, इजराइल और पश्चिमी देशों से घृणा करते हैं। वैसे आतंकवाद से कोई मुल्क बचा नहीं है, लेकिन पिछले कुछ साल में भारत की तरह स्पेन का भी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का ट्रैक रिकॉर्ड रहा है। हमें यह समझने की जरूरत है कि आईएस चरमपंथी या उग्रवादी संगठन नहीं है। यह आतंकवादी संगठन है। उसके पास अपना इलाका है। इस संगठन के पास प्राकृतिक संसाधन और इनकम भी है, जो ऑइल और गैस की बिक्री, फिरौती की रकम और टैक्स के जरिए आती है।

दरअसल, आईएस आपराधिक संगठन भी है, जिसका दुनिया के कुछ इलाकों पर कब्जा है। आईएस के खिलाफ लड़ाई संगठित अपराध के खिलाफ संघर्ष है और इसकी फाइनेंसिंग, हथियारों के साधनों और भर्तियों के खिलाफ भी लड़ना होगा।

बहरहाल, सबसे अहम इस खतरनाक विचारधारा के खिलाफ लड़ाई है। हमें यह साफ करना होगा कि इस तरह की जिहादी गतिविधियां इस्लाम के खिलाफ है और ये इस मजहब की सबसे बड़ी दुश्मन हैं। इमामों को कुरान और उसकी तालीम को विकृत तरीके से पेश करने वालों का मुकाबला कर इस मजहब की सही व्याख्या करनी होगी।

Comments

Popular posts from this blog

निर्दोष बच्चों, महिलाओं ,मौलाना काज़िम पर पुलिस द्वारा क्रूर हमले के खिलाफ विरोध

नौगांवा सादात में नाइजीरिया सेना द्वारा नरसंहार के विरोध में प्रदर्शन

नौगांवा सादात जिला अमरोहा - उत्तर प्रदेश  में नाइजीरिया सेना द्वारा नरसंहार के विरोध में प्रदर्शन एवं शिया धर्मगुरू आयतुल्लाह शेख ज़कज़की की रिहाई  की मांग की गई जिस में शिया धर्म के के धर्मगुरूओ के अलावा हज़ारों की संख्या में लोग मौजूद रहे !  मालूम रहे के नाइजीरिया सेना की सेना ने वरिष्ठ धर्मगुरू हुज्जतुल इस्लाम वल मुसलेमीन इब्राहीम ज़कज़ाकी को पिछले हफ्ते  उनके घर से गिरफ़्तार कर लिया गया था और  इससे पहले नाइजीरिया की सेना ने  ज़ारिया नगर में स्थित बक़ीयतुल्लाह नामक इमामबाड़े पर भी हमला करके कई लोगों को गोलियों से भून दिया था जिस में काफी लोग शहीद हुए !  जानकारी के अनुसार शिया धर्मगुरू हुज्जतुल इस्लाम वल मुसलेमीन इब्राहीम आतंकी संगठन बोको हराम , अल क़ायदा , ISIS का विरोध प्रदर्शन  कर रहे थे जिस की वजह से विरोध  प्रदर्शन कर रहे लोगों पर गोली मार कर शहीद , और कुछ को घायल कर दिया ! इस लिए पूरी दुनिया में नाइजीरिया सेना द्वारा नरसंहार के विरोध में प्रदर्शन किये जा रहे हैं और शिया धर्मगुरू आयतुल्लाह शेख ज़कज़की की रिहाई की मांग की जा रही ह...

रूसी न्यूज़ एजेन्सी का कहना है की अमरीका नहीं, ईरान अपनी इन शर्तों पर परमाणु समझौते करेगा

  जो बाइडन के कुछ सलाहाकर यहां तक कि खुद वह भी ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते में वापसी की बात करते हैं लकिन उसके लिए कुछ शर्तें पेश करते हैं, कुछ युरोपीय देशों ने भी उनके इस रुख का स्वागत किया है लेकिन सच्चाई यह है कि कानूनी लिहाज़ से अमरीका की परमाणु समझौते में वापसी, ईरान की शर्तों को पूरा किये जाने पर निर्भर है न किसी और की शर्तों को।      ईरान के साथ किया गया परमाणु समझौता कोई खाली घर नहीं है कि जब अमरीका का दिल चाहे घुस जाए और जब चाहे निकल जाए।      सब को पता है कि परमाणु समझौता के मुख्य दो पक्ष, ईरान और अमरीका थे जो ईरानियों और अमरीकियों के बीच लंबी वार्ता के बाद किया गया था। ईरान का प्रतिनिधित्व ईरानी विदेशमंत्री जवाद ज़रीफ और अमरीका का वहां के विदेशमंत्री जान कैरी कर रहे थे।      परमाणु समझौते के में उपस्थिति अन्य देश और युरोपीय संघ सब के सब परमाणु समझौते में दोनों पक्षों के वचनों के पालन की प्रक्रिया की निगरानी की ज़िम्मेदारी रखते थे और इसी के साथ ईरान ने परमाणु समझौते  को सुरक्षा परिषद में पारित कराने की मां...

अल्लाह के नबी का फ़रमान है पड़ोसियों से अच्छा व्यव्हार रखो ताकि मुसलमान कहलाओ

अबनाः इमाम जाफर सादिक़ अ.स. ने अपने शिष्यो द्बारा अपने शियों को कुछ वसीयतें फरमाई , जिन मे से कुछ निम्नलिखित हैं ।  1.ज़ैद इब्ने शह्हाम का बयान है कि मुझ से इमाम सादिक़ अ.स. ने फ़रमाया, तुम्हारी निगाह में जो भी मेरी पैरवी करने वाला और मेरे बारे में बातें करने वाला है उसको मेरा सलाम कहना, मैं तुम सभी को तक़वा और परहेज़गारी अपनाने, अल्लाह के लिए काम करने, सच बोलने, अमानतदारी को बाक़ी रखने, अधिक से अधिक सज्दे करने और पड़ोसियों से अच्छा रवैया अपनाने की वसीयत करता हूँ, क्योंकि पैग़म्बर यही शिक्षा और संस्कार ले कर आए थे। जिन लोगों ने तुम को अमानतदार समझ कर अपना माल तुम्हारे पास रखवाया वह अच्छे लोग हों या बुरे, उनकी अमानत को उसी प्रकार वापिस कर दो, क्योंकि अल्लाह के नबी का फ़रमान है कि सुई धागा भी अगर हो उसको भी वापिस करो। अपने घर वालों और रिश्तेदारों के साथ नेकी करो , उनमें से अगर किसी को देहांत हो जाए तो जनाज़े में शामिल हो, जब वह बीमार हों उन्हें देखने जाओ, उनका हक़ अदा करते रहो, अगर तुम में से कोई इस प्रकार जीवन बिताता है तो उसे परहेज़गार और अच्छी नैतिकता वाला इंसान कहा जाएगा, औ...

नियोग प्रथा पर मौन, हलाला 3 तलाक पर आपत्ति ? एक बार जरुर पढ़े

3 तलाक एवं हलाला पर आपत्ति जताने वाले आखिर नियोग प्रथा पर खामोश क्यों हैं, हलाला ठीक है या ग़लत कम से कम विवाहित महिला शारीरिक संबंध अपने पति से ही बनाती है! पर नियोग प्रथा से संतान सुख के लिए किसी भी ब्राह्मण पुरुष से नियोग प्रथा के अनुसार उससे शारीरिक संबंध बना सकती है! यह कितना बड़ा अत्याचार और पाप हुआ? नियोग प्रथा क्या है? हिन्दू धर्म में एक रस्म है जिसे नियोग कहते है , इस प्रथा के अनुसार किसी विवाहित महिला को बच्चे पैदा न हो रहे हो तो वो किसी भी ब्राह्मण पुरुष से नियोग प्रथा के अनुसार उससे शारीरिक संबंध बना सकती है! नियोग प्रथा के नियम हैं:- १. कोई भी महिला इस प्रथा का पालन केवल संतान प्राप्ति के लिए करेगी न कि आनंद के लिए। २. नियुक्त पुरुष केवल धर्म के पालन के लिए इस प्रथा को निभाएगा। उसका धर्म यही होगा कि वह उस औरत को संतान प्राप्ति करने में मदद कर रहा है। ३. इस प्रथा से जन्मा बच्चा वैध होगा और विधिक रूप से बच्चा पति-पत्नी का होगा , नियुक्त व्यक्ति का नहीं। ४. नियुक्त पुरुष उस बच्चे के पिता होने का अधिकार नहीं मांगेगा और भविष्य में बच्चे से कोई रिश्ता नहीं रखेगा। ...

रूस ने की अमरीका की कड़ी आलोचना

प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार रूसी सीनेट की इंटरनेशनल कमेटी के अध्यक्ष कॉन्स्टेंटिन कोशेवोव ने कहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा हाल ही में ईरान में उप्रदव करने वालों को सम्मानित करने की घोषणा बहुत ही निचले स्तर की राजनीति है। उन्होंने कहा कि ट्रम्प के इस शर्मनाक एलान पर संयुक्त राष्ट्र संघ को संज्ञान लेकर उनके विरुद्ध कार्यवाही करनी चाहिए। कॉन्स्टेंटिन कोशेवोव ने कहा कि  रूस, ईरान के आंतरिक मामलों में अमेरिकी अधिकारियों के शर्मनाक हस्ताक्षेप और इस देश में उप्रदव करने वालों को उकसाने और उन्हें सम्मानित करने की घोषणा की कड़े शब्दों में निंदा करता है। दूसरी तरफ, एक पूर्व अमेरिकी अधिकारी ने एक बहुत ही भड़काऊ बयान में कहा है कि ईरान के सुरक्षाबलों के मुक़ाबले में खड़े उप्रदवियों को हथियारों और विस्फोट पथार्दों से लैस करना अमेरिकी एजेंसियों की प्राथमिकता होनी चाहिए।  अमेरिका के पूर्व उपविदेश मंत्री स्टीवर्ट बेकर ने “लॉ आफ़ेयर” नामक वेबसाइट पर लिखा है कि अब समय आ गया है कि ईरान में लोगों को हथियारों और विस्फोटकों से लैस किया जाए। यह ऐसी स्थिति में है कि यूरोपीय संघ की वि...

नौगावां सादत : पहली मुहर्रम का जालूस

जन्म पवित्र स्थल काबे के अंदर हुआ और शहादत मस्जिद में

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के दामाद और उत्तराधिकारी हज़रत अली (अ) जब 19 रमज़ान की सुबह सहरी के बाद सुबह की नमाज़ के लिए मस्जिद में पहुंचे और नमाज़ के दौरान जब वे सज्दे में गए तो इब्ने मुल्जिम नामक व्यक्ति ने ज़हर में बुझी तलवार से उनके सिर पर घातक वार किया।  19 रमज़ान की रात इस्लाम के अनुसार, रमज़ान की उन तीन रातों में से एक है, जिसमें रात भर जागकर इबादत करने का अत्यधित सवाब है।  हज़रत अली गंभीर रूप से घायल होने के तीसरे दिन अर्थात 21 रमज़ान की पवित्र रात को शहीद हो गए।  19 और 21 रमज़ान को  दुनिया भर के शिया मुसलमान ईश्वर की इबादत के साथ साथ हज़रत अली (अ) की शहादत का शोक भी मनाते हैं और अज़ादारी करते हैं।  हज़रत अली (अ) संसार की ऐसी विशिष्ट हस्ती हैं जिनका जन्म पवित्र स्थल काबे के अंदर हुआ था और शहादत मस्जिद में। 

आज़रबाइन-आर्मीनिया शांति समझौते के बाद जलती आग में अब फ़्रांस ने डाला तेल

 इस  बीच एक नई घटना यह हुई है कि फ़्रांस की संसद में एक बिल पास किया गया जिसमें कराबाख़ को एक स्वाधीन देश के रूप में मान्यता देने की स्वीकृति दी गई है। प्रस्ताव ग़ैर बाध्यकारी है जो संसद के ऊपरी सदन से एक सप्ताह पहले ही पारित हो चुका है जबकि निचले सदन से भी इसे मंज़ूरी मिल गई है। इस घटना के बाद आज़रबाइजान के विदेश मंत्रालय ने बाकू में फ़्रांस के राजदूत ज़ाकारी ग्रोस को तलब करके भारी आपत्ति जताई।आज़रबाइजान के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने फ़्रांसीसी राजदूत से कहा कि फ़्रांस की संसद में पास होने वाला बिल संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र और सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के विरुद्ध है साथ ही इससे अंतर्राष्ट्रीय क़ानून और हेलसेन्की समझौते का भी हनन होता है।विदेश मंत्रालय ने अलग से एक बयान में कहा कि हम फ़्रांस की संसद में पास होने वाले बिल का पुरज़ोर विरोध करते हैं। आज़रबाइजान की सरकार ने यह मांग भी रखी है कि आर्मीनिया के साथ जारी विवाद में फ़्रांस को मध्यस्थ की भूमिका से हटा दिया जाए। आज़रबाइजान और आर्मीनिया के बीच 9 नवम्बर को संघर्ष विराम का समझौता हुआ जिसके नतीजे में आर्मीनिया ...