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Purpose OF Azadari- Moharram 2021

 

इस्लाम के दुश्मनों के मंसूबों और उन्हें नाकाम बनाने में सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई की भूमिका - हसन नस्रुल्लाह

मुस्लिम विरोधियों से संघर्ष में आयतुल्लाह ख़ामेनई की भूमिका सराहनीयः हसन नस्रुल्लाहलेबनान प्रतिरोधी आंदोलन हिज़्बुल्लाह के जनरल सेक्रेटरी हसन नसरुल्लाह ने कहा है कि इस्लाम दुश्मन ताक़तों के मंसूबों और उन्हें नाकाम बनाने में ईरान के सुप्रीम लीडर हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनई की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है । वह दुश्मन को भलभाँति जानते हैं तथा उनके विरुद्ध संघर्ष में महत्वपूर्ण किरदार निभाते हैं । लेबनान यात्रा पर गए ईरान पार्लियामेंट के सहायक स्पीकर अमीर अब्दुल्लाहियान से मुलाक़ात करते वक़्त हिज़्बुल्लाह के जनरल सेक्रेटरी हसन नसरुल्लाह ने यह विचार व्यक्त किये । उन्होंने कहा कि फिलिस्तीन मुद्दा तथा सीरिया, लेबनान क्षेत्रीय शांति व्यवस्था से जुड़े मुद्दे हैं । उन्होंने कहा जैसे जैसे अवैध राष्ट्र अपने विनाश के निकट पहुँच रहा है वह अरब देशों से संबंघ सामान्य करने की कोशिशों में लगा हुआ है । नसरुल्लाह ने क्षेत्र को विभाजित करने की साज़िशों पर ध्यान देने की ज़रूरत पर बल देते हुए कहा कि हम हलब , मूसेल और अरसाल मे आपसी एकता और एत्तेहाद के कारण विजय प्राप्त करने में सफल रहे हैं । उन्होंने क़ुद्स के हालिय संकट की ओर संकेत करते हुए कहा कि अवैध राष्ट्र इस्लाम का चेहरा बिगाड़ने ओर क्षेत्रीय देशों को नष्ट करने की अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आ रहा है हम भी अवैध राष्ट्र के वृद्ध अपना संघर्ष जारी रखेंगे । अमीर अब्दुल्लाहियान ने हिज़्बुल्लाह को हालिया विजय और २००६ में ज़ायोनी शासन के विरुद्ध विजय की वर्षगांठ पर मुबारक़बाद देते हुए कहा कि ईरान हिज़्बुल्लाह की क़ुर्बानियों और उसके प्रशंसनीय कामों की सराहना करता है।

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नियोग प्रथा पर मौन, हलाला 3 तलाक पर आपत्ति ? एक बार जरुर पढ़े

3 तलाक एवं हलाला पर आपत्ति जताने वाले आखिर नियोग प्रथा पर खामोश क्यों हैं, हलाला ठीक है या ग़लत कम से कम विवाहित महिला शारीरिक संबंध अपने पति से ही बनाती है! पर नियोग प्रथा से संतान सुख के लिए किसी भी ब्राह्मण पुरुष से नियोग प्रथा के अनुसार उससे शारीरिक संबंध बना सकती है! यह कितना बड़ा अत्याचार और पाप हुआ? नियोग प्रथा क्या है? हिन्दू धर्म में एक रस्म है जिसे नियोग कहते है , इस प्रथा के अनुसार किसी विवाहित महिला को बच्चे पैदा न हो रहे हो तो वो किसी भी ब्राह्मण पुरुष से नियोग प्रथा के अनुसार उससे शारीरिक संबंध बना सकती है! नियोग प्रथा के नियम हैं:- १. कोई भी महिला इस प्रथा का पालन केवल संतान प्राप्ति के लिए करेगी न कि आनंद के लिए। २. नियुक्त पुरुष केवल धर्म के पालन के लिए इस प्रथा को निभाएगा। उसका धर्म यही होगा कि वह उस औरत को संतान प्राप्ति करने में मदद कर रहा है। ३. इस प्रथा से जन्मा बच्चा वैध होगा और विधिक रूप से बच्चा पति-पत्नी का होगा , नियुक्त व्यक्ति का नहीं। ४. नियुक्त पुरुष उस बच्चे के पिता होने का अधिकार नहीं मांगेगा और भविष्य में बच्चे से कोई रिश्ता नहीं रखेगा।

चुगली,ग़ीबत यानी पीठ पीछे बुराई करना। इस्लामी शिक्षाओं में बहुत ज़्यादा आलोचना की गयी है

ग़ीबत यानी पीठ पीछे बुराई करना है, ग़ीबत एक ऐसी बुराई है जो इंसान के मन मस्तिष्क को नुक़सान पहुंचाती है और सामाजिक संबंधों के लिए भी ज़हर होती है। पीठ पीछे बुराई करने की इस्लामी शिक्षाओं में बहुत ज़्यादा आलोचना की गयी है। पीठ पीछे बुराई की परिभाषा में कहा गया है पीठ पीछे बुराई करने का मतलब यह है कि किसी की अनुपस्थिति में उसकी बुराई किसी दूसरे इंसान से की जाए कुछ इस तरह से कि अगर वह इंसान ख़ुद सुने तो उसे दुख हो। पैगम्बरे इस्लाम स.अ ने पीठ पीछे बुराई करने की परिभाषा करते हुए कहा है कि पीठ पीछे बुराई करना यह है कि अपने भाई को इस तरह से याद करो जो उसे नापसन्द हो। लोगों ने पूछाः अगर कही गयी बुराई सचमुच उस इंसान में पाई जाती हो तो भी वह ग़ीबत है? तो पैगम्बरे इस्लाम ने फरमाया कि जो तुम उसके बारे में कह रहे हो अगर वह उसमें है तो यह ग़ीबत है और अगर वह बुराई उसमें न हो तो फिर तुमने उस पर आरोप लगाया है।यहां पर यह सवाल उठता है कि इंसान किसी की पीठ पीछे बुराई क्यों करता है?  पीठ पीछे बुराई के कई कारण हो सकते हैं। कभी जलन, पीठ पीछे बुराई का कारण बनती है। जबकि इंसान को किसी दूसरे की स्थिति से ईर्ष

अहले सुन्नत के मुक़द्देसात (प्रतीकों) का अपमान करना जायज़ नहीं है - शिया सुन्नी एकता

वैसे तो इस्लाम हर धर्म का आदर करने का आदेश देता है  किसी दुसरे धर्मों (ग़ैर इस्लामी) के प्रतीकों का अपमान करना भी  इस्लाम में वर्विज (मना) है पर कुछ लोग एक दुसरे (अपने इस्लाम) के फिरके के लोगों का अपमान करने की सोचते हैं जो की यह इस्लामी शिक्षा के विपरीत है। दरअसल ऐसे लोग इस्लाम के दुश्मन होते हैं जो इस्लाम के दुश्मनों के हाथ मजबूत करते हैं। अहले सुन्नत के मुक़द्देसात (प्रतीकों)  का  अपमान करना हराम है और जाहिर है कि जो कोई भी शिया के नाम पर अहले सुन्नत के मुक़द्देसात का अपमान करता है चाहे वो  सुन्नी  होकर शिया मुक़द्देसात का अपमान करता है वह इस्लाम का दुश्मन है। क्या अहले सुन्नत के मुक़द्देसात (प्रतीकों) का  अपमान जैसे खुलुफा  और अहले सुन्नत के कुछ मनपसंद सहाबा  के नाम अशोभनीय तरीके से लेना   जायज़ (वेध) है? दुनिया भर के  शिया धार्मिक केन्द्रों (ईरान और इराक) के ओलामाओ (विद्वानों)  ने फतवा दिया है की अहले सुन्नत के मुक़द्देसात (प्रतीकों)  का  अपमान करना हराम है अधिक जानकारी के लिए मैं यहाँ 12 शिया आलिमों (विद्वानों) के फतवे पेश कर रहें हैं 

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1516। नमाज़े आयात की दो रकअतें हैं और हर रकअत में पाँच रुकूअ हैं। इस के पढ़ने का तरीक़ा यह है कि नियत करने के बाद इंसान तकबीर कहे और एक दफ़ा अलहम्द और एक पूरा सूरह पढ़े और रुकूअ में जाए और फिर रुकूअ से सर उठाए फिर दोबारा एक दफ़ा अलहम्द और एक सूरह पढ़े और फिर रुकूअ में जाए। इस अमल को पांच दफ़ा अंजाम दे और पांचवें रुकूअ से क़्याम की हालत में आने के बाद दो सज्दे बजा लाए और फिर उठ खड़ा हो और पहली रकअत की तरह दूसरी रकअत बजा लाए और तशह्हुद और सलाम पढ़ कर नमाज़ तमाम करे। 1517। नमाज़े आयात में यह भी मुम्किन है कि इंसान नियत करने और तकबीर और अलहम्द पढ़ने के बाद एक सूरह की आयतों के पांच हिस्से करे और एक आयत या उस से कुछ ज़्यादा पढ़े और बल्कि एक आयत से कम भी पढ़ सकता है लेकिन एहतियात की बिना पर ज़रुरी है कि मुकम्मल जुमला हो और उस के बाद रुकूअ में जाए और फिर खड़ा हो जाए और अलहम्द पढ़े बग़ैर उसी सूरह का दूसरा हिस्सा पढ़े और रुकूअ में जाए और इसी तरह इस अमल को दोहराता रहे यहां तक कि पांचवें रुकूअ से पहले सूरे को ख़त्म कर दे मसलन सूरए फ़लक़ में पहले बिसमिल्ला हिर्रहमानिर्रहीम। क़ुल अऊज़ू बिरब्बिलफ़लक़। पढ़े और रुकूअ में जाए

इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम पर सलाम हो

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